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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्तप्ति। डॉ. चिन्तामणराव देशमुखकृत गान्धीसूक्तिमुक्तावली (गांधीजी की अंग्रेजी सदुक्तियों का पद्यानुवाद), डॉ. कुर्तकोटी शंकराचार्यकृत समत्वगीत, और श्रीधर भास्कर वर्णेकर कृत मन्दोर्मिमाला इत्यादि एककर्तृक सुभाषितों के विविध संग्रह प्रकाशित हुए हैं। आधुनिक काल में काशीनाथ पांडुरंग परब द्वारा संपादित सुभाषितरत्नभाण्डागार यह ग्रंथ अंतिम सुभाषितसंग्रह माना जाता है। इस में 7 प्रकरणों में दस हजार से अधिक विविध विषयों पर प्राचीन कवियों द्वारा रचित श्लोकों का संग्रह हुआ है। पूर्वकालीन प्रायः सभी सुभाषितसंग्रहों का इसके संपादन में सहाय लिया गया है। अब तक इसकी 8 आवृत्तियां प्रकाशित हो चुकी हैं। सुभाषित वाङ्मय में अब आवश्यकता है, 17 वीं शती के बाद हुए कवियों के सुभाषितों का संग्रह करने की। प्राचीन सुभाषित संग्रहों ने प्राचीन अज्ञात कवियों की स्मृति, उनके श्लोकों के रूप में जीवित रखे। आधुनिक कालखंड में प्रादेशिक भाषाओं का विशेष महत्त्व और प्रादेशिक साहित्य का बोलबाला होने के कारण आधुनिक संस्कृत साहित्य उपेक्षित रहा है। ऐसी अवस्था में अर्वाचीन संस्कृत सुभाषितों का बृहत्संग्रह संपादित होना नितान्त आवश्यक प्रतीत होता है। १ कोशवाङ्मय सुभाषितसंग्रहों के समान संस्कृति वाङ्मय के क्षेत्र में शब्दकोश, हस्तलिखित संग्रहकोश, संस्कृत शब्द और उनके अन्यभाषीय पर्याय कोश, अन्यान्यशास्त्रों के परिभाषिक शब्दकोश, महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की अकारादिवर्णानुक्रमणिका इत्यादि विविध प्रकार का कोश वाङ्मय प्राचीन काल से आधुनिक काल तक यथावसर निर्माण होता रहा। चिकित्सात्मक एवं शोधात्मक कार्य करने वाले विद्वानों का कार्य, ऐसे कोशों से सुगम होता है। यह निर्विवाद है कि संस्कृत कोशवाङ्मय का प्रारंभ "निघंटु"से हुवा। निघण्टु की रचना वैदिक मंत्रों के स्पष्टीकरण के लिए की गई। निघंटु में वेदोक्त केवल दुर्बोध एवं आर्ष शब्दों का संग्रह मिलता है। यास्काचार्य का निरुक्त (जो वेदांग माना जाता है) प्रस्तुत निघण्टु का ही भाष्य है। इसी प्रकार कविजनों को काव्यरचना में उपयोगी कोशों की रचना मुरारि, मयूर, वामन, श्रीहर्ष, बिल्हण इत्यादि साहित्यिकों ने की। श्रीहर्षकृत श्लेषार्थपदसंग्रह उत्तरकालीन श्लेषप्रिय कवियों को अवश्य सहायक हुआ होगा। मध्य एशिया में काशगर में एक आठ पृष्ठों का कोश प्राप्त हुआ है। इसका लेखक कोई बौद्ध पंडित माना जाता है जिसका काल और नाम विदित नहीं; परंतु यही अज्ञातकर्तृक एवं अज्ञातनामा अपूर्ण ग्रंथ आधुनिक ऐतिहासिकों के मतानुसार संसार का प्रथम कोश माना जाता है। अन्यान्य टीका ग्रंथों में कात्यायन कृत नाममाला, वाचस्पतिकृत शब्दार्णव, विक्रमादित्यकृत संसारावर्त, व्याडिकृत उत्पलिनी इत्यादि प्राचीन कोशों के नाम मिलते हैं, परंतु संपूर्ण भारत में अत्यंत लोकप्रिय कोश है अमरसिंहकृत नामलिंगानुशासन, जो "अमरकोश" नाम से सुप्रसिद्ध है। अनुष्टुप् छंद में लिखे हुए प्रस्तुत कोश के तीन काण्डों में दस हजार शब्दों का संग्रह मिलता है। नाम के साथ ही उसके लिंग का परिचय इस कोश की विशेषता है। ई. छठी शताब्दी के पूर्व ही इस कोश का चीनी भाषा में अनुवाद हो चुका था। आज तक इस पर पचास से अधिक टीकाएं लिखी गयीं, जिन में क्षीरस्वामीकृत (ई. 11 वीं शती) अमरकोशोद्घाटन और भानुजी भट्ट (ई. 17 वीं शती) कृत "रामाश्रमी" टीका सर्वमान्य हैं। अमरकोश के प्रभाव से अनेक पद्यात्मक शब्दकोशों की निर्मिती प्रायः 7 वीं शताब्दी से 17 वीं शताब्दी तक . होती रही। कुछ प्रमुख कोश :हारावली (या त्रिकाण्डकोश) - ले. पुरुषोत्तम देव। ई. 7 वीं शती। धनंजयनिघण्टु (या नाममाला) ले. धनंजय। 9 वीं शती। अनेकार्थनाममाला - ले. धनंजय । अभिधानरत्नमाला - ले. हलायुध । ई. 10 वीं शती। वैजयन्ती - ले. यादवप्रकाश। 11 वीं शती। शब्दकल्पद्रुम - ले. केशवस्वामी। 12 वीं शती। विश्वप्रकाश - ले. महेश्वर। 12 वीं शती। नानार्थरत्नमाला - ले. अभयपाल। 12 वीं शती। अभिधानचिन्तामणि - ले. हेमचंद्र। 12 वीं शती। (हेमचंद्र ने अनेकार्थसंग्रह, देशीनाममाला और निघण्टुशेष नामक अन्य तीन कोश लिखे हैं।) नानार्थरत्नमाला - ले. इरुगपद दण्डाधिनाथ। 14 वीं शती। नानार्थशब्दकोश - ले. मेदिनीकर - 14 वीं शती। शब्दचन्द्रिका और शब्दरत्नाकर - ले. वामनभट्ट। 15 वीं शती। सुन्दरप्रकाश-शब्दार्णव - ले. पद्मसुंदर। 16 वीं शती। कल्पद्रुम - ले. केशव देवज्ञ। 17 वीं शती। नामसंग्रहमाला - ले. अप्पय्य दीक्षित। 17 वीं शती। ये और इस प्रकार के अन्य प्राचीन शब्दार्थ-कोशों में पर्याय शब्द भी संस्कृत भाषीय ही होते हैं। उन में एक वस्तुवाचक समानार्थ अनेक शब्दों का एवं एक एक शब्द के अनेक अर्थों का संग्रह मिलता है। अन्यान्य कोशकारों ने शब्दों की व्यवस्था अन्यान्य पद्धति से की है, जैसे किसी कोश में लिंगानुसार, किसी में शब्द की अक्षरसंख्या के अनुसार, किसी में अक्षरक्रमानुसार तो किसी में पर्यायी शब्दों की संख्या के अनुसार शब्दव्यवस्था की गयी है। इन कोशों के अतिरिक्त एकाक्षरकोश, द्विरूपकोश, 256 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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