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बंगाल अथवा मिथिला के निवासी होंगे। वे महाराज बल्लालसेन
और लक्ष्मणसेन के काल में राजपण्डित थे। सायणाचार्य ने गुणविष्णु आचार्य से सहायता ली ऐसा विद्वानों का तर्क है। गुणविष्णु आचार्य ने पारस्कर गृह्यसूत्र और मंत्र-ब्राह्मण पर भी भाष्य रचना की हैं। गुणानन्द विद्यावागीश- 17 वीं शती। रचनाएंअनुमानदीधितिविवेकः, आत्मतत्मविवेक-दीधिति-टीका, गुणविवृत्ति-विवेक, न्यायकुसुमांजलिविवेक, न्यायलीलावतीप्रकाश, दीधितिविवेकः और शब्दलोक-विवेकः । गुरुप्रसन्न भट्टाचार्य- जन्म-सन् 1882 में। स्मृति-पण्डित काशीराम (वाचस्पति) के पुत्र । कृतियां- श्रीराम (महाकाव्य) व माथुर (खण्डकाव्य) । नाभाग-चरित (नाटक), भामिनीविलास और मदालसा-कुवलयाश्व तथा वरूथिनीचंपू।
ढाका और वाराणसी में संस्कृत के प्राध्यापक रहे। गुरुराम- ई. 16 वीं शती। उत्तर अर्काट जिले के निवासी। पिता-स्वयंभू दीक्षित। माता-राजनाथ की कन्या। रचनाएंहरिश्चन्द्रचरित (चम्पू), रत्नेश्वर-प्रसादन (नाटक), सुभद्रा-धनंजय (नाटक), मदन-गोपाल-विला: (भाण) और विभागरत्नमालिका । गुलाबराव महाराज- समय 1831-1915 ई. जन्म- अमरावती (विदर्भ) जिले के लोनीटाकली नामक श्रम में शकाब्द 1803 में हुआ। पिता-गोंदुजी मोहोड और माता-अलोकाबाई। मूल क्षत्रिय, परंतु वे स्वतः को शूद कहते थे। जब वे 7-8 वर्ष के बालक थे तब उनकी आंखों की ज्योति सदा के लिये चली गयी।
उनके साथ सौतेली माता का व्यवहार अच्छा न होने से वे प्रायः घर के बाहर ही रहा करते। अंधत्व के कारण दे पाठशाला नही जा सकते थे। वे एकपाठी थे। अतः जो-कुछ श्रवण करते, वह उन्हें तुरन्त मुखोद्गत हो जाता था। गाव में कभी-कभी एकाध मुल्ला-मौलवी आ जाता तो वे उसके निकट जाकर उससे कुराण की आयतें श्रवण करते। ___ एक बार गुलाबराव महाराज अपने पड़ोसी के यहां खेलने गये थे। उसी समय पडोस के सीताराम भुयार की मां अपनी पोती के साथ वहां पहुंची। उसने विनोद में 12 वर्ष के गुलाब से कहा- “एक मुक्के में नारियल फोड दो, तो अपन पोती में तुम्हें दूंगी" उन्होंने ने वह प्रण पूर्ण कर दिखाया। अंध गुलाब का विवाह उसी कन्या मनकर्णिका के साथ हुआ।
महाराज ने सभी शास्त्रों का ज्ञान श्रवण से ही प्राप्त किया था। वेद-वेदान्त से लेकर संगीत, वैद्यक, साहित्यशास्त्र, थियॉसफी, पाश्चात्य दर्शन, आधुनिक विज्ञान, इतिहास आदि विषयों पर उन्होंने अधिकार-वाणी से विचार व्यक्त किये हैं। महाराज ने सूत्रग्रन्थ से लेकर आकर ग्रन्थों तक विविध प्रकार की रचनाएं मराठी, हिन्दी और संस्कृत भाषा में की हैं। उनकी संख्या 125 है। सभी ग्रंथ नागपुर में प्रकाशित । उनकी संस्कृत रचनाओं की नामावलि इस प्रकार है।
___1. अन्तर्विज्ञानसंहिता, 2. ईश्वरदर्शन, 3. समसूत्री, 4.
दुर्गातत्त्वम्, 5. काव्यसूत्र-संहिता, 6. शिशुबोध-व्याकरण, 7. न्यायसूत्राणि, 8. एकादशी-निर्णय, 9. पुराणमीमांसा, 10. नारदीय-भक्त्यधिकरण-न्यायमाला, 11. भक्तिसूत्र, 12. श्रीधरोच्छिष्टपुष्टि, 13. उच्छिष्टपुष्टिलेख, 14. ऋग्वेद-टिप्पणी, 15. बालवासिष्ठ, 16. शास्त्रसमन्वय, 17. आगमदीपिका, 18. युक्तितत्त्वानुशासन, 19. तत्त्वबोध, 20. षड्दर्शनलेश-संग्रह, 21. भक्तितत्त्वविवेकः, 22. प्रियप्रेमोन्माद, 23. गोविंदानन्दसुधा, 24. मानसायुर्वेद, 27. संप्रदायकुसुममधु, 28. सच्चिन्निर्णय, 29. कान्तकान्तावाक्यपुष्पम् और 30. मात्रामृतपानम्।
गुलाबराव महाराज मधुराद्वैत संप्रदाय के प्रवर्तक थे। महाराज कहते थे कि मुझे संत ज्ञानेश्वर ने गोदी में लेकर कृपा-दृष्टि से निहारा, और मेरी योग्यता आदि न देखते हुए मुझ पर अपनी करुणा की वर्षा कर अपने नाम का मन्त्र मुझे (सन 1901) दिया। इस साक्षात्कार के पश्चात् महाराज को ज्ञानसिद्धि प्राप्त हुई।
महाराज की पत्नी मनकर्णिका पतिपरायण तो थी ही, साथ ही श्रेष्ठ शिष्या भी थी। एक बार महाराज ने अपनी पत्नी को कसौटी पर परखने का निश्चय किया। उन्हें चार मास का इकलौता पुत्र था। पुत्र-मोहवश पत्नी का चित्त परमार्थ-मार्ग से विचलित तो नहीं होता यह परखने के लिये, एक दिन रात्रि को (दिसंबर 1905) उन्होंने पत्नी से कहा कि वह अपने हाथ से संतान को विष खिला दे। उस कसौटी पर मनकर्णिका खरी उतरी। महाराज को परम संतोष हुआ। बाद में मनकर्णिका को ज्ञात हुआ कि पति ने पुत्र को पिलाने झूठ-मूठ का विष दिया था।
दि. 20 सितंबर 1915 को, आयु के 34 वें वर्ष में, महाराज ने अपनी इहलीला समाप्त की। गुह त्रैलोक्यमोहन - रचना- गीतभारतम्। विषय-आङ्ग्ल साम्राज्य तथा सम्राज्ञी व्हिक्टोरिया का यशोगान । गुहदेव - ई. 8 वीं या 9 वीं शती। यजुर्वेद की तैत्तिरीय संहिता के एक भाष्यकार । सगुण ब्रह्म ही उपनिषदों का प्रतिपाद्य है, यह इनका सिद्धांत है। शास्त्रोक्त कर्म के बिना ईश्वर प्राप्ति संभव नहीं- यह मत भी इन्होंने प्रतिपादित किया है। इनका भाष्य-ग्रंथ उपलब्ध नहीं, किंतु देवराज यज्वा ने अपने निघंटु-भाष्य की भूमिका में और रामानुजाचार्य ने अपने वेदार्थ-संग्रह में गुहदेव का निर्देश किया है। गोकुलचन्द्र- आपने अष्टाध्यायी-संक्षिप्त वृत्ति की रचना की है। गोकुलनाथ - पिता- महाकवि विद्यानिधि पीताम्बर । गृहस्थाश्रम के प्रारम्भिक दिन श्रीनगर के राजा फतेहशाह (1684-1716) के समाश्रय मे रहे। बाद में मिथिला-निवासी। मिथिला के राजा राघवसिंह (1703-1709) के प्रीत्यर्थ "मासमीमांसा" नामक ग्रंथ की रचना की। काशी में 90 वर्ष की अवस्था में मृत्यु ।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 311
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