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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 है अपने "इंडिया, व्हाट इट कॅन टीच अस" नामक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ के द्वारा उन्होंने भारत के हस्तलिखित ग्रन्थभांडारों की ओर विद्वानों का चित्त आकृष्ट किया। उस प्रकार की प्रेरणा के कारण कुछ पाश्चात्य विद्वानों ने भारतीय हस्तलिखित ग्रंथों के सूचीरूप कोश निर्माण करना प्रारंभ किया। मैक्समूलर का ध्यान भारत के संस्कृत हस्तलिखित ग्रंथभांडारों पर जब केन्द्रित हुआ, उसके पहले की मध्ययुगीन बर्बर प्रशासकों के विध्वंसक आक्रमणों में, अगणित ग्रंथों का नाश हो चुका था। सन् 1784 में कलकत्ते में रायल एशियाटिक सोसायटी की स्थापना हो कर संस्कृत पांडुलिपियों का संचयन प्रारंभ हुआ। इस सोसाइटी के द्वारा सर विल्यम् जोन्स और उनकी सुविद्य पत्नी ने सन 1807 में, संस्कृत ग्रंथ संग्रह की प्रथम सूची प्रकाशित की सर विल्यम जोन्स संस्कृत के महान् जिज्ञासु थे। उनके संस्कृत अध्ययन की कहानी बडी मनोरंजक एवं स्फूर्तिप्रद है। सन 1807 में हेनरी टॉमस कोलबूक को एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बेंगाल नामक संस्था का अध्यक्षपद प्राप्त हुआ। उनके द्वारा संगृहीत सारे हस्तलिखित संस्कृत ग्रंथ, लंदन के इंडिया ऑफिस में सुरक्षित रखे गये। इस कार्य के लिए उन्होंने अपने निजी धन का भी व्यय किया । इसी सोसाइटी द्वारा सन 1817 से 1834 तक पं. हरिप्रसाद शास्त्री के नेतृत्व में ग्रन्थसूची के प्रथम सात भाग सिद्ध हुए । अग्रिम भागों का संपादन श्री. चिन्ताहरण चक्रवर्ती और चन्द्रसेन गुप्त द्वारा सन 1945 तक हुआ। डॉ. बूल्हर ने (सन 1837-1898) पैरीस, लंदन, ऑक्सफोर्ड आदि स्थानों पर संस्कृत ग्रंथों की जानकारी प्राप्त की। मैक्समूलर की प्रेरणा से वे भारत में आये मुंबई मे शिक्षा विभाग में उच्चाधिकार पर वे नियुक्त हुए बॉम्बे संस्कृत सीरीज नामक ग्रन्थमाला का प्रकाशन उन्होंने शासकीय सहायता से शुरू किया। यह ग्रन्थमाला संस्कृत पंडितों के लिए उपकारक हुई। सन 1866 में मुंबई, मद्रास और बंगाल के प्रशासकों द्वारा शोधकार्य को प्रोत्साहन दिया गया। डॉ. बूल्हर, मुंबई राज्य की शोधसंस्था के अध्यक्ष हुए। उन्होंने 2300 महत्त्वपूर्ण हस्तलिखित ग्रंथों का संशोधन एवं संपादन करवाया। गुजरात, काठियावाड और सिंध इन प्रदेशों में डॉ. बूल्हर के नेतृत्व में हस्तलिखित संस्कृत ग्रंथों का संकलन और संशोधन हुआ। सन 1871-83 के बीच मुंबई से उन ग्रंथों का सूचीपत्र प्रकाशित हुआ । सन 1875 में संस्कृत ग्रंथों के शोधकार्य के संबंध में डॉ. बूल्हर का एक महत्वपूर्ण प्रतिवृत्त प्रकाशित हुआ। राजस्थान और मध्यभारत के संस्थानों से अनेक पांडुलिपियां मंगवा कर उनका प्रकाशन सन 1887 में डॉ. बूल्हर ने करवाया। उन्हीं से प्रेरणा पा कर कुछ विद्वान इस अपूर्व कार्य में प्रवृत्त हुए। श्रीराजेन्द्रलाल मिश्र ने "नोटिसेस ऑफ संस्कृत मॅन्युस्क्रिप्टस्' नामक 9 खण्डों का प्रकाशन किया। हरप्रसाद शास्त्री ने अग्रिम दो खंड प्रकाशित किए। विंटरनिटस् ने बोडलियन लाइब्रेरी के संग्रह की सूची करने का कार्य शुरू किया। डॉ. कीथ ने डॉ. स्टीन की “इंडियन इन्स्टिट्यूट" (ऑक्सफोर्ड) में सुरक्षित संग्रह की सूची तैयार की जो 1903 में ऑक्सफोर्ड के क्लेरेन्डन प्रेस द्वारा मुद्रित हुई। बोडलियन लाइब्रेरी के पालि ग्रंथों की सूची करने का कार्य फ्रेंकफर्टर ने सन 1882 में पूर्ण किया। डॉ. वेबर (ई. 1825-1901) ने बर्लिन के राजकीय पुस्तकालय के संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थों की बृहत्सूची तैयार की और डॉ. बूल्हर द्वारा बलीन पुस्तकालय में प्राप्त हुए 500 जैन हस्तलिखित ग्रंथों का सूक्ष्म अध्ययन कर जैन वाङ्मय पर प्रकाश डाला। सन 1869 में केब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज के ग्रंथसंग्रह की बृहत्सूची ऑफ्रेट ने तैयार की। सन 1870 में जेम्स डी अलीज् ने कोलम्बो में भारतीय संस्कृत ग्रंथों की सूची प्रकाशित की। उसी वर्ष एन. सी. बर्नेल ने लंदन के इंडिया ऑफिस के संस्कृत ग्रन्थों की सूची का प्रकाशन किया। सन 1880 में क्लासीफाईड इंडेक्स टू दि संस्कृत मॅन्युस्क्रिप्टस् इन दि पॅलेस अँट् तंजौर यह खंड बर्नेल ने लंदन में प्रकाशित किया। ज्यूलियस एगलिंग ने सन 1887 और 1896 में लंदन में दो सूचियां प्रकाशित की। 1935 में कीथ और टॉमस की सूची और ओल्डेनबर्ग की सूची का प्रकाशन लंदन से हुआ। लंदन के इंडिया ऑफिस में आज भी इस प्रकार का कार्य चालू है। सन 1883 में जोसिल बंडाल और राइस डेव्हिड्स ने केंब्रिज विश्वविद्यालय के संस्कृत और पाली ग्रन्थों की सूची प्रकाशित की। सन 1874 में मध्य भारत के संस्कृत ग्रंथों की सूची डॉ. एफ. कीलहॉर्न ने प्रकाशित की। उन्होंने सन 1877-73 में सरकार द्वारा खरीदे गये हस्तलिखित ग्रंथों की सूची तैयार की। मुंबई राज्य के हस्तलिखितों की सूची श्री. काशिनाथ कुंटे ने सन 1880-81 मे तैयार की, उसका प्रकाशन 1881 में कीलहॉर्न ने करवाया। पीटर्सन ने की बृहत्सूची 1883 और 1898 में छः खंडों में प्रकाशित हुई। इसके अतिरिक्त उन्होंने अल्वर नरेश के संग्रह की सूची भी सिद्ध की। पीटर्सन के बाद यह कार्य डॉ. रामकृष्ण गोपाल भांडारकर ने सम्हाला । इस संबंध में उनका प्रतिवृत्त सन 1897 में मुंबई से प्रकाशित हुआ। डॉ. भांडारकर ने 1917 से 1929 तक की अवधि में ओरिएंटल लाइब्रेरी (पुणे) के हस्तलिखितों की सात सूचियां प्रकाशित की। श्री हरि दामोदर वेलणकर ने रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के संग्रह की सूचियां तैयार की, जो सन 1926, 28 तथा 30 में प्रकाशित हुई । सन 1880 में तंजोर के सरस्वती महल के हस्तलिखितों की सूची कर्नेल ने की। बाद में यह कार्य पी.पी.एस. शास्त्री ने सम्हाला। उन्होंने तैयार की हुई बृहत्सूची 19 खंडों में प्रकाशित हुई तंजौर के सरस्वतीमहल में आज 25 हजार हस्तलिखित ग्रंथ सुरक्षित है। दक्षिण भारत में ग्रंथसूची का कार्य गुस्ताव ओपर्ट ने शुरू किया। उनके संपादित दो खंड सन 1880 और संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड / 259 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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