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संस्कृत गद्य में भी आप समयोपयोगी ग्रन्थ लिखते रहे हैं। श्रीमहारावल - रजत जयन्तीग्रंथ का आपने संपादन किया । भारती, मधुरवाणी, संस्कृतरनाकार, संस्कृतसाकेत, संस्कृतचन्द्रिका, दिव्यज्योतिः, सरस्वती, सौरभ, भारतवाणी इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं में आपके अनेक लेख, कविता, कथा प्रकाशित हुए हैं। गदाधर चक्रवर्ती भट्टाचार्य- समय- ई. 17 वीं शती । पिता - प्रसिद्ध नैयायिक | गुरु हरिराम तर्कांलंकार। नवद्वीप (बंगाल) के प्रसिद्ध नव्य नैयायिकों में इनका स्थान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। समय- 17 वीं शताब्दी । इन्होंने रघुनाथ शिरोमणि के सुप्रसिद्ध ग्रंथ "दीधिति" पर विशद व्याख्या - ग्रंथ की रचना की है जो इनके नाम पर "गादाधरी" की अभिधा से विख्यात है। इनके द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 52 बतलायी जाती है। इन्होंने उदयनाचार्य के प्रसिद्ध ग्रंथ "आत्मतत्त्व-विवेक" व गंगेश उपाध्याय के "तत्त्व- चिंतामणि" पर टीकाएं लिखी हैं जो "मूलगादाधारी" के नाम से प्रसिद्ध है "तत्त्व- चिंतामणि" के कुछ ही भागों पर टीका लिखी गई हैं। "शक्तिवाद" व "व्युत्पत्तिवाद", इनके न्याय-विषयक अत्यंत महत्त्वपूर्ण मौलिक ग्रंथ हैं
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इनके कुछ अन्य ग्रंथों के नाम हैं- मुक्तावली टीका, रत्नकोषवादरहस्य, आख्यातवाद, कारकवाद, शब्द- प्रामाण्यवाद रहस्य, बुद्धिवाद, युक्तिवाद, विधिवाद और विषयतावाद इ. । गागाभट्ट काशीकर ई. 17 वीं शताब्दी के महान् मीमांसक व धर्मशास्त्री । पैठण-निवासी दिनकर भट्ट के पुत्र । ये बाद में काशी गये। इनका वास्तविक नाम विश्वेश्वर था किन्तु पिताजी प्यार से गागा कहा करते। वही नाम रूढ हो गया। प्रमुख ग्रंथ- 1. मीमांसा - कुसुंमाजलि (पूर्वमीमांसावृत्ति), भाट्टचिंतामणि 3. राकागम (जयदेव के चंद्रालोक पर टीका), 4. दिनकरोद्योत (धर्मशास्त्र पर लिखे इस ग्रंथ का प्रारंभ पिता - दिनकर भट्ट ने किया था), निरूढपशुबंधप्रयोग, 5. पिडपितृयज्ञप्रयोग 6. सुज्ञान-दुर्गोदय (सोलह संस्कारों का विवेचन) 7. शिवाकोंदय (शिवाजी के आदेश पर पूर्वमीमांसा पर लिखा गया ), 8. समयनय ( यह ग्रंथ संभाजी राजा के लिये लिखा गया) 9 आपस्तंबपद्धति 10. अशौचदीपिका, 11. तुलादानप्रयोग, 12 प्रयोगसार और शिवराज्याभिषेकप्रयोग ।
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गागाभट्ट ने शिवाजी महाराज का व्रतबंध करा, वैदिक पद्धति से उनका राज्याभिषेक किया। शिवाजी सिसोदिया वंश के क्षत्रिय थे, यह अन्वेषण उन्होंने किया। ई. 16 व 17 वीं शताब्दी के मुस्लिम बादशाहों के दरबारों में भी उनके परिवार को सम्मान प्राप्त था । राज्याभिषेक के बाद शिवाजी ने विपुल धन-सम्पदा देकर उनका गौरव किया था ।
गागाभट्ट को शिवराज्याभिषेक - विधि के हेतु आमंत्रित किया जाने पर उन्होंने "शिवराज्याभिषेक प्रयोग" की रचना की थी जो पुणे के इतिहास-अन्वेषक वा. सी. बेन्द्रे द्वारा 42 पृष्ठों
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की प्रस्तुति सहित प्रकाशित है। मूल हस्तलिखित प्रति बीकानेर राज्य के संग्रह से प्राप्त हुई थी। डॉ. श्री. भा. वर्णेकर ने इसका मराठी अनुवाद किया, जो मुंबई विश्वविद्यालय के "कॉरोनेशन व्हॉल्यूम में मूल प्रथसहित 1974 में प्रकाशिर हुआ। गाडगीळ वसंत अनंत पुणे निवासी शारदा नामक पाक्षिक पत्रिका के संपादक एवं शारदागौरव ग्रंथमाला के संचालक । इस ग्रंथमाला में 50 से अधिक संस्कृत ग्रन्थों का प्रकाशन श्री गाडगील ने किया है।
गाथी ऋग्वेद के 19 से 22 वे सूक्तों के द्रष्टा । इनमें से दो सूक्तों में अश्विन की स्तुति की गई है। सर्वानुक्रमणि के अनुसार गाधी कुशिक के पुत्र और विश्वामित्र के पिता थे। गार्ग्य (गार्ग्याचार्य)- पाणिनि के पूर्ववर्ती वैयाकरण । पं. युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार इनका समय ई. पू. 4 थी शताब्दी है। पाणिनिकृत अष्टाध्यायी में इनका उल्लेख 3 स्थानों पर है- (1) 7-3-991 (2) 8-3-201 (3) 8-4-67।
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इनके मतों मतों के के उद्धरण "ऋक्प्रातिशाख्य" "वाजसनेय प्रातिशाख्य" में प्राप्त होते है। इससे इनके व्याकरणविषयक ग्रंथ की प्रौढता का परिचय प्राप्त होता है। इनका नाम गर्ग था और ये प्रसिद्ध वैयाकरण भारद्वाज कें पुत्र थे । यास्ककृत "निरुक्त" में भी एक गार्ग्य नामक व्यक्ति का उल्लेख है तथा "सामवेद" के पदपाठ को भी गार्ग्य-रचित कहा गया है। मीमांसाकजी के अनुसार "निरुक्त" में उद्धृत मत वाले गार्ग्य व वैयाकरण गार्ग्य अभिन्न है- "तत्र नामानि सर्वाण्याख्यातजानीति शाकटायनो निरुक्तसमयश्च न सर्वाणीति गाम्यों वैयाकरणानां चैके" (निरुक्त 1-12 ) ।
प्राचीन वाड्मय में गार्ग्य रचित कई ग्रंथों का उल्लेख प्राप्त होता है। वे हैं निरुक्त, सामवेद का पदपाठ, शालाक्य-तंत्र, भूवर्णन, तंत्रशास्त्र, लोकायतशास्त्र, देवर्षिचरित और सामतंत्र इनमें से सभी ग्रंथ वैयाकरण गार्ग्य के ही हैं या नहीं, यह प्रश्न विचारणीय है ।
गार्ग्य आंगिरस कुल के गोत्रकार व मंत्रकार ऋषि है। ये कुल मूलतः क्षत्रिय थे। बाद में इन्होंने तपोबल से ब्राह्मणत्व प्राप्त किया। गार्ग्य के सम्बन्ध में धर्म-शास्त्रकार होने का भी उल्लेख मिलता है। यद्यपि इनका सम्पूर्ण ग्रन्थ कहीं भी उपलब्ध नहीं है तथापि अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका, मिताक्षरा आदि ग्रंथों में इनके ग्रन्थ के अनेक उध्दरण लिये गये हैं । गालव - एक प्राक्पाणिनि वैयाकरण । पं. युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार इनका समय ई. पू. 4 थी शताब्दी है। आचार्य गालव का पाणिनि नं 4 स्थानों पर उल्लेख किया है( अष्टाध्यायी 6-3-61, 8-4-67, 7-1-74 और 7-3-99)। अन्यत्र भी इनकी चर्चा की गई है, जैसे- "महाभारत" के शांतिपर्व (342-103,104) में गालव, "क्रमपाठ" " शिक्षापाठ" के प्रवक्ता के रूप में वर्णित हैं। इन्होंने व्याकरण
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संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड / 309
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