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शंकराचार्य एवं वाचस्पति मिश्र ने इन्हें विशिष्टाद्वैतवादी कहा है। आसुरि - सांख्यदर्शन के प्रवर्तक महर्षि कपिल के साक्षात् शिष्य। डॉ. ए. बी. कीथ के अनुसार ये ऐतिहासिक पुरुष नहीं। इसके विपरीत म.म. डॉ. गोपीनाथ कविराज एवं 'सांख्य फिलॉसफी' नामक ग्रंथ के प्रणेता डॉ. गो. ने इन्हें ऐतिहासिक व्यक्ति माना है। 725 ई. के आसपास हुए हरिभद्र सूरि नामक एक जैन विद्वान ने, अपने ग्रंथ 'षड्दर्शनसमुच्चय' में, 'आसुरि' नाम से एक श्लोक उद्धृत किया है - महाभारत (शांतिपर्व) भागवत में भी कपिल द्वारा विलुप्त 'सांख्य-दर्शन' का ज्ञान, अपने शिष्य 'आसुरि' को देने का वर्णन है। उक्त तथ्यों के प्रकाश में 'आसुरि'को काल्पनिक व्यक्ति मानना उचित नहीं है। इनकी कोई भी रचना प्राप्त नहीं होती। इंदुलेखा- एक कवयित्री। इनका केवल एक श्लोक वल्लभदेव की 'सुभाषितावली' में प्राप्त होता है
एके वारिनिधौ प्रवेशमपरे लोकांतरालोकनं, केचित् पावकयोगितां निजगदुः क्षीणेऽहनि चंडार्चिषः । मिथ्या चैतदसाक्षिकं प्रियसखि प्रत्यक्षतीव्रातप,
मन्येऽहं पुनरध्वनीनरमणीचेतोऽधिशेते रविः ।। इसमें सूर्यास्त के संबंध में सुंदर कल्पना है- 'किसी का कहना है कि सूर्यदेव संध्याकाल में समुद्र में प्रवेश कर जाते हैं। पर किसी के अनुसार वे लोकांतर में चले जाते हैं पर मुझे ये सारी बातें मिथ्या प्रतीत होती हैं। इन घटनाओं का कोई प्रमाण नहीं है। प्रवासी व्यक्तियों की नारियों का चित्त विरहजन्य बाधा के कारण अधिक संतप्त रहता है। ज्ञात होता है कि सूर्यदेव इसी कोमल चित्त में रात्रि के समय शयन करने के लिये प्रवेश करते है, जिससे उनमें अत्यधिक गर्मी उत्पन्न हो जाती है। इस श्लेक के अतिरिक्त इस कवयित्री के संबंध में कुछ भी जानकारी नहीं है। इंद्र (इन्द्रदत्त)- कथासरित्सागर के चौथे तरंग के अनुसार पाणिनि के पूर्व भी व्याकरणकारों का एक सम्प्रदाय था। व्याडि, वररुचि एवं इंद्रदत्त उस सम्प्रदाय के प्रमुख थे। इंद्र का व्याकरण-ग्रंथ उपलब्ध नहीं परन्तु अभिनव शाकटायन के 'शब्दानुशासन' में उसके उद्धरण हैं। इन्द्र (प्रा.) - कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में संस्कृत के अध्यापक । रचना- भगवद्(बुद्ध) गीता (पाली धम्मपद का संस्कृत अनुवाद)। इन्द्रनन्दि- दक्षिणवासी प्रतिष्ठाचार्य और मन्त्रविद् । वासवनन्दि के प्रशिष्य और बप्पनन्दि के शिष्य। समय दशम शताब्दी। रचना- 'ज्वालमालिनीकल्प' (मंत्रशास्त्र)। इस ग्रंथ के 10 परिच्छेद और 372 पद्य हैं। इन्द्रभूति- एक प्रसिद्ध बौद्ध (वज्रयानी) ग्रंथकार। उड्डियान के राजा। पद्मसंभव के पिता। इनके तेईस ग्रंथों के अनुवाद तंजूर नामक तिब्बत के ग्रंथालय में मिलते हैं। 'कुरूकुल्लासाधन' एवं 'ज्ञानसिद्धि' ये दो ग्रंथ संस्कृत में उपलब्ध हैं।
इन्दुमित्र (इन्दु) - 'अनुन्यास' नामक काशिका-व्याख्या के रचयिता। इस व्याख्या के उद्धरण अनेक व्याकरण-ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। इनमें और तन्त्रप्रदीपकार मैत्रेयरक्षित में शाश्वत विरोध था। श्रीमान् शर्मा ने अनुन्याससार नामक टीका रची है। इन्हीं शर्मा ने सीरदेव की परिभाषावृत्ति' पर विजयाटीका की रचना की है। इम्मादि प्रौढ देवराय- विजयनगर नरेश (ई.स. 1422-1448)। रचना-रतिरत्न-प्रदीपिका। विषय- कामशास्त्र। इरिबिठि काण्व- ऋग्वेद के 8 वें मंडल के 16-18 सूक्तों के द्रष्टा । इ.सु. सुन्दरार्य- ई. 20 वीं शती। जन्म-तिरुचिरापल्ली । मद्रास के राजकवि। इन्हें म.म. पण्डितराज कृष्णमूर्ति शास्त्री द्वारा 'अभिनव-जयदेव', तथा संस्कृत साहित्य परिषद् द्वारा 'अभिनव-कालिदास' की उपाधियां प्राप्त हुई थीं।
ये तिरुचिरापल्ली की सं.सा. परिषद् के मंत्री रहे। ये अभिनेता तथा निर्देशक भी थे। कई प्राचीन संस्कृत नाटकों का निर्देशन इन्होंने किया।
कृतियां- समुद्रस्य स्वावस्थावर्णन (काव्य), स्तोत्रमुक्तावली, गानमंजरी, उमापरिणय तथा मार्कण्डेयविजय (नाटक) तथा तमिल में तीन उपन्यास। ईशानचन्द्र सेन- बंगाली। 'राजसूय-सत्कीर्ति-रत्नावली' नामक काव्य के रचयिता। ईश्वरकृष्ण- सांख्य-दर्शन के एक आचार्य और 'सांख्यकारिका नामक सुप्रसिद्ध ग्रंथ के रचयिता। शंकराचार्यजी ने अपने 'शारीरकभाष्य' में 'सांख्यकारिका' के उद्धरण प्रस्तुत किये हैं। अतः इनका शंकर से पूर्ववर्ती होना निश्चित है। विद्वानों ने इनका आविर्भाव-काल चतुर्थ शतक माना है, किंतु ये इससे भी अधिक प्राचीन हैं। 'अनुयोगद्वार-सूत्र' नामक जैन-ग्रंथ में 'कणगसत्तरी' नाम आया है जिसे विद्वानों ने 'सांख्यकारिका' के चीनी नाम 'सुवर्णसप्तति' से अभिन्न मान कर, इनका समय प्रथम शताब्दी के आस-पास निश्चित किया है। 'अनुयोगद्वार सूत्र' का समय 100 ई. है। अतः ईश्वरकृष्ण का उससे पूर्ववर्ती होना निश्चित है। ___ 'सांख्यकारिका' पर अनेक टीकाओं व व्याख्या-ग्रंथों की रचना हुई है। इनमें से वाचस्पति मिश्रकृत 'सांख्यतत्त्व-कौमुदी' सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण टीका है। काशी के हरेराम शास्त्री शुक्ल ने इस कौमुदी पर सुषमा नामक टीका लिखी है। डॉ. आद्याप्रसाद मिश्र के हिंदी अनुवाद के साथ सांख्यतत्त्वकौमुदी प्रकाशित हो चुकी है। ईश्वर शर्मा- ई. 18 वीं शती का मध्य। बिम्बली ग्राम (केरल) के निवासी। 'शृंगार-सुन्दर' नामक भाण के रचयिता। ईश्वरानन्द सरस्वती- रामचन्द्र सरस्वती के शिष्य। इन्होंने 'बृहत् महाभाष्य प्रदीप विवरण' की रचना की जिसकी तीन प्रतियां उपलब्ध हैं। इन्होंने अपने गुरु का नाम सत्यानन्द लिखा है।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 281
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