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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ- जिसने त्रिकाल विषय, सकल त्रैलोक्य, को हाथ की अंगुलियां और उन पर जो रेखाएं है, उनके समान साक्षात् देखा है एवं राग, द्वेष, भय, रोग, मृत्यु, जरा, चंचलता, लोभ ये विकार जिसके पद का उल्लंघन करने में असमर्थ हैं, उस महादेव (महावीर) को मैं वंदन करता हूं। अकालजलद - महाराष्ट्रीय कविचूडामणि राजशेखर के प्रपितामह । समय ई. 8-9 वीं शती। उनकी कोई भी रचना प्राप्त नहीं होती, पर 'शागधरपद्धति' प्रभृति सूक्ति-संग्रहों में इनका 'भेकैः कोटरशायिमिः' - श्लोक मिलता है। उसी प्रकार राजशेखर के नाटकों में इनका उल्लेख प्राप्त होता है तथा उन्हीं की 'सूक्ति-मुक्तावली' में इनकी निम्न प्रकार प्रशस्ति की गई है अकालजलदेन्दोः सा हृद्या वचनचन्द्रिका। नित्यं कविचकोरैर्या पीयते न तु हीयते।। अक्षपाद - समय-सन् 150 के आसपास । न्यायसूत्र के कर्ता। षोडषपदार्थवादी। माधवाचार्य ने सर्वदर्शन में न्यायशास्त्र को अक्षपाददर्शन ही कहा है। पद्मपुराण एवं अन्य कुछ पुराणों में कहा गया है कि न्यायशास्त्र गौतम (अथवा गोतम) की रचना है। न्यायसूत्र वृत्ति के कर्ता विश्वनाथ ने इस सूत्र को गौतमसूत्र कहा है। संभवतः अक्षपाद और गौतम दोनों ने इसे लिखा हो। ___ गौतम मिथिला के तो अक्षपाद काठियावाड के प्रभास क्षेत्र के थे। ब्रह्मांडपुराण के अनुसार अक्षपाद के पिता सोमशर्मा एवं कणाद थे। गौतम और अक्षपाद एक ही है ऐसा माना जाता है। एक दंतकथा बताई जाती है- विचारमग्न गौतम कुएँ में गिरे। कठिनाई से उन्हें बाहर निकाला जा सका। पुनः ऐसी स्थिति नहीं हो, इसलिये उनके पैरों में ही आखें निर्माण की गई। अखंडानन्द सरस्वती - श्रीमत् शंकराचार्य के अद्वैत-सिद्धांत पर 'तत्त्वदीपन' नामक ग्रंथ के रचयिता। अखिलानन्द शर्मा - आर्य समाजी विद्वान्। रचना- 'दयानन्द दिग्विजय' (21 सर्गों का महाकाव्य)। रचना का उद्देश जन-जागृति। समय- 20 वीं शती का पूर्वार्ध। अग्गल - मूलसंघ, देशीयगण, पुस्तक गच्छ और कुन्दकुन्दान्वय के विद्वान श्रुतकीर्ति विद्यदेव के शिष्य। पिता-शान्तीश । मातापोचम्बिका। जन्म-इंगेलेश्वर ग्राम (दक्षिण) में। राज-परिवार द्वारा सम्मानित। समय- 11 वीं शती का अंतिम चरण और 12 वीं शती का प्रारंभ। रचना चन्द्रप्रभपुराण (वि.सं. 1146) जिसमें 16 आश्वास हैं। अच्युत नायक - समय 1572-1614 ई.। रघुनाथ नायक (1614-1633 ई.) तथा विजय राघव नायक (1633-1673 ई.) के राजगुरु रहे। इनके ग्रंथों के संरक्षण हेतु जो ग्रन्थालय तंजौर में बनाया गया वही आज सरस्वती महल के नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध है। रचना- पारिजातहरण नामक 5 अंकों का नाटक। अच्युत शर्मा- 'भागीरथीचंपू' के रचयिता। पिता-नारायण। माता-अन्नपूर्णा । इनके चंपू-काव्य का प्रकाशन, गोपाल नारायण कंपनी से हो चुका है। अजयपाल - ई. 11 वीं शती। 'नानार्थसंग्रह' नामक कोश के कर्ता। अजितदेव सूरि- चन्द्रगच्छीय महेश्वर सूरि के शिष्य। समय ई. 16 वीं शती । ग्रंथ आचारांगदीपिका नामक (शीलांकाचार्यकृत आचारांगविवरण के आधार पर विरचित टीका)। अजितनाथ न्यायरत्न (म.म.)- बंगाली। 'बक-दूत' के रचयिता। 'अजितप्रभसूरि-ई. 13 वीं शती। पौर्णसिक गच्छीय जैनाचार्य । गुरुपरम्परा-चन्द्रसूरि, देवसूरि, तिलकप्रभ, वीरप्रभ, और अजितप्रभ । ग्रंथ- (1) शान्तिनाथचरित (5000 श्लोक) और (2) भावनासार। अजितसेन (अजितसेनाचार्य) . ई. 13 वीं शती। दक्षिणदेशान्तर्गत तुलुव प्रदेश के निवासी। सेनगण पोरारिगच्छ के मुनि। अलंकार-शास्त्र के वेत्ता। 1245 ई. में रानी विट्ठलाम्बा के पुत्र कामराय वंगनरेन्द्र प्रथम के लिए ग्रंथ-निर्माण का कार्य किया। ग्रंथ-शृंगारमंजरी और अलंकारचिन्तामणि (पांच परिच्छेद) तथा चिंतामणि-प्रकाशिका नामक टीका।। अण्णार्य (अण्णयाचार्य)- तत्त्वगुणादर्श' नामक चम्पू-काव्य के प्रणेता। समय 1675 ई. से 1725 ई. के आस-पास । पिता श्रीशैलवंशीय श्रीदास ताताचार्य। पितामह अण्णयाचार्य, जो श्रीशैल-परिवार के थे। अण्णार्य का यह काव्य अभी तक अप्रकाशित है। इस काव्य में अण्णार्य ने शैव. व वैष्णव सिद्धांतों की अभिव्यंजना की है। अणे, माधव श्रीहरि -लोकनायक बापूजी अणे के नाम से समूचे भारत में विशेषतः महाराष्ट्र में प्रसिद्ध। जन्मदिन दि. 29 अगस्त 1880। जन्मस्थान- महाराष्ट्र के यवतमाल जिले का वणी नामक गांव। कृष्णयजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा के तेलंगनावासी ब्राह्मण परिवार में जन्म लेकर भी आपने ऋग्वेद का अध्ययन किया था। चंद्रपुर तथा नागपुर में शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात्, यवतमाल में वकालत एवं सार्वजनिक कार्य का प्रारंभ । लोकमान्य तिलक के अग्रगण्य अनुयायी के नाते, होमरूल-आंदोलन का प्रसार विशेष उत्साह से किया। फिर वकालत का त्याग कर, देशबंधु चित्तरंजन दास के स्वराज्य-पक्ष का प्रचारकार्य विदर्भ में किया। मदनमोहन मालवीय, लाला लाजपतराय, पं. मोतीलाल नेहरू, महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू आदि नेताओं के साथ आपने विविध प्रकार के राष्ट्रीय कार्यों में विदर्भ के नेता के नाते सहकार्य किया। महात्मा गांधी ने जब नमक-सत्याग्रह का आंदोलन शुरू किया, तब श्री. अणे ने जंगल-सत्याग्रह का स्वतंत्र आंदोलन विदर्भ में छेड़ा। इस सत्याग्रह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 269 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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