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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्रेय- तैत्तिरीय संहिता के पदपाठकार । भट्ट भास्कराचार्य ने अपने तैत्तिरीय संहिता के भाष्य में आत्रेयजी का निर्देश 'पदपाठकार', इस विशेषण से किया है। सभी संहिताओं के पद-पाठ एक ही समय में हुए होंगे, ऐसा विव्दानों का तर्क है। भादित्यदर्शन- कठमन्त्रपाठ के (सम्भवतः चारायणीय मन्त्र-पाठ के) भाष्यकार। पिता का नाम वेद और गुरु का नाम माधवरात। आदेन्त- महाभाष्यप्रदीप-स्फूर्ति के लेखक। पिताअतिरात्र-आप्तोर्यामयाजी वेंकट । आनंदगिरि- ई. 12 वीं सदी। इन्होंने शंकराचार्य के सभी भाष्यों पर टीकाएं लिखी हैं। शांकरदिग्विजय-ग्रंथ इन्हीं का माना जाता है। ग्रंथ की पुष्पिका में लेखक का नाम अनंतानंदगिरि है। आगे चल कर शंकराचार्य की गद्दी पर आसीन हुए। अद्वैतवेदान्त के इतिहास में इनका नाम अजरामर है। आनन्द झा- ई. 20 वीं शती। न्यायाचार्य। लखनऊ वि.वि. में व्याख्याता। 'पुनःसंगम' नामक रूपक के प्रणेता। आनन्दतीर्थ- समय 1283-1317 ई.। आनन्दतीर्थ का ही दूसरा नाम मध्वाचार्य था। इन्होंने ऋक्संहिता के चालीस सूक्तों पर भाष्य-रचना की। ये मध्व (द्वैत) संप्रदाय के प्रतिष्ठापक आचार्य थे। संहिता-मंत्रों का भगवत्परक अर्थ दिखलाने के लिए इन्होंने भाष्यरचना की। मध्व-संप्रदाय में जयतीर्थ और राघवेन्द्र नामक दो महापुरुष हुए। उन्होंने मध्वभाष्य का विस्तृत व्याख्यान किया। जयतीर्थजी के विवरण का फिर से विवरण नरसिंहाचार्यजी ने किया। नरसिंहाचार्यजी के समान नारायणाचार्य ने भी जयतीर्थ की व्याख्या का विवरण किया है। इस प्रकार आनन्दतीर्थजी का भाष्यग्रंथ अनेक व्याख्याकर्ताओं का प्रेरणा-स्थान रहा है। आनन्दतीर्थजी का भाष्य सर्वथा भक्तिसंप्रदाय का पुरस्कारक है। इन्होंने 'भागवततात्पर्य-निर्णय' नामक ग्रंथ की भी रचना की है। आनन्दनारायण- ई. 18 वीं शती। ये 'पंचरत्न कवि' के नाम प्रसिद्ध थे। इन्होंने राम-कथा पर आधारित 'राघवचरितम्' नामक 12 सर्गों का महाकाव्य लिखा। कवि ने अपने आश्रयदाता सरफोजी भोसले के नाम से यह काव्य प्रसिद्ध करने का प्रयास किया, इस लिये सरफोजी ही इसके कवि हैं, यह ग्रह रूढ हुआ। इस प्रकार का काव्य-लेखन करने की क्षमता विद्वान राजा सरफोजी में थी, यह वस्तुस्थिति भी इस ग्रह (धारणा) को कारणीभूत हुई होगी। आनन्दबोध- ई. १६ वीं शती। पिता- जातवेद भट्टोपाध्याय । आनन्दबोध भट्टोपाध्याय ने संपूर्ण काण्व-संहिता पर भाष्य-रचना की। अध्यायों की परिसमाप्ति पर इस भाष्य का नाम । 'काण्ववेदमन्त्र-भाष्यसंग्रह' ऐसा लिखा है। आनन्दराय मखी- ई. 17 वीं शती (उत्तरार्ध)। मृत्यु लगभग 1735 ई. में। तंजौर के मराठा राजा शाहजी प्रथम, सरफोजी प्रथम तथा तुकोजी के धर्माधिकारी एवं सेनाधिकारी। पितानृसिंहराय, एकोजी तथा शाहजी के मंत्री थे। पितामह गंगाधर-एकोजी के मंत्री थे। कृतियां- आश्वलायन-गृह्यसूत्र-वृत्ति, विद्यापरिणयन (नाटक), और जीवानन्दन (नाटक)। आनन्दवर्धन- काश्मीर के निवासी। समय 9 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध। प्रसिद्ध काव्यशास्त्री व ध्वनि-संप्रदाय के प्रवर्तक । काव्यशास्त्र के विलक्षण प्रतिभासंपन्न व्यक्ति। ध्वन्यालोक जैसे असाधारण ग्रंथ के. प्रणेता। 'राजतरंगिणी' में इन्हें काश्मीर नरेश अवंतिवर्मा का सभा-पंडित बताया गया है मुक्ताकणः शिवस्वामी कविरानन्दवर्धनः।। प्रथा रत्नाकराश्चागात् साम्राज्येऽवन्तिवर्मणः।। (5-4)। -मुक्ताकण, शिवस्वामी, आनंदवर्धन एवं रत्नाकर अवंतिवर्मा के साम्राज्य में प्रसिद्ध हुए। ___ अवंतिवर्मा का समय 855 से 884 ई. तक माना जाता है। आनंदवर्धन द्वारा रचित 5 ग्रंथ- विषमबाणलीला, अर्जुनचरित, देवीशतक, तन्त्रालोक और ध्वन्यालोक। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ 'ध्वन्यालोक' में ध्वनि-सिद्धांत का विवेचन किया गया है, और अन्य सभी काव्यशास्त्रीय मतों का अंतर्भाव उसी में कर दिया गया है। देवीशतक नामक ग्रंथ (श्लोक 110) में, इन्होंने अपने पिता का नाम 'नोण' दिया है। हेमचन्द्र के काव्यानुशासन में भी इनके पिता का यही नाम आया है। आनन्दवर्धन ने प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति के ग्रंथ 'प्रमाण-विनिश्चय' पर 'धोत्तमा' नामक टीका भी लिखी है। हरिविजय नामक प्राकृत काव्य के भी ये प्रणेता हैं। आपस्तंब- भृगुकुलोत्पन एक सूत्रकार ब्रह्मर्षि। कश्यप ऋषि ने दिति से जब पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया, तब आपस्तंब उसके आचार्य थे। पत्नी का नाम अक्षसूत्रा एवं पुत्र का कर्कि था। तैत्तिरीय शाखा (कृष्णयजुर्वेद की 15 अध्वर्यु शाखाओं में से एक) की एक उपशाखा के सूत्रकार। याज्ञवल्क्य-स्मृति में स्मृतिकार के रूप में इनका उल्लेख है। सर्वश्री केतकर, काणे एवं डॉ. बूल्हर के अनुसार, आपस्तंब आंध्र के रहे होंगे। ग्रंथरचना- 1. आपस्तंब श्रौतसूत्र, 2. आ. गृह्यसूत्र, 3. आ. ब्राह्मण, 4. आ. मंत्रसंहिता, 5. संहिता, 6. आ. सूत्र, 7. आ. स्मृति, 8. आ. उपनिषद्, 9. आ. अध्यात्मपटल, 10. आ. अन्त्येष्टिप्रयोग, 11. आ. अपरसूत्र, 12. आ. प्रयोग. 13. आ. शल्बसूत्र और 14. आ. धर्मसूत्र। आपस्तंब-धर्मसूत्र का रचनाकाल ई. पूर्व 6 से 3 शती है। इनके माता-पिता के नाम का पता नहीं चलता। निवास स्थान के बारे में भी विद्वानों में मतैक्य नहीं है। डॉ. बूलर प्रभृति के अनुसार ये दाक्षिणात्य थे, किंतु एक मंत्र में यमुनातीरवर्ती साल्वदेशीय स्त्रियों के उल्लेख के कारण, इनका निवास स्थान मध्यदेश माना जाता है। इनके 'आपस्तंब-धर्मसूत्र' पर हरदत्त 278 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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