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त्रिरूपकोश, इत्यादि अज्ञातकर्तृक कोश लिखे गये हैं। महाव्युत्पत्तिकोश (ले. अज्ञात) में बौद्ध धर्म में प्रचलित विशिष्ट संज्ञाओं का स्पष्टीकरण मिलता है। 16 वीं शताब्दी में पारसी-प्रकाश नामक फारसी शब्दों के संस्कृत पर्यायों का कोश लिखा गया। इस के पहले कर्णपूर ने संस्कृत- पारसिक प्रकाश की रचना की थी। शाहजहां के समकालीन वेदांगराय ने ज्योतिष विषयक शब्दों का कोश फारसीप्रकाश नाम से लिखा।
शिवाजी महाराज ने अपने सभापण्डित रघुनाथ हणमंते द्वारा राजव्यवहारकोश की रचना करवायी। इस पद्यात्मक कोश में तत्कालीन मुसलमानी राज्यों में प्रचलित फारसी राजकीय शब्दों के संस्कृत पर्याय दिये हैं। भाषाशुद्धि के कार्य में प्रथम प्रयास यही रहा। इस राज्यव्यवहार कोश का यही विशेष महत्त्व है। संस्कृत भाषा के प्रचार का हास आधुनिक काल में होने लगा, तब से संस्कृत के अन्य भाषीय पर्याय देने वाले अकारादिवर्णानुसार सूचीप्राय कोशों की रचना का प्रारंभ हुआ। इस प्रकार के कुछ उल्लेखनीय कोश :डिक्शनरी ऑफ बेंगाली अॅण्ड संस्कृत - ले. ग्रेब्ज हागून। 1833 में लंदन में मुद्रित । संस्कृत - इंग्लिश डिक्शनरी - ले. बेन फे। 1866 में लंदन में मुद्रित । संस्कृत अॅण्ड इंग्लिश डिक्शनरी - ले. रामजसन। 1870 में लंदन में मुद्रित। पॅक्टिकल संस्कृत डिक्शनरी - ले. आनंद-राम बरुआ। कलकत्ता - ई. 18771 संस्कृत - इंग्लिश डिक्शनरी - ले. केपलर। ट्रान्सबर्ग - 1891 । संस्कृत- इंग्लिश डिक्शनरी - ले. मोनियर विल्यम्स।
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी - 1899 । इस कोश की सुधारित आवृत्तियां 1956 में दिल्ली से और 1957 में लखनऊ से प्रकाशित हुई। सरस्वतीकोश - ले. जीवराम उपाध्याय। मुरादाबाद - 1912 स्टूडण्टस् इंग्लिशसंस्कृत डिक्शनरी - ले. वामन शिवराम आपटे। मुंबई - १९१५ । पॅक्टिकल संस्कृत - इंग्लिश-डिक्शनरी - ले. वामन शिवराम आपटे। मुंबई - 1924। इसी महत्त्वपूर्ण कोश की सुधारित आवृत्ति प्रकाशित करने का कार्य पुणे की प्रसाद प्रकाशन संस्था ने किया। सन 1957 में प्रथम खण्ड और 58 में द्वितीय खंड का प्रकाशन हुआ। संस्कृत- हिंदीकोश - ले. द्वारकाप्रसाद चतुर्वेदी। लखनऊ-1917। संस्कृत- हिंदीकोश - ले. विश्वंभरनाथ शर्मा। मुरादाबाद- 1924 । पॅक्टिकल संस्कृत डिक्शनरी - ले. मैक्डोनेल। लंदन- 1924 । पद्यचंद्रकोश - ले. गणेशदत्त शास्त्री। लाहोर- 1925 संस्कृत - गुजराती शब्दादर्श - ले. गिरिजाशंकर मेहता। अहमदाबाद-1924 । सार्थ- वेदार्थनिघण्टु- ले. शिवरामशास्त्री शिंत्रे यह वैदिक-मराठी कोश है। आदर्श हिन्दी- संस्कृत कोश- ले. रामस्वरूप शास्त्री। वाराणसी-1936 । आधुनिक- संस्कृत- हिंदीकोश- ले. ऋषीश्वरभट्ट। आग्रा-1955। संस्कृत शब्दार्थ- कौस्तुभ- ले. द्वारकाप्रसादशर्मा और तारिणीश झा। प्रयाग-1957 । व्यवहारकोश- ले. सदाशिव नारायण कुलकर्णी। नागपूर-1951। इस कोश की विशेषता यह है की इसमें लौकिक व्यवहार में उपयुक्त राजकीय, यांत्रिक, औद्योगिक शब्दों के संस्कृत पर्याय हिंदी, मराठी और अंग्रजी शब्दों के साथ दिये गये हैं। कोशकार ने अनेक व्यवहारोपयुक्त अंग्रेजी शब्दों के संस्कृतपर्याय व्युत्पत्ति की प्रक्रिया के अनुसार, स्वयं निर्माण किये हैं, जो प्राचीन कोशों में नहीं मिलते। आधुनिक नानाविध शास्त्रों के विकास के कारण यूरोपीय भाषाओं में अगणित पारिभाषिक शब्दों को निर्मिति हुई। संस्कृत या अन्य प्रादेशिक भाषाओं में उनके पर्याय न होने के कारण जो समस्या भारतीय भाषाक्षेत्र में निर्माण हुई थी, उसे निवारण करने का कार्य, सुप्रसिद्ध कोशकार डॉ. रघुवीर ने किया। अपने आंग्लभारतीय कोश में, संस्कृत भाषा की व्युत्पत्तिप्रक्रिया के अनुसार नए पारिभाषिक शब्दों की निर्मिति उन्होंने की। इस के लिए उन्होंने स्वयं अनेक भाषाओं का अध्ययन किया था। डॉ. रघुवीर ने (1) अर्थशास्त्र शब्दकोश (2) आंग्ल-भारतीय पक्षिनामावली, (3) आंग्लभारतीय प्रशासन शब्दकोश, (4) खनिज अभिज्ञान, (5) तर्कशास्त्र पारिभाषिक शब्दावली (6) वाणिज्य शब्दकोश, (7) सांख्यिकी शब्दकोश इत्यादि शब्दकोशों के द्वारा संस्कृत भाषा की शब्दसंपदा में सहस्रावधि नवीन शब्दों का योगदान दिया है। शासनकर्ताओं की अनास्था के कारण डॉ. रघुवीर के शब्दकोश, प्रत्यक्ष व्यवहार में उपयोगी नहीं हो सके।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड/257
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