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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1885 में प्रकाशित हुए। मैसूर और कूर्ग राज्य में ग्रन्थसूची का संपादन कार्य लेबिज राईस ने किया। 1884 में उनकी सूची बंगलोर में प्रकाशित हुई। मद्रास सरकार की ओरिएंटल मॅन्युस्क्रिए लाईब्रेरी की ओर से सन 1893 में प्रथम सूची का प्रकाशन हुआ। यह कार्य बाद में शेषगिरी शास्त्री ए. शंकरन् आदि विद्वानों के संचालकत्व में चालू रहा। अभी तक इस लाइब्रेरी द्वारा 30 से अधिक सूचीखंड प्रकाशित हुए। अड्यार (मद्रास के अन्तर्गत) थिओसोफिकल सोसाइटी का जागतिक केंद्रस्थान है। इस जागतिक संस्था का अपना एक विशाल हस्तलिखित ग्रंथसंग्रह है। सन् 1920 और 28 में “ए केटलाँग ऑफ दि संस्कृत मॅन्युस्क्रिप्टस्" नाम के दो खण्ड प्रकाशित हुए। 1942 में डॉ. कुन्हन् राजा और के माधवकृष्ण शर्मा ने वैदिक भाग की सूची प्रकाशित की और 1947 में व्ही. कृष्णम्माचार्य ने व्याकरण भागों की सूची तैयार की। दक्षिण भारत की कुछ सूचियों का प्रकाशन 1905 में हल्डन ने किया। सन 1895 से 1906 तक कलकत्ता संस्कृत लाईब्रेरी के हस्तालिखित संग्रह ही सूची पं. हृषीकेश शास्त्री और शिवचन्द्र गुंई ने तैयार की। कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा 1930 में असमीज मॅन्यूस्क्रिए नामक दो सूचीखण्ड प्रकाशित हुए जिन में संस्कृत ग्रंथों का उल्लेख भरपूर मात्रा में हुआ है। रायबहादुर हीरालाल शास्त्री ने पुराने "मध्यप्रदेश और बेरार" के हस्तलिखितों का प्रतिवृत्त तैयार किया था, जिसका प्रकाशन सन 1926 में नागपूर में हुआ। वाराणसी के सरस्वती भवन में सवालाख से अधिक पाण्डुलिपियों का महान् संग्रह है। सन 1953 से 58 तक उनमें से 1600 ग्रन्थों की सूची आठ खंडों में प्रकाशित हुई। इलाहाबाद की गंगानाथ झा शोधसंस्था द्वारा भी अनेक सूचीखंडों का प्रकाशन हुआ है। जम्मू-काश्मीर के रघुनाथ मंदिर के ग्रन्थालय के हस्तलिखितों की सूची डॉ. स्टीन द्वारा तैयार हुई। सन 1894 में वह मुंबई में प्रकाशित हुई। काश्मीर नरेश के पुस्तकालय की सूची तैयार करने का काम पं रामचंद्र काक और हरभट्ट शास्त्री ने किया। सन 1927 में उसका प्रकाशन पुणे में हुआ। राजस्थान और मध्यभारत के ग्रंथसंग्रहों का प्रतिवृत्त डॉ. भांडारकर ने तैयार किया। 1907 में वह मुंबई में प्रकाशित हुआ। बडोदा की सेंट्रल लाईब्रेरी की सूची जी. के. गोडे और के एस. रामस्वामी शास्त्री ने तैयार की। सन 1925 में गायकवाड ओरिएंटल सीरीज् की ओर से उसका प्रकाशन हुआ। डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल और ए. बेनर्जी ने मिथिला के संग्रह की सूची तैयार की, जिसका प्रकाशन सन 1927 से 40 तक की अवधि में, चार खंडों में बिहार-उडीसा-रीसर्च सोसायटी ने किया। उज्जयिनी की ओरिएंटल मॅन्युस्क्रिप्ट लाइब्रेरी द्वारा सन 1936 और 1941 में सूची का प्रकाशन हुआ। पाटण (गुजरात) के जैन ग्रंथों की सूची का संपादन सी.डी. दलाल ने प्रांरभ किया और एल. बी. गान्धी ने वह संपूर्ण किया। गायकवाड ओरिएंटल सीरीज् ने अपनी प्रथम सूची का प्रकाशन 1937 में बडोदा में किया। 1942 में द्वितीय सूची प्रकाशित हुई। जैसलपीर राज्य के ग्रंथालय की सूची भी गायकवाड ओरिएंटल सीरीज द्वारा ही प्रकाशित हुआ। तिरूअनन्तपुर (त्रिवेंद्रम) के सरकारी पुस्तकालय की सूची आठ भागों में प्रकाशित हो चुकी है। "कैटेलोगस कैटेलागोरम्" ___ 19 वीं शताब्दी के अन्त तक भारत में जिनकी विविध पाण्डुलिपियों की सूचियाँ प्रकाशित हुई उनमें उल्लिखित सभी ग्रंथों की सर्वकष बृहत्तम सूची का संपादन करने का अपूर्व कार्य डॉ.आफ्रेट ने प्रारंभ किया। सन 1891, 1896 और 1903 में इस के प्रथम तीन खंड, कैटेलोगस कैटेलोगोर में नाम से लिपझिग (जर्मनी) में प्रकाशित हुए। सन् 1935 ५ से ऑफ्रेट की सूची की सुधारित और संवर्धित आवृत्ति संपादित करने का कार्य, डॉ. कुन्हन राजा और डॉ. वे. राघवन् इन प्रसिद्ध विद्वानों के नेतृत्व में मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा प्रारंभ हुआ। इस "न्यू केटलोगस केटेलोगोरम्" का प्रथम खंड (जिस में केवल अकारादि नामक ग्रंथों की ही प्रविष्टियां है) मद्रास युनिव्हर्सिटी संस्कृत सीरिज द्वारा सन 1949 में प्रकाशित हुआ। हस्तालिखित ग्रंथों की सूची करने का यह कार्य संस्कृत वाङ्मय के इतिहास में सर्वथा अपूर्व है प्राचीन राजा महाराजाओं ने और मठाधिपतियों ने अपनी पद्धति के अनुसार अपने अपने स्थानों पर हस्तालिखित ग्रंथों का संचयन किया। मुसलमानी शासन के प्रदीर्घ आपात काल में उनमें से अनेक स्थानों का विध्वंस राज्यकर्ताओं की असहिष्णुता एवं असंस्कृतता के कारण हुआ। फिर भी जो संग्रह सुरक्षित रहे, उन सभी में संचित वाङ्मयराशि के सूचीकोश करना एक राष्ट्रीय महत्त्व का कार्य होना आवश्यक था। अभी तक कुछ महत्त्वपूर्ण कोशों तथा उनके स्वनामधन्य संपादकों तथा संस्थाओं का निर्देश मात्र इस प्रकरण में हुआ है। इन के अतिरिक्त जिन महानुभावों ने इस क्षेत्र में कार्य किया, उनमें एस. जैकोबी. व्ही. फासबोल, जॉन. सी. नेसफील्ड, फ्रेड्रिक लेवीज, इत्यादि पाश्चात्य पंडितों का तथा उन्ही की पद्धति से इस कार्य को चलाने वाले भारतीय विद्वानों में म.म. गौरीशंकर हीराचंद ओझा, पं. देवीप्रसाद, डॉ. श्याम सुंदरदास, डॉ. पितांबरदत्त, डॉ. प्रबोधचंद्र, मुनि जिनविजय, रामशास्त्री, बागची, आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, डॉ. धर्मेन्द्र, पं. राधाकृष्ण, एच.आर. रंगस्वामी अय्यंगार, के. भुजबलीशास्त्री, पद्मभूषण डॉ. रा. ना. दांडेकर, इत्यादि अनेक कार्यकर्ताओं के नामों का कृतज्ञता से निर्देश करना आवश्यक है। कैटेलागारकी सूचियाँ प्रसन 1891, 260 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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