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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - www.kobatirth.org कवीन्द्रचन्द्रोदय-विषय कवीन्द्राचार्य की अनेक विद्वानों द्वारा की हुई स्तुति । कालिदासप्रतिभा दक्षिण भारत के 28 कवियों द्वारा विरचित कालिदासस्तुतिपरक विविध काव्यों का संग्रह। ' तीर्थभारतम् ले. श्रीधर भास्कर वर्गेकर शंकर महावीर इत्यादि प्राचीन और विवेकानंद, स्तुति पद्य संगीत प्रधान हैं और कवि ने उनके कालिदासरहस्यम् ले श्रीधर भास्कर वर्णेकर - देशिकेन्द्रस्तयांजलि कवितासंग्रह ले. केशव गोपाल ताम्हण विषय श्री शंकराचार्य, वासुदेवानंद सरस्वती, लोकमान्य तिलक आदि महापुरुषों की स्तुति । ले महालिंगशास्त्री विषयकांची कामकोटी पीठाधीश्वर चंद्रशेखर सरस्वतीजी की स्तुति श्रीमनरसिंहसरस्वतीमानसपूजा- ले, गोपाल मोहनाभिनन्दम्- ले. गणेशरामशर्मा विषय- महात्मा गांधी की स्तुति संस्कृत मासिक पत्रिकाओं में इस प्रकार के स्तुतिकाव्यों की भरमार मिलती है। 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय संपूर्ण भारत के विविध सुप्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र तत्रस्थ देवता एवं बुद्ध, दयानंद म. गांधी इत्यादि अनेक महापुरुषों का स्तवन तीर्थभारतम् के सभी रागों का निर्देश चलनस्वरों के साथ प्रत्येक भक्तिगीत के साथ में किया है। 8 सुभाषितसंग्रह सुभाषित, सूक्त, सूक्ति, सदुक्ति, सुवचन इत्यादि समानार्थ शब्दों द्वारा एक विशिष्ट काव्यप्रकार की ओर संकेत किया जाता है। लौकिक व्यवहार में न्याय, आभाणक, मुहावरे, प्रॉव्हर्ब इत्यादि द्वारा विचारों की वैचित्र्यपूर्ण अभिव्यक्ति होती है, उसी प्रकार साहित्यकारों की रचनाओं में पद्य या गद्य वाक्यों में जब चित्ताकर्षक विचार रखे जाते हैं, तब उसे सुभाषित कहा जाता है 1 ऐसे सुभाषितों का व्याख्यानों एवं लेखों में उपयोग करने से उनमें रोचकता बढती है। अतः कई वक्ता या लेखक ऐसे सुभाषितों का संग्रह स्वेच्छा से करते हैं। "कर्तव्यो हि सुभाषितस्य मनुजैरावश्यकः संग्रहः " इस प्रसिद्ध सुभाषित में भी सुभाषितों को कण्ठस्थ करने का संदेश दिया है। इस लिये कि सुभाषितों के यथोचित प्रयोग से, वक्ता या लेखक सब प्रकार के लोगों को वश कर सकता है "अज्ञान् ज्ञानवतोऽप्यनेन हि वशीकर्तुं समर्थो भवेत् ") साहित्यशास्त्रियों ने महाकाव्य, खंडकाव्य, मुक्तक, चम्पू, नाटक इत्यादि साहित्य प्रकारों के तथा उनके अवांतर उपभेदों के लक्षण बताए हैं, परंतु "सुभाषित" का लक्षण किसी शास्त्रकार ने नहीं किया।" नूनं सुभाषित-रसोऽन्यरसातिशायी" इस वचन में "सुभाषितरस" का निर्देश किया है और यह रस अन्य रसों से श्रेष्ठ भी कहा है। सुभाषितों के जो अन्यान्य प्राचीन और अर्वाचीन संग्रह प्रकाशित हुए हैं, उनमें देवतास्तुति, राजस्तुति, अन्योक्ति, नवरस, नायक नायिका का सौंदर्य वर्णन, ऋतुवर्णन, मूर्खनिंदा, पंडितप्रशंसा, सत्काव्यस्तुति, कुकाव्यनिंदा, सामान्य नीति, राजनीति इत्यादि विविध विषयों पर पुराण, रामायण, भारत, पंच महाकाव्य प्रसिद्ध स्मृतिग्रंथ, नाटक, मुक्तककाव्य इत्यादि ग्रन्थो से चुने हुए श्लोकों का और वैचित्र्यपूर्ण गद्यवचनों का संग्रह मिलता है। इन पद्यों या गद्यों को आप्तवचन सा प्रामाण्य तत्त्वतः नहीं है, परंतु अनेक विद्वान ऐसे सुभाषितों को आप्त वाक्यवत् उद्धृत भी करते हैं। प्रतिभाशाली वक्ता या लेखक के द्वारा ऐसे "सुभाषित " विषय प्रतिपादन के आवेश में या वर्णन के ओघ में, उनमें सूचित उत्कट अनुभव के कारण, अनायास व्यक्त होते हैं। व्यवहार में तो कभी कभी छोटे बच्चे के भी मुख से "सुभाषित " निकल आते हैं और वे प्रौढों ने ग्रहण करने योग्य होते हैं। इसी लिए कहा है कि "वालादपि सुभाषितं ग्राह्यम्। सारे ही वेदवचनों को आप्तवचन का प्रामाण्य है, तथापि उन में भी अनेक ऐसे वाक्य हैं जिनका सुभाषितों की पद्धति से उपयोग होता है, जैसे :- " नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः । अहमिन्द्रो न पराजिग्ये । स्वर्गकामो यजेत । मातृदेवो भव, पितृदेवो भव । यानि अस्माकं सुचरितानि तानि त्वयोपास्यानि नो इतराणि" इत्यादि । पुराणों और रामायण, महाभारत के सुभाषितों के स्वतंत्र संग्रह अब प्रकाशित हो चुके हैं। सुप्रसिद्ध सुभाषित संग्रहों में भर्तृहरि (7 वीं शती) के नीतिशतक, वैराग्यशतक और शृंगारशतक में कुछ सुभाषित पूर्वकालीन ग्रंथों से संकलित हुए हैं। संभव है कि कुछ पद्य अन्य अज्ञात कवियों के काव्यों से संकलित और कुछ स्वयं भर्तृहरिविरचित होंगे। सुभाषित संग्रहात्मक ग्रंथों का एक विशेष गुण है कि उनमें अनेक अज्ञात कवियों के इधर उधर बिखरे हुए मनोहर स्फुट पद्य सुरक्षित रहे, साथ ही कुछ कवियों के नाम भी । भोजराज के सभाकवियों का चित्रण, नाम तथा पद्य, सूक्तिग्रन्थों के कारण ही उपलब्ध होता है। उसी प्रकार, "भासनाटकचक्रेऽपिच्छेकैः क्षिप्ते परीक्षितुम् । स्वप्नवासवदत्तस्य दाहकोऽभून्न पावकः । ।" इस अज्ञात-कर्तृक एकमात्र सुभाषित के कारण उपलब्ध भासनाटकों का ज्ञान हुआ अन्यथा वे सारे (13) नाटक अज्ञातकर्तृक नाटकों की नामावली में जमा हो जाते। 254 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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