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के अतिरिक्त अन्यान्य ग्रंथों की भी रचना की थी। दैवतग्रंथ, वेदना-वेदनगीति, 5. सूक्तिमुक्तावलि, 6. शृंगारलहरी और 7. शालाक्यतंत्र, कामसूत्र, भूवर्णन आदि। सुश्रुत के टीकाकार ___ "भारती", "संस्कृतरत्नाकार" आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित डल्हण के अनुसार गालव धन्वंतरि के शिष्य थे। इनके पिता
रचनाएं। का नाम गलु या गलव माना जाता है। भगवद्दत्तजी के गिरिधरलाल व्यास शास्त्री- जन्म- 2 अप्रैल 1894 ई. को अनुसार ये शाकल्य के शिष्य थे।
उदयपूर (मेवाड़) में हुआ। पिता-गोवर्धन शर्मा । संस्कृत-साहित्य __ यास्कप्रणीत "निरुक्त" में उल्लिखित निरुक्तकारों में की सेवा के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा 100/- रु. प्रतिमाह गालव एकतम हैं। गालवाचार्य का निरुक्त में एकबार और अनुदान प्राप्त । इनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं- 1. अभिनव-काव्यप्रकाश बृहदेवता में चार बार उल्लेख मिलता है। गालत्र के नाम (प्रथम व द्वितीय भाग), 2. काव्य-सुधाकर (चन्द्रालोकवृत्तिरूप), से एक ब्राह्मण-ग्रंथ" भी प्रसिद्ध है। "महाभारत' के शान्तिपर्व 3. स्वजीवनवृत्तम् (काव्यम्), 4. मेदपाटेतिहासः (काव्यम्) । में गालव नाम का जो उल्लेख है, उससे एक और निष्कर्ष
संपादन- 1. वीरभूमिः- संस्कृत-पद्य-रचना, 2. योगसूत्रम्, संमत हो सकता है कि उनका गोत्र बाभ्रव्य था।
3. परमार्थविचार, 4. चतुरचिन्तामणिः (भाग्यत्रयी), 5. गिरिधरलाल गोस्वामी- काशी में निवास। काशीवाले गोसाई महिम्नस्तोत्रम्, 6. चन्द्रशेखरः ।
और गिरिधरजी महाराज के नामों से प्रसिद्ध। संपूर्ण भागवत गीर्वाणेन्द्र दीक्षित- ई. 17 वीं शती। नीलकण्ठ दीक्षित के पर "बालप्रबोधिनी" नामक टीका के लेखक। वल्लभाचार्य तृतीय पुत्र । शिक्षा पिता से पायी। कृतियां- अन्यापदेश-शतक की टीका "सुबोधिनी' की रचना अंशतः होने से सांप्रदायिक
(काव्य) और शृंगारकोश (भाण)। मतानुसार तदितर स्कंधों का तात्पर्य अनिर्णित रह गया था।
गुणनन्दी- ई. 10 वीं शती। जैनेन्द्र व्याकरण पर शब्दार्णव इसी अभाव की पूर्ति, गिरिधरलालजी ने "बालप्रबोधिनी" के
नामक व्याख्या आपने लिखी है। जैनेन्द्र धातुपाठ का संशोधन प्रणयन द्वारा की।
भी आपने किया है। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित जैनेन्द्र इनका दूसरा ग्रंथ है "शुद्धाद्वैतमार्तण्ड"। इसमें इनके
महावृत्ति के अन्त में गुणनन्दी द्वारा संशोधित धातुपाठ छपा है। जन्मकाल का उल्लेख 1847 सर्वत् (1780 ई.) दिया गया
गुणभद्र (प्रथम)- जन्मस्थान- दक्षिण अर्काट जिले का है। इन्होंने सुबोधिनी का ही नहीं प्रत्युत प्रौढ दार्शनिक ग्रंथों
तिरुमरुङ्कुण्डम् नगर । सेनसंघ के आचार्य । गुरु-जिनसेन द्वितीय । का भी अनुसंधान एवं मनन किया था। पंडित होने के
दादागुरु-वीरसेन । साधनाभूमि-कर्नाटक और महाराष्ट्र । स्थितिकालअतिरिक्त ये बड़े सिद्ध पुरुष थे। काशी का प्रख्यात गोपाल
राष्ट्रकूट अकालवर्ष के समकालीन। ई. नवमशती का अन्तिम मंदिर, इनका साधना-स्थल था। इस मंदिर के ये स्वामी थे।
भाग। रचनाएं- आदिपुराण (जिनसेन द्वितीय द्वारा अधूरे छोडे कहते हैं कि गिरिधरलालजी के आशीर्वाद से श्रेष्ठ हिंदी आदिपुराण के 43 वें पर्व के चतुर्थ पद्य से समाप्ति पर्यन्त साहित्यिक भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म हुआ था। अतः उनके
1620 पद्य-) शक सं. 820, उत्तरपुराण (महापुराण का उत्तर उपकृत होने के कारण भारतेन्दु के पिता अपनी कविताओं में
भाग), आत्मानुशासन और जिनदत्तचरित काव्य । अपना उपनाम “गिरिधर" रखते थे।
गुणभद्र (द्वितीय)- ई. 13 वीं शती। "उत्तर पुराण" के ये गोपेश्वरजी के शिष्य थे। इन्होंने आचार्य वल्लभ के
रचयिता गुणभद्र से भिन्न। माणिक्य सेन के प्रशिष्य और "अणु-भाष्य" को अपनी पांडित्यपूर्ण टीका से मंडित किया। नेमिसेन के शिष्य। कवि ने बिलासपुर के जैन मंदिर में रहकर ये व्याकरण के मर्मज्ञ विद्वान होने के कारण पाठ-भेद के
लम्बकंचुकवंश के महामना साहू शुभचन्द्र के पुत्र बल्हण के प्रवीण समीक्षक थे। अतः इन्होंने अणुभाष्य के अनेक पाठों
आग्रह से धन्यकुमार-चरितकाव्य (सात सर्ग) की रचना की। का विवेचन कर, उसका विशुद्ध स्वरूप प्रस्तुत किया। इनका यह रचना महोबे के चन्देल नरेश परमादि देव के शासन-काल विख्यात ग्रंथ "शुद्धाद्वैत-मार्तण्ड", शुद्धाद्वैत के सिद्धांतो के प्रतिपादन में उपकारक है।
गुणभूषण- समय- ई. 14 वीं शती। मूल संघ के विद्वान गिरिधारीलाल शर्मा तेलंग भट्ट (पं.)- जन्म- सन् 1895 विनयचन्द्र के प्रशिष्य और त्रैलोक्यकीर्ति के शिष्य । ई.। आपका जन्म अलवर में हुआ था। पिता- रणछोडजी स्याद्वाद-चूडामणि के नाम से ख्यातिप्राप्त। रचना गुणभूषणतेलंग। ये व्याकरण, साहित्य व वेदान्त के विद्वान हैं। आप श्रावकाचार (तीन उद्देश्य) यह ग्रंथ वसुनन्दि- श्रावकाचार से "कविकिंकर" के नाम से लिखते हैं। सन् 1915 से 1935 प्रभावित है। तक ये अलवर व झालावाड के नरेशों के आश्रय में रहे।
गुणविष्णु- ई. 13 वीं शती। गुणविष्णु कृत छान्दोग्यमंत्र-भाष्य,, वृद्धावस्था के कारण अनेक रोगों से आक्रांत होकर झालावाड
सामवेद की कौथुम शाखा के मंत्रों पर लिखा है। इनमें में निवास करने लगे। इनकी प्रकाशित रचनाएं हैं- 1. अधिकांश मंत्र साममंत्र ब्राह्मण के ही हैं और अन्य मन्त्र ऋतुशतकम्, 2. अलवरवर्णनम्, 3. मुद्रामाहात्म्यम्, 4.
कुछ लुप्त साम मन्त्र पाठ से लिए हुए हो सकते हैं। गुणविष्णु
"कविकिकर"
झालावाड के
आक्रांत होकर
1.
310/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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