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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आलंकारिक जैन स्तोत्र सर्वजिनपतिस्तुति : ले. श्रीपाल (प्रज्ञाचक्षु)। चतुर्हारावलि चित्रस्तव : ले. जयतिलकसूरि। वीतरागस्तव : ले. विवेकसागर। इस श्लेषमय स्तोत्र से तीस अर्थ निकलते हैं। स्तंभपार्श्वस्तव : ले. नयनचन्द्रसूरि। इसमें 14 अर्थ मिलते हैं। पादपूर्तिप्रधानस्तोत्र : ऋषभ-भक्तामर : ले. समयसुन्दर। शान्तिभक्तामर : ले. लक्ष्मीविमल। नेमिभक्तामर (या प्राणप्रियकाव्य) : ले. रत्नसिंहसूरि। वीरभक्तामर : ले. धर्मवर्धनगणि। सरस्वतीभक्तामर : ले. धर्मसिंहसूरि। एवं जिनभक्तामर, आत्मभक्तामर, श्रीवल्लभभक्तामर तथा कालूभक्तामर इत्यादि स्तोत्रों में सुप्रसिद्ध मानतुंगाचार्य कृत भक्तामरस्तोत्र के चतुर्थ पाद की पूर्ति करते हुए, कवियों ने अपने भक्तिमय भाव व्यक्त किये हैं। भक्तामरस्तोत्र में 44 या 48 पद्यों में प्रथम तीर्थंकर की स्तुति मानतुंगाचार्य ने की है। भक्तामरस्तोत्र पर कनन कुशलगणिकृत टीका महत्त्वपूर्ण है। जैनस्तोत्रों में कुमुदचन्द्रकृत कल्याणमंदिरस्तोत्र भी विशेष लोकप्रिय है। इसके 44 पद्यों में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की स्तुति की है। समस्यापूर्ति के लिए इस स्तोत्र का आधार लेते हुए भावप्रभसूरि ने जैनधर्मपर स्तोत्र लिखा। पार्श्वनाथस्तोत्र, विजयनन्दसूरीश्वरस्तवन, वीरस्तुति आदि स्तोत्रों के लेखक अज्ञात हैं। इनके अतिरिक्त जैन स्तोत्रों में देवनन्दीपूज्यपाद (छठी शती) कृत सिद्धभक्ति आदि बारह भक्तियां और सिद्धप्रियस्तोत्र पात्रकेशरी (छठी शती) कृत जिनेन्द्रगुणस्तुति (या पात्रकेशरीस्तोत्र)। बप्पभट्टिकृत (8 वीं शती) सरस्वतीस्तोत्र, शान्तिस्तोत्र चतुर्विशति जिनस्तुति और वीरस्तव धनंजयकृत विषापहारस्तोत्र, विद्यानंदकृत श्रीपुरपार्श्वनाथ स्तोत्र, शोभनमुनिकृत (11 वीं शती) चतुर्विंशतिजिनस्तुति, वादिराजसूरिकृत ज्ञानलोचनस्तोत्र एवं एकीभावस्तोत्र, भूपालकविकृत जिनचतुर्विंशतिका, आचार्य हेमचंद्र (12 वीं शती) कृत वीतरागस्तोत्र, महादेवस्तोत्र और महावीरस्तोत्र, जिनवल्लभसूरिकृत (12 वीं शती) भवादिवारण, अजितशान्तिस्तव आदि अनेकस्तोत्र प्रसिद्ध हैं। आशाधर (ई. 13 वीं शती) कृत सिद्धगुणस्तोत्र, जिनप्रभसूरिकृत सिद्धान्तागमस्तव, अजितशान्तिस्तवन, महामात्य वस्तुपाल (ई. 13 वीं शती) कृत अम्बिकास्तवन, पद्मनन्दिभट्टारककृत रावणपार्श्वनाथस्तोत्र, शान्तिजिनस्तोत्र, वीतरागस्तोत्र, शुभचन्द्रभट्टारककृत शारदास्तवन, मुनिसुंदर (14 वीं शती) कृत स्तोत्ररत्नकोश आदि अनेक स्तोत्र मिलते हैं। इन विविध स्तोत्रों के संग्रह के रूप में अनेक संस्करण प्रकाशित हुए हैं जैसे जैनस्तोत्रसंदोह, जैनस्तोत्रसमुच्चय, जैनस्तोत्रसंग्रह, स्तोत्ररत्नाकर, जिनरत्नकोश आदि । बौद्ध स्तोत्र बौद्ध साहित्यिकों में अध्यर्धशतक (150 श्लोकों का स्तोत्र) के रचयिता मातृचेट स्तोत्रसाहित्य के अग्रदूत माने जाते हैं। इनके अतिरिक्त शून्यवादी नागार्जुनकृत चतुःस्तव, वज्रदत्तकृत लोकेश्वरशतक, सर्वज्ञमित्र (8 वीं शती) कृत आर्यातारास्रग्धरास्तोत्र, रामचन्द्रकविभारतीकृत (13 वीं शती) भक्तिशतक, इत्यादि बौद्धस्तोत्र उल्लेखनीय हैं। बौद्धसाहित्य में अन्य संप्रदायी साहित्य की अपेक्षा स्तोत्रकाव्य अत्यल्प हैं। शंकर रामानुजादि वेदान्ती आचार्योने प्रस्थानत्रयी पर भाष्य लिख कर अपना प्रौढ पांडित्य व्यक्त किया; उसी प्रकार सगुण परमात्मा के प्रति अपनी भक्तिभावना व्यक्त करने वाले मधुर स्तोत्र भी लिखे हैं और वे उनके मठों में गाये जाते हैं। स्तोत्र कवियों में जगद्गुरु शंकराचार्य अग्रगण्य माने जाते हैं। उनकी साहित्यिक निपुणता तथा भावप्रवणता उनके सभी स्तोत्रों में प्रतिपद अभिव्यक्त होती है। . आचार्यों का स्तोत्रसाहित्य शंकराचार्यकृत : सौन्दर्यलहरी, देव्यपराधक्षमापन, शिवापराधक्षमापन, आत्मषट्क, षट्पदी, दशश्लोकी, हस्तामलक, चर्पटमंजरी, (भज गोविंदम्), आनंदलहरी (इस पर 30 टीकाएं लिखी गई हैं, जिनमें एक स्वयं आचार्यजी ने लिखी है), दक्षिणामूर्तिस्तोत्र, हरिमीडे, शिवभुजंगप्रयात, अद्वैतपंचरत्न, धन्याष्टक। शंकराचार्यजी के नाम पर 2 सौ से अधिक स्तोत्र मिलते हैं। उपरनिर्दिष्ट स्तोत्रों के अतिरिक्त प्रायः सभी स्तोत्र उत्तरकालीन शांकरपीठाधिपतियों द्वारा विरचित माने जाते हैं। मध्वाचार्यकृतस्तोत्र : द्वादशस्तोत्र, नखस्तुति और कृष्णामृतमहार्णव। रामानुजाचार्यकृतस्तोत्र : विष्णुविग्रहासनस्तोत्र । वल्लभाचार्यकृत : पुरुषोत्तमसहस्रनाम, त्रिविधनामावली, यमुनाष्टक, मधुराष्टक, परिवृद्धाष्टक, नंदकुमाराष्टक, श्रीकृष्णाष्टक, गोपीजनवल्लभाष्टक, इ.। चैतन्यमहाप्रभुकृत श्लोकाष्टक, मधुसूदनसरस्वतीकृत आनंदमंदाकिनी । उपासकों में बुधकौशिक विरचित श्रीरामरक्षास्तोत्र, रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र, देवीपुष्पांजलि, शिवमहिम्नस्तोत्र, षट्पदी, चर्पटपंजरिका, शिवमानसपूजा इत्यादि स्तोत्र विशेष प्रिय हैं। स्तोत्र काव्य मुख्यतः स्तुतिपरक एवं प्रार्थनापरक होता है। देवतास्तुति के समान महापुरुषों के स्तुतिपरक अनेक स्तोत्र काव्य आधुनिक काल में लिखे गये हैं। जैसे : संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 250 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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