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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व जैन पंडितों का तिरस्कार किया। जैन ग्रंथों के अनुसार कुमारिल भट्ट, महानदी के तट पर। स्थित जयमंगल नाम गावं के यज्ञेश्वर भट्ट के पुत्र थे। माता का नाम चन्द्रगुणा था। जन्मदिवस-वैशाख पोर्णिमा, रविवार, युधिष्ठिर संवत् 2110। इन्हें जैनियों ने साक्षात् यम की उपमा दी है। इन्होंने सर्वप्रथम जैमिनिसूत्र-भाष्य व जैन भंजन नामक ग्रंथों की रचना की थी। कुमारिल भट्ट प्रखर कर्मकाण्डी थे। बौद्ध मत का खण्डन करने हेतु बौद्धों से ही उनके मत का ज्ञान उन्होंने प्राप्त किया। इस काम में बौद्धों के सम्मुख उन्हें वेदमाता की निन्दा भी करनी पड़ी पर पूरा बौद्ध मत जान कर, उन्होंने उसका खण्डन किया, तथा कर्मकाण्ड की स्थापना की। एक अन्य कथा के अनुसार एक बार बौद्धों ने उन्हें अपने मत की पुष्टि के लिये पहाड पर से कूदने को कहा। वे सहर्ष तैयार हुए तथा "यदि वेद प्रमाण हैं, तो मुझे कुछ नहीं होगा"-- ऐसा कह कर कूद गए। वे जीवित तो रहे, पर "यदि" के प्रयोग से, प्रमाण्यशंका प्रकट होने से उनका पैर चौट खा गया। वेदमाता की अनिच्छा से की हुई निन्दा तथा "यदि" कहकर प्रकट हुई प्रामाण्यशंका के अपराधों के लिये उन्होंने "तुषाग्निसाधन" कर प्रायश्चित किया। जब वे तुषाग्नि पर बैठे थे, उनके पास विवाद करने तथा ज्ञानमार्ग की महत्ता स्थापित करने शंकराचार्य आए। उन्होंने "तुषाग्निसाधन" न करने की हार्दिक प्रार्थना कुमारिल भट्ट से की। वे नहीं माने। वादविवाद के लिये उन्होंने आचार्य को अपने प्रधान शिष्य मंडनमिश्र के पास भेजा। तुषाग्निसाधन से भट्ट की मृत्यु बडी कष्टदायक रही पर उन्होंने कृतनिश्चय होकर वह प्रायश्चित्त लिया। कुमुदचन्द्र- कतिपय विद्वानों के मत में सिद्धसेन दिवाकर का अपरनाम परन्तु यह मान्यता तथ्यसंगत नहीं मानी जाती। गुजरात-निवासी। गुजरात के जयसिंह सिद्धराज की सभा में गादी सीरदेव के साथ इनका शास्त्रार्थ हुआ था। समय- ई. 12 वीं शती। रचना-कल्याणमंदिर-स्तोत्र। यह स्तवन भावपूर्ण और सरस है। कुमुदेन्दु- मूलसंघ-नन्दिसंघ बलात्कार गण के विद्वान् । माघनन्दि सैद्धान्तिक के गुरु। कर्नाटक के संस्कृत कवि। समय- ई. 13 वीं शती। पिता-पद्मनन्दी व्रती। माता-कामाम्बिका । पितव्य-अर्हनन्दी व्रती। ये मन्त्रशास्त्र के भी विद्वान थे। ग्रंथ :कुमुदेन्दु-रामायण। कुलकर्णी, दिगम्बर महादेव- संस्कृताध्यापक न्यू इंग्लिश स्कूल, सातारा । रचना-धारायशोधारा । इस लघुकाव्य में कुलकर्णी ने मालव-प्रदेश तथा उसके इतिहास का वर्णन किया है। कुलकर्णी, सदाशिव नारायण- नागपुर की संस्कृत भाषा प्रचारिणी सभा के संस्थापक। रचना-व्यवहारकोश। संस्कृत भवितव्यम् साप्ताहिक में आपके अनेक निबंध प्रकाशित हुए। कुलभद्र- कार्यक्षेत्र-राजस्थान। समय- 13-14 वीं शती । रचना-सारसमुच्चय (330 पद्य)। यह धर्म और नीतिप्रधान सूक्तिकाव्य है। कुल्लूकभट्ट- समय- ई. 12 वीं शती। मनुस्मृति की टीका मन्वर्थमुक्तावली के रचयिता। बंगाल के नंदनगाव में वारेन्द्र ब्राह्मण-कुल में जन्म। पिता का नाम-भट्ट दिवाकर था। इनके धर्मशास्त्र विषयक अन्य ग्रन्थ हैं- स्मृतिसागर, श्राद्धसागर, विवादसागर व आशौचसागर। श्राद्धसागर में पूर्वमीमांसा विषयक चर्चा के साथ ही श्राद्ध सम्बन्धी जानकारी दी गयी है। कृपाराम तर्कवागीश- मैथिल पण्डित। वारेन हेस्टिंग्ज द्वारा नियुक्त ग्रंथ लेखन समिति के सदस्य । रचना-नव्यधर्मप्रदीपिका । कृष्णकवि-ई. 17 वीं शती। पिता-नारायण भट्टपाद । कृष्णकवि ने किसी राजा का चरित्र-ग्रथन धनाशा से अपने "ताराशशाङ्कम्" नामक काव्य में किया है। यह काव्य प्रकाशित हो चुका है। कृष्णकवि- रचना- रघुनाथभूपालीयम्। तंजौर के राजा रघुनाथ नायक के आश्रित । आपने आश्रयदाता का स्तवन तथा अलंकारों का निदर्शन इस रचना में किया है। राजा के आदेश पर विजयेन्द्रतीर्थ के शिष्य सुधीन्द्रयति की टीका लिखी। कृष्ण कौर- रचना भ्यंककाव्यम्। 16 सर्ग। विषय-सिक्खों का इतिहास। कृष्णकान्त विद्यावागीश (म.म.)- ई. 19 वीं शती। नवद्वीप (बंगाल) के निवासी। कृतियां-गोपाल-लीलामृत, चैतन्यन्द्रामृत तथा कामिनी-काम-कौतुकम् नामक तीन काव्य, न्याय-रत्नावली, उपमान-चिंतामणि और जगदीश की "शब्द-शक्ति-प्रकाशिका" पर टीकाएं। कृष्ण गांगेय- पिता-रामेश्वर। रचना- सात्राजितीपरिणयचम्पूः । कृष्णचंद्र- एक पुष्टिमार्गीय आचार्य। इन्होंने ब्रह्म-सूत्र पर, "भाव-प्रकाशिका" नामक महत्त्वपूर्ण वृत्ति लिखी है। यह वृत्ति, मात्रा में वल्लभाचार्य जी के "अणु-भाष्य" से बढ़ कर है। ये प्रसिद्ध पुष्टिमतीय आचार्य पुरुषोत्तमजी के गुरु थे। कृष्णजिष्णु- समय- ई. 15 वीं शती। भट्टारक रत्नभूषण आम्नाय के अनुयायी। पिता-हर्षदेव। माता-वीरिका। ग्रंथविमलपुराण (2364)। अनुज- मंगलदास की सहायता से इस ग्रंथ की रचना हुई। कृष्णदत्त मैथिल- ई. 18 वीं शती। बिहार में दरभंगा के निकट उझानग्राम के निवासी। पिता-भवेश। माता-भगवती। भाई-पुरन्दर, कुलपति तथा श्रीमालिका। परम्परा से शैव या शाक्त पण्डित । सम्पति वंशज ऋद्धिनाथ झा, दरभंगा के निकट लोहना में संस्कृति विद्यापीठ के प्राचार्य। नागपुर के देवाजीपंत से समाश्रय प्राप्त । कृतियां- पुरंजनविजयम्, तथा कुवलयाश्वीयम् (नाटक), गीतगोपीपति व राधा-रहस्य (काव्य), सान्द्रकुतूहल. संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 299 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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