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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचनसार-टीका और पंचास्तिकाय-टीका । अम्मल (अमलानंद)- 'रुक्मिणी-परिणय-चंपू' नामक काव्य के रचयिता। समय- ई. 14 वीं शती का अंतिम चरण । अम्मल को अमलानंद से अभिन्न माना गया है, जो प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य थे। इन्होंने 'वेदांत-कल्पतरु' (भामती-टीका की व्याख्या), 'शास्त्र-दर्पण' तथा पंचपादिका की 'व्याख्या' नामक ग्रंथों का भी प्रणयन किया है। देवगिरि के यादवों के राज्य में निवास था। अम्माल आचार्य - समय- ई. 17 वीं सदी का अंतिम चरण। कानेई के वैष्णव आचार्य। पिता-घटित सुदर्शनाचार्य। रामानुज के दर्शन एवं दिग्विजय पर यतिराजविजय अथवा वेदांतविलास नामक नाटक की रचना । अन्य कृतियां हैं चोलभाण व वसंततिलकाभाण। अमियनाथ चक्रवर्ती- मृत्यु सन् 1970 में। एम.ए. तथा काव्यतीर्थ । हुगली में संस्कृत-परिषद के संस्थापक। पिता-दुर्गानाथ । पुत्री-डॉ. वाणी भट्टाचार्य। कृतियां-हरिनामामृत, सम्भवामि युगे युगे, धर्मराज्य, श्रीकृष्ण-चैतन्य और मेघनाद-वध। अय्यपार्य- मूल संघान्वयी पुष्पसेन के शिष्य । पिता-करुणाकर । माता- अर्काम्बा । गोत्र- काश्यप । मंत्रचिकित्सा-शास्त्र के विशेषज्ञ । कार्यक्षेत्र-वरंगल (तैलंग देश की राजधानी)। समय- ई. 14 वीं शती, राजा रुद्रदेव के काल में । ग्रंथ- जिनेन्द्र-कल्याणाभ्युदय। अरुणगिरिनाथ (द्वितीय)- कुमारडिण्डिम तथा डिण्डिम चतुर्थ के नाम से भी ज्ञात। पिता-राजनाथ (द्वितीय)। आश्रयदाता- (1) विजयनगर के राजा वीरनरसिंह (1505 से 1509 ई.) तथा (2) कृष्णदेव राय (1509 से 1530 ई.)। पारेन्द्र अग्रहार के निवासी। 'कविराज' तथा 'डिण्डिम', 'कविसार्वभौम' की उपाधियों से समलंकृत। अनेक भाषाओं पर अधिकार। कृतियां- वीरभद्रविजय (संस्कृत- डिम) और कृष्णराजविजयम् (तेलगु)। अरुणदत्त- ई. 12 वीं शती के लगभग। पिता-मृगांकदत्त । बंगाल के निवासी। कृतियां- सर्वांग-सुन्दरा (वाग्भट के 'अष्टांगहृदय' पर भाष्य) और सुश्रुत पर भाष्य। अरुणमणि (लालमणि)- काष्ठासंघ, माथुरगच्छ, पुष्करगण के गृहस्थ-विद्वान। श्रुतकीर्ति के प्रशिष्य और बुधराघव के शिष्य। पिता-कान्हणसिंह । ग्रंथनाम- 'अजितनाथ-पुराण'। अर्जुन मिश्र- महाभारत के टीकाकार । 'पुराणसर्वस्व' ग्रंथ के रचयिता। बंगाल के निवासी। अलमेलम्मा- मद्रास निवासी। ई. 1922 में इस विदुषी ने 'बुद्धचरितम्' की रचना की। अहंददास (अर्हत)- ई. 13 वीं शती (अंतिम चरण) । आशाधर के शिष्य। मालव प्रदेश कार्यक्षेत्र रहा। ग्रंथ-मुनिसुव्रतकाव्य (10 सर्ग) उत्तरपुराण पर आधारित, पुरुदेव-चम्पू (10 स्तबक) और भव्यजनकण्ठाभरण (242 पद्य)। 'पुरुदेव चम्पू में इन्होंने जैन संत पुरुदेव का जीवन-वृत्तांत दिया है। अवतार काश्यप- ऋग्वेद के नौवें मंडल के 53 से 60 सूक्त इनके नाम पर हैं। सोमपान से योद्धा में वीरश्री उत्पन्न होती है, यह इन सूक्तों में प्रतिपादित है। अश्वघोष- एक बौद्ध महाकवि। इनके जीवन-संबंधी अधिक विवरण प्राप्त नहीं होते। इनके 'सौंदरनंद' नामक महाकाव्य के अंतिम वाक्य से विदित होता है कि इनकी माता का नाम सुवर्णाक्षी तथा निवास स्थान का नाम साकेत था। 'महाकवि' के अतिरिक्त, ये 'भदन्त', 'आचार्य', 'महावादी' आदि उपाधियों से भी विभूषित थे। उपाधियों की पुष्टि होती है। __इनके ग्रंथों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि ये जाति के ब्राह्मण रहे होंगे। इनकी रचनाओं का प्रधान उद्देश्य है बौद्ध धर्म के विचारों को काव्य के परिवेश में प्रस्तुत कर, उनका जनसाधारण के बीच प्रचार करना। अश्वघोष का व्यक्तित्व बहुमुखी है। इन्होंने समान अधिकार के साथ काव्य एवं धर्मदर्शन विषयक ग्रंथों का प्रणयन किया है। इनके नाम पर प्रचलित ग्रंथों का परिचय इस प्रकार है :(1) वज्रसूची- इसमें वर्ण-व्यवस्था की आलोचना कर सार्वभौम समानता के सिद्धांत को अपनाया गया है। कतिपय विद्वान इसे अश्वघोष की कृति मानने में संदेह प्रकट करते हैं। (2) महायान- श्रद्धोत्पाद शास्त्र- यह दार्शनिक ग्रंथ है। इसमें विज्ञानवाद एवं शून्यवाद का विवेचन किया गया है। (3) सूत्रालंकार या कल्पनामंडितिका- सूत्रालंकार की मूल प्रति प्राप्त नहीं होती। इसका केवल चीनी अनुवाद मिलता है जो कुमारजीव नामक बौद्ध विद्वान् ने पंचम शती के प्रारंभ में किया था। इस ग्रंथ में धार्मिक एवं नैतिक भावों से पूर्ण काल्पनिक कथाओं का संग्रह है। (4) बुद्धचरित- यह एक प्रसिद्ध महाकाव्य है। इसमें भगवान बुद्ध का चरित्र, 28 सर्गों में वर्णित है। रघुवंश और बुद्धचरित में यत्र तत्र साम्य है। (5) सौंदरनंद- यह भी महाकाव्य है। इसमें भगवान बुद्ध के अनुज नंद का चरित्र वर्णित है। (6) शारिपुत्र-प्रकरण- यह एक नाटक है जो खंडित रूप में प्राप्त होता है। इसमें मौद्गल्यायन एवं शारिपुत्र को बुद्ध द्वारा दीक्षित किये जाने का वर्णन है। ___ इनकी समस्त रचनाओं में बौद्धधर्म के सिद्धांतों की झलक दिखाई देती है। बुद्ध के प्रति अटूट श्रद्धा तथा अन्य धर्मो के प्रति सहिष्णुता, इनके व्यक्तित्व की बहुत बड़ी विशेषता है। इनका व्यक्तित्व एक यशस्वी महाकाव्यकार का है। इनकी कविता में श्रृंगार, करुण, एवं शांतरस की वेगवती धारा अबाध 276/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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