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अमरकीर्ति ऐन्द्रवंश के एक प्रसिद्ध विद्वान त्रैविद्य उपाधिप्राप्त। समय- 13-14 वीं शती । ग्रंथ- धनंजय कवि की नाममाला का भाष्य । इस भाष्य में यशः कीर्ति, अमरसिंह, हलायुध इन्द्रनंदी, सोमदेव, हेमचन्द्र, आशाधर आदि कवि उल्लिखित हैं।
अमरचन्द्र सूरि (कविसार्वभौम) जन्मतः ब्राह्मण, पर याद में जैनधर्म के श्वेताम्बर - सम्प्रदाय में दीक्षित हुए। आपने वायडगच्छ के जिनदत्त सूरि के शिष्य कविराज अरिसिंह से सारस्वत - मंत्र की प्राप्ति की, जिसकी साधना पद्मश्रावक के भवन के एकान्त भाग में की थी। इनके पाण्डित्य से आकृष्ट होकर वाघेलावंशी गुजरेश्वर बीसलदेव (ई. 14 वीं शती) ने इन्हें अपनी राजसभा में निमन्त्रित किया था। उन्होंने वहां 108 समस्याओं की पूर्ति करते हुए राजसभा को विस्मित कर दिया । इनके आशुकवित्व से वस्तुपाल भी प्रभावित थे। इन्होंने यंगियाबाडा में मूर्ति प्रतिष्ठापित की। समय- 13 वीं शती ।
ग्रंथ- 1. चतुर्विंशति जिनेन्द्र-संक्षिप्तचरितानि (24 अध्याय और 1802 पद्य), 2. पद्मानन्द महाकाव्य (जितेन्द्रचरित 18 सर्ग और 6381 पद्य), 3. बालभारत (18 पर्व, 44 सर्ग, 6950 श्लोक ), 4. काव्यकल्पलता या कवि-शिक्षा, 5. काव्य- कल्पलतावृत्ति, 6. सुकृत संकीर्तन, 7. काव्यकल्पलता मंजरी, 8 स्वादिशब्दसमुच्चय, 9. काव्यकल्पलतापरिमल, 10 काव्यकलाप, 11. छन्दोरत्नावली, 12. अलंकार - प्रबोध और 13. सूक्तावली।
अमरदत्त ई. 10 वीं शती के पूर्व बंगाल निवासी । 'अमरमाला' नामक कोश के कर्ता ।
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अमरदेवसूरि चन्द्रगच्छ के एक विद्वान इस गच्छ में वर्धमान सूरि की शिष्य परंपरा में पद्मेन्दु के शिष्य । समय ई. 13 वीं शताब्दी। आप का सफल महाकाव्य, लोककथा पर आधारित एवं सुप्रसिद्ध पंच महाकाव्यों के संदर्भों से प्रभावित है।
अमरमाणिक्य- ई. 16 वीं शती नोआखाली के राजा लक्ष्मणमाणिक्य के पुत्र वैकुण्ठविजय (नाटक) के प्रणेता। अमरुक (अमरु ) 'अमरु - शतक' नामक प्रसिद्ध शृंगारिक मुक्तक काव्य के रचयिता। इसमें एक सौ से अधिक स्फुट पद्य हैं। इनके जीवन-वृत के विषय में अधिकृत जानकारी प्राप्त नहीं होती । अन्य ग्रंथों में उद्धृत इनके पद्यों के आधार पर इनका समय 750 ई. के पूर्व निश्चित होता है ।
अमरुक से संबंधित निम्न दो प्रशस्तियां प्राप्त होती हैं। भ्राम्यन्तु मारवयामे विमूढा रसमीप्सवः । अमरुद्देश एवासौ सर्वतः सुलभी रसः ।।
अमरक- कवित्व- डमरूक नदेन विहिता न संचरति । श्रृंगारभणितिरन्या धन्यानां श्रवणविवरेषु ।।
(सूक्ति-मुक्तावली 4-101)
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एक किंवदंती के अनुसार अमरुक जाति के स्वर्णकार थे। ये मूलतः श्रृंगार रस के कवि है अपने सुप्रसिद्ध मुक्तक काव्य में इन्होंने तत्कालीन विलासी जीवन (दांपत्य एवं प्रणय- व्यापार) का सरस चित्र खींचा है, जिसे परवर्ती साहित्याचार्यो ने अपने लक्षणों के अनुरूप देखकर, लक्ष्य के रूप में उद्धृत किया है।
शांकरदिग्विजय में कहा गया है कि शंकराचार्य ने जिस मृत राजा की देह में प्रवेश किया था, उसका नाम अमरु था। कहा जाता है कि अमरु की देह में प्रवेश करने के बाद, वात्स्यायन -सूत्र के आधार पर शंकराचार्य ने कामशास्त्र की विविध अवस्थाओं और प्रसंगों पर सौ श्लोक लिखे । अमरुशतक संस्कृत प्रणय-काव्य की सर्वश्रेष्ठ रचना है। दीर्घ और नादमधुर छंद इसकी विशेषता है।
अमरु के अनुसार प्रणय ही सर्वंकश देवता है। एक मुग्धा का शब्दचित्र प्रस्तुत है :
मुग्धे मुग्धतयैव नेतुमखिलः कालः किमारभ्यते मानं धत्स्व धृतिं बधान, ऋजुतां दूरे कुरु प्रेयसि । सख्यवं प्रतिबोधिता प्रतिवचस्तामाह भीतानना
नीचैः शंस हृदि स्थितो हि ननु मे प्राणेश्वरः श्रोष्यति । । अर्थ- हे मुन्धे तू अपना समय मुन्धावस्था (भोलेपन) में ही क्यों व्यतीत कर रही है? अरी प्रेमिके, जरा रूठ, धैर्य रख और प्रियतम से सरलता को दूर रख । सखी के इस उपदेश पर, प्रेयसी मुद्रा पर भय दिखाते हुए सखी से बोलीअरी जरा धीरे बता हृदय में बसा मेरा प्राणेश्वर सन लेगा । अमरसिंह- अमरकोश नामक सुप्रसिद्ध संस्कृत शब्दकोश के कर्ता । परंपरा के अनुसार इन्हें विक्रम के नवरत्नों में स्थान प्राप्त था। विल्सन इनका काल ईसा पूर्व पहली सदी का मानते हैं, जबकि अन्य संशोधक ईसा की तीसरी या पांचवी सदी । अमितगति (प्रथम) अमितगति नामक दो ग्रंथकार हुए हैं। अमितगति (प्रथम) नेमिवेष के गुरु तथा देवसेन के शिष्य थे । समय-नवम शताब्दी का मध्यभाग । ग्रंथ-योगसार-1 र- प्राभृत।
अमितगति (द्वितीय) - ई. 11 वीं सदी । दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के माथुर संघ के एक ग्रंथकार । परमार वंश के वाक्पतिराज मुंज के दरबारी विद्वान । इनके ग्रंथों में प्रमुख हैंसुभाषितरत्नसंदोह, धर्मपरीक्षा और श्रावकाचार ( उपासकाचार), पंचसंग्रह, आराधना, भावनाद्वात्रिंशतिका, चंद्रप्रज्ञप्ति, साइयद्वीपप्रज्ञप्ति, व्याख्याप्रज्ञप्ति आदि ।
अमृतचन्द्र सूरि ई. 9 वीं शती कालिदास के टीकाकार मल्लिनाथ के समान ही कुन्दकुन्द के टीकाकार अमृतचन्द्र सूरि हैं। जन्मतः क्षत्रिय या ब्राह्मण ('ठक्कर' शब्द का प्रयोग मिलता है) । समय 10-11 वीं शती । रचनाएं- पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, तत्वार्थसार और समयसार कलश। टीकाग्रंथ- समयसार टीका,
संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड / 273
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