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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (प्रहसन) और गीतगोविंद पर गंगा नामक व्याख्या, जो से रचित ज्योतिःशास्त्र विषयक ग्रंथ है। विद्वानों द्वारा समादृत । राधाकृष्ण के साथ गीतगोविंद का प्रत्येक गीत शिव-पार्वती-परक कृष्णनाथ न्यायपंचानन- ई. 19 वीं शती। बंगाली। कृतियांबताती है। रचनाएं संस्कृत-प्राकृत-मिश्रित हैं। शाकुन्तल व रत्नावली (नाटकों) पर संस्कृत टीकाएं । कृष्णदास कविराज- चैतन्य-मत के मूर्धन्य वैष्णव आचार्य। कृष्णनाथ न्यायपंचानन- ई. 20 वीं शती। बंगाली। षट्-गोस्वामियों के समान ही अपने निर्मल आचरण एवं जन्मग्राम-पूर्वस्थली (बंगाल) कृति- "वातदूतम्" (दूतकाव्य)। भक्ति-ग्रंथों के प्रणयन द्वारा भक्ति की प्रभा चतुर्दिक् छिटकाने कृष्णपन्त- ई. 19-20 वीं शती। पिता-वैद्यनाथ। पितामहवाले भक्तों में कृष्णदास कविराज की ख्याति सब से अधिक विश्वनाथ, गुरु- रंगाप्पा बालाजी। उन्नीसवीं शती के उत्तरार्ध है। वे बंगाल के बर्दवान जिले के निवासी थे। आपका जन्म तथा बीसवीं शती के प्रारम्भ में प्रणीत रचनाएं- कामकंदल 1496 ई. में हुआ था। पिता-भगीरथ। माता- सुनंदा देवी। (नाटक), रत्नावली (गद्य) तथा कालिका (मन्दाक्रान्ता) शतक। माता-पिता बचपन में ही परलोकवासी हुए। जाति के कायस्थ । कृष्णप्रसाद शर्मा घिमिरे- काठमांडू (नेपाल) के निवासी। श्यामदास नामक अपने भाई के नास्तिक विचारों से ये बड़े 20 वीं शती के एक श्रेष्ठ संस्कृत कवि। विद्यावारिधि एवं व्यथित रहा करते थे। बचपन में ही ग्रंथ-रचना में संलग्न कविरत्न इन उपाधियों से विभूषित। आपके द्वारा लिखित 4 हुए। इनके प्रमुख संस्कृत ग्रंथों के नाम हैं- गोविंद-लीलामृत, महाकाव्य हैं। (1) श्रीकृष्ण चरितामृतम् (दो विभागों में कृष्णकर्णामृत की टीका, प्रेम-रत्नावलि, वैष्णवाष्टक, प्रकाशित), (2) नाचिकेतसम्. (3) वृत्रवधम् और (4) कृष्णलीलास्तव, रागमाला आदि। ययातिचरितम्। इन 4 महाकाव्यों के अतिरिक्त मनोयान और ___ आपकी सर्वश्रेष्ठ रचना है- “चैतन्यचरितामृत"। यह ग्रंथ श्रीरामविलाप नामक दो खंड-काव्य तथा पूर्णाहुति और महामोह बंग-भाषा में है पर उसमें ब्रज भाषा का भी पर्याप्त मिश्रण नामक दो नाटक भी शर्माजी ने लिखे हैं। श्रीकृष्णगद्यसंग्रह है। इस 3 खंडों वाले ग्रंथ में चैतन्य महाप्रभु के जीवन और श्रीकृष्णपद्यसंग्रह की भी रचना आपने की है। आपके चरित्र का विस्तृत वर्णन है। जिस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास द्वारा निर्मित सत्सूक्तिकुसुमांजलि, सत्पुरुषों के स्तुतिपर काव्यों का ग्रंथ रामचरित मानस हिन्दी भाषी जनता के लिये सकल का संग्रह है। संपातिसंदेश एक संदेशकाव्य है। (कुल ग्रंथ 12)। शास्त्रों का सार तथा निःस्पंद है, उसी प्रकार कृष्णदास कविराज कृष्णम्माचार्य आर. व्ही.- पंचम जार्ज के राज्यभिषेक पर का चैतन्य-चरितामृत बंगाल की वैष्णव जनता के लिये पूज्य है। रचित काव्य चक्रवर्तिचत्वारिंशत्। अन्य रचनाएं- (1) सुगम भाषा में दुर्गम तत्त्वों का विशदीकरण इस ग्रंथ-रत्न कादम्बरीसारः, (2) हर्षचरितसारः, (3) वेमभूपालचरितम्, (4) की विशेषता है। भक्तों के आग्रह पर 79 वर्ष की आयु में महाकविसुभाषितानि, (5) साहित्यरत्नमंजूषा, (6) कविराज ने इस ग्रंथ की रचना प्रारंभ की और 7 वर्षों में सुभाषितशतकम्, (7) प्रस्तुतांकुरविमर्शः (8) विलुप्तकौतुकम्, ग्रंथ पूरा किया। (9) वृत्तवार्तिकटीका, (10) चित्रमीमांसाटीका, (11) कृष्णदास कविराज के समकालीन नित्यानंददास के विख्यात वाणीविलापः, (12) अकलापिविलापः, (13) अन्यापदेश, ग्रंथ प्रेमविलास में कविराज अवसान की विचित्र घटना (14) वायसवैशसम्, (15) श्रीदेशिक-त्रिंशत्, (16) उल्लिखित है। तद्नुसार कविराज ने जब सुना कि उनके ग्रंथ धर्मराजविज्ञप्तिः, (17) भारतगीता (स्वदेशस्तुतिपरक) आदि। की एकमात्र हस्तलिखित प्रति को डाकू लूट में ले गए तो ये सभी काव्य मुद्रित हो चुके हैं। तत्क्षण इनकी मृत्यु हो गई। यह घटना 1598 ई. की है। कृष्णम्माचार्य- पिता- रंगनाथाचार्य। तिरुपति के निवासी। इस प्रकार वे पूरे 102 वर्ष जीवित रहे। रचना- (1) मन्दारवती, आधुनिक शैली में 18 प्रकरणों का कृष्णदास सार्वभौम भट्टाचार्य- ई. 17 वीं शती। उपन्यास। (2) विलापतरंगिणी। (3) रसाणवतरंग-भाण। तत्त्वचिन्तामणि, दीधितिप्रसारिणी तथा अनुमानालोकप्रसारिणी नामक कृष्ण मिश्र - समय- ई. 11 वीं शती। बंगाल के निवासी। तीन रचनाएं इनके नाम पर प्राप्त हैं। आपका "प्रबोधचंद्रोदयम्" नामक नाटक अत्यंत वैशिष्ट्यपूर्ण कृष्णदेवराय- विजयनगर के राजा। शासनकाल 1509 से है। यह नाटक प्रयोगक्षम नहीं है। फिर भी उच्च धार्मिक 1530 ई. तक। तुलवराजवंश में जन्म। पिता का नाम नरस।। विचार और गंभीर तत्त्वज्ञान का काव्यमय आविष्कार करने में कृतियां- तेलगु और संस्कृत में कतिपय रचनाएं। संस्कृत इस नाटक ने जो सफलता प्राप्त की, वही अपने-आप में रूपक-उषापरिणय, जाम्बवती-कल्याण, रसमंजरी (गद्यप्रबंध) बहुत-कुछ है। इस नाटक के पात्र मानवी नहीं, वे भावरूप तेलगु ग्रंथ मदालसाचरित, सत्यावधूसान्त्वन, सकलकथासंग्रह एवं प्रतीकात्मक हैं। आध्यात्मिक भावनाओं को रूपकों द्वारा और ज्ञान-चिन्तामणि। दृश्य करते हुए, इस नाटक में उनका परस्पर संबंध भली कृष्णदैवज्ञ- समय 17 वीं शती। रचना- करणकौस्तुभ। यह भांति दर्शाया गया है। इस नाटक का उद्देश्य है विष्णुभक्ति पंचागशुद्धि के प्रयास हेतु छत्रपति शिवाजी महाराज के आदेश की महिमा स्थापित करना। इनकी इस नाट्य-शैली का अनुकरण 300 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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