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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गति से प्रवाहित होती है। अश्वघोष, सम्राट् कनिष्क के समसामयिक थे। स्थिति-काल ई. प्रथम शती है। बौद्ध धर्म के अनेक तथ्य प्राप्त होते हैं, जिनके अनुसार ये कनिष्क के समकालीन सिद्ध होते हैं। चीनी परंपरा के अनुसार अश्वघोष बौद्धों की चतुर्थ संगीति या महासभा में विद्यमान थे। यह सभा काश्मीर के कुंडलवन में कनिष्क द्वारा बुलाई गई थी। अश्वसूक्ति काण्वायन एक वैदिक सूक्तद्रष्टा । इंद्र को सोम अर्पण न करनेवाली विमुक्त जमातों का उल्लेख इनके सूक्तों में है। ये सामद्रष्टा भी थे। अष्टावधानी सोमनाथरचना- स्वररागसुधारसम् नाट्यचूडामणि । संभवतः ये ही तेलगु कवि नाचन सोमन हैं, जिन्हें बुक्कराव प्रथम (विजयनगर) ने दान दिया था। समयई. 14 वीं शती । या - www.kobatirth.org - अतः इनका ग्रंथों में ऐसे असंग (आर्य वसुबंधु असंग) प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक वसुबंधु के ज्येष्ठ भ्राता। पुरुषपुर (पेशावर) निवासी कौशिक गोत्रीय ब्राह्मण कुल में जन्म समय तृतीय शताब्दी के अंत व चतुर्थ शताब्दी के मध्य में समुद्रगुप्त के समय में विद्यामान । गुरु- मैत्रेयनाथ । बौद्धों के योगाचार - संप्रदाय के विख्यात आचार्य। इनके ग्रंथ चीनी भाषा में अनूदित है (उनके संस्कृत रूपों का पता नहीं चलता) इनके ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है (1) महायान संपरिग्रह- इसमें अत्यंत संक्षेप में महायान सिद्धांतों का विवेचन है। चीनी भाषा में इसके 3 अनुवाद प्राप्त होते हैं। (2) प्रकरण आर्यवाचा यह ग्रंथ 11 परिच्छेदों में विभक्त है। इसका प्रतिपाद्य है योगाचार का व्यावहारिक एवं नैतिक पक्ष । ह्वेनसांग कृत चीनी अनुवाद उपलब्ध है। (3) योगाचारभूमिशास्त्र अथवा सप्तदश भूमिशास्त्रयह ग्रंथ अत्यंत विशालकाय है। इसमें योगाचार के साधन-मार्ग का विवेचन है। संपूर्ण ग्रंथ अपने मूल रूप में (संस्कृत में) हस्तलेखों में प्राप्त है। राहुलजी ने इसका मूल हस्तलेख प्राप्त किया था। इसका छोटा अंश (संस्कृत में) प्रकाशित भी हो चुका है। (4) महायानसूत्रालंकार ये अपनी रचनाओं के कारण अनेक गुरु से भी सुप्रसिद्ध हुए। असंग- ई. 10 वीं शती । जन्तमः ब्राह्मण, बाद में जैन मत का स्वीकार किया । पिता-पटुमति। माता-पैरेत्ति । गुरु-नागनन्दी । पुत्र- जिनाप । दक्षिण भारतीय चोल राजा श्रीनाथ के समकालीन । रचनाएं वर्द्धमानचरित, शान्तिनाथचरित (2500 पद्य), लघु शान्तिनाथपुराण (12 सर्ग, उत्तरपुराण की कथावस्तु पर आधारित) । असहाय- मनुस्मृति के एक टीकाकार। मेघातिथि के साथ इनका नाम लिया जाता है। गौतमधर्मसूत्र और नारदसूत्र पर भी इन्होंने टीकाएं लिखी है। अहोबल ये भास्कर वंशोत्पन्न थे। पिता का नाम नृसिंह Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir था। इन्होंने रुद्राध्याय का विस्तृत व्याख्यान किया है। भाष्य (व्याख्यान ) श्लोक-रूप में है। इस टीका का अन्य नाम 'कल्पलता' है । अहोबलाचार्यजी ने गद्यरूप काव्य भी लिखा हो ऐसा तर्क है। अहोबल ई. 17 वीं सदी। संगीतपारिजात नामक ग्रंथ के कर्ता । द्रविड ब्राह्मण। पिता श्रीकृष्ण पंडित । पिता के पास संगीतशास्त्र का अध्ययन । धनवड रियासत के आश्रय में रह कर हिन्दुस्थानी संगीत का अभ्यास किया। इनके ग्रंथ में, श्रुति और स्वर भिन्न नहीं, एक हैं, यह प्रतिपादित किया गया है। विशिष्ट स्वर की ध्वनि के लिये खीणा की तार विशिष्ट लंबाई की चाहिये, इस खोज का श्रेय इन्हीं को दिया जाता है । अहोबल - नृसिंह- मैसूर नरेश वोडियार, द्वितीय (1732-1760 ई.) तथा चामराज वोडियार (1760-1776 ई.) द्वारा सम्मानित । 'नलविलास' नामक छः अंकी नाटक के प्रणेता। 'यतिराजविजय अहोबल-सूरिके चंपू' रचयिता । पिता- वेंकटाचार्य, माता लक्ष्मीअंबा गुरु-राजगोपाल मुनि । समय ई. 14 वीं शती का उत्तरार्ध । 'यतिराजविजय- चंपू' में रामानुजाचार्य के जीवन की घटनाएं वर्णित हैं। इन्होंने 'विरूपाक्ष वसंतोत्सव' नामक एक अन्य चंपू की भी रचना की है। इसमें 9 दिनों तक चलने वाले विरूपाक्ष महादेव के वसंतोत्सव का वर्णन है । यह काव्य मद्रास से प्रकाशित हो चुका है। आंगिरस- अथर्ववेद के प्रवर्तक । द्विरात्रयाग का प्रारंभ इन्हीं के द्वारा माना जाता है । आप्रायण यास्काचार्य ने अपने निरुक्त में जिन प्राचीन आचार्यो का निर्देश किया है, उनमें आग्रायण एकतम है । निरुक्त में आग्रायण का मत चार बार उद्धृत किया गया है। आंजनेय- संगीतविद्या के प्राचीन ज्ञाता। नारद, शागदेव, शारदातनय आदि ने इनके मतों को उद्धृत किया है। इन्होंने 'हनुमद - भरतम्' नामक ग्रंथ की रचना की है। आत्मानन्द - ई. 13 वीं शती । ऋग्वेदान्तर्गत 'अस्यवामीय सूक्त' के भाष्यकार । केवल एक छोटे-से सूक्त पर भाष्य-रचना करते हुए ग्रंथकार ने लगभग सत्तर ग्रंथों का प्रमाण दिया है। इस भाष्य के अंत में आत्मानन्द लिखते हैं "अधियज्ञ-विषये स्कन्दादिभाष्यम्। निरुक्तमधिदैवत-विषयम् । इदं तु भाष्य-मध्यात्मविषयम्। न च भिन्नविषयाणां विरोधः ।" अर्थात् स्कंदादि आचार्यो का भाष्य यज्ञीय विचारों तथा निरुक्त दैवत विचारों से निगडित है; किन्तु यह भाष्य आध्यात्मिक दृष्टिकोण से लिखा गया है। विषय भिन्न होने के कारण निर्दिष्ट भाष्यों का अन्यान्य विरोध होने की कोई संभावना नहीं । आध्यात्मिक दृष्टि से मंत्रों का व्याख्यान करने की परंपरा इस देश में बहुत पुरातन है। इस परंपरा का पालन रावणाचार्य ने भी किया, यह उल्लेखनीय है आत्मानन्दाचार्य, शंकरमतानुयायी अव्दैतवादी थे। For Private and Personal Use Only संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड / 277
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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