________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
"बंगीय दूतकाव्येतिहास:" नामक प्रबन्ध लिखा जिसमे बंगाल के पचीस दूतकाव्यों का सविस्तर परिचय दिया है।
कुछ उल्लेखनीय दूतकाव्य :
पवनदूत : ले धोयी कवि ई-12 वीं शती सिद्धदूत ले अवधूत रामयोगी, ई-13 वीं शती मनोदूत :- ले-विष्णुदास कवि, ई-15 वीं शती ।
मनोदूत :- ले- रामशर्मा, ई- 15 वीं शती । उद्धवदूतः ले-कवीन्द्र भट्टाचार्य, ई-16 वीं शती । 17 वीं शती के दूतकाव्य : उद्धवसन्देश ले रूप गोस्वामी पिकदूत पादांकदूतले श्रीकृष्ण सार्वभौम ।
-
www.kobatirth.org
गोपीदूत :- ले लम्बोदर वैद्य तुलसीदूत ले त्रिलोचन ।
|
।
हंससन्देश :- ले-वेदान्त देशिक कवीन्द्राचार्य भ्रमरदूत ले रुद्रवाचस्पति कोकिलसन्देश :- ले वेंकटाचार्य यक्षोल्लास :- कृष्णमूर्ति ।
हंसदूत :- रघुनाथदास पवनदूत :- ले-सिद्धनाथ विद्यावागीश । I
। ।
वातदूत :- कृष्णानन्द ( या कृष्णनन ) न्यायपंचानन ।
अनिलदूत - रामदयाल तर्करत्न । पादपदूत गोपेन्द्रनाथ गोस्वामी कोकिलसन्देश : वेंकटाचार्य
I
।
18 वीं शती के कुछ दूतकाव्य : चन्द्रदूत ले कृष्णचंद्र तर्कालंकार ।
:- ले- त्रिलोचन । तुलसीदूतः ले वैद्यनाथ द्विज ।
20 वीं शती के दूतकाव्य ।
शुकसन्देश :
·
तुलसीदूत :
कोकिल :- ले- हरिदास । काकदूत-ले-रामगोपाल । पिकदूत-ले-अंबिकाचरण देवशर्मा ।
:- ले-रंगनाथ वाताचार्य
19 वीं शती के दूतकाव्य : मेघदूत :- - त्रैलोक्यमोहन । भक्तिदूत :- ले-कालीप्रसाद ।
उध्दवदूत :- ले-माधव ।
:- - रुद्र न्यायवाचस्पति । पवनदूत ले- वादिराज ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
250 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड
सन्देश :- ले- रंगनाथ ताताचार्य । कीरसन्देश -ले-लक्ष्मी कान्तय्या (हैद्राबाद निवासी) । कीरदूत :- ले-रामगोपाल । भृंगसंदेश :लेखिका-त्रिवेणी। भ्रमरसन्देश लेय. महालिंगशास्त्री मधुकरतूतः चक्रवर्ती राजगोपाल मैसूर निवासी) कोकिलसन्देश :ले-1) नृसिंह (2) वरदाचार्य, (3) वेंकटचार्य, (4) उद्दण्डकवि इनके काव्य में वासुदेव कविकृत भृंगसंदेश का प्रतिसन्देश है। पिकसन्देश :- ले-1) रंगाचार्य, 2) कोचा नरसिंहाचार्य कोकिलदूत ले प्रमथनाथ तर्कभूषण कोकिल-सन्देश1) अण्णंगराचार्य 2) गुणवर्धन, 3) नरसिंह। हंससन्देश :- ले- 1) वेंकटेश 2) सरस्वती । गरुडसन्देश :- कोचा नरसिंहाचार्य । चकोरसन्देश :- ले-1) वासुदेव, 2) वेंकट, 3) पेरुसूरि । मयूरसन्देश :- 1) रंगाचार्य, 2) श्रीनिवासाचार्य सुरभिसन्देश :--विजयराघवाचार्य सुभगसन्देश : ले-1 ) लक्षमणसूरि 2) नारायण कवि पान्यदूतः ले भोलानाथ मनोदूत ले 1 ) व्रजनाथ, 2) विष्णुदास, 3) रामकृष्ण । कोकसन्देश - ले-विष्णुत्रात । हास्यप्रधानदूतकाव्य : मुद्गरतूत ले रामावतार शर्मा बल्लवदूत बटुकनाथ शर्मा काकदूत : ले 1) सहस्रबुद्धे, 2) राजगोपाल अय्यंगार अलकामिलन : ले-द्विजेन्द्रलाल शर्मा पुरकायस्थ इनके अतिरिक्त मारुतसंदेश मधुरोष्ठसंदेश, रन्ताङ्गददूत, चातकसंन्देश, पद्मदूत इत्यादि अनेक दूतकाव्य प्रकाशित हुए हैं। सुप्रसिद्ध आधुनिक विद्वान वसिष्ठ गणपति मुनि ने भृंगदूत नामक काव्य लिखा, परंतु उसमें कालिदासीय दूतकाव्य के माधुर्य की प्रतीति न आने के कारण उन्होंने वह नदी में फेंक दिया।
।
। । :
ले
7 स्तोत्रकाव्य
मम्मटाचार्य ने अपने काव्यप्रकाश में प्रारंभ में काव्य के छह प्रयोजन तथा फल बताएं हैं। उनमें "शिवेतरक्षति" याने अमंगल का नाश भी एक प्रयोजन बताया है इसके उदाहरण में सूर्यशतककार मयूर एवं गीतगोविंदकार जयदेव आदि कवियों की काव्यरचना की कथाएं बताई जाती हैं। सूर्यशतक की रचना के कारण मयूर कवि का श्वेतकुष्ठ नष्ट हुआ। गीतगोविंद के गायन से जयदेव की मृत पत्नी का उज्जीवन हुआ। गंगातट पर गंगालहरी के गायन से पण्डितराज जगन्नाथ का उद्धार हुआ । नारायणीय स्तोत्र के गायन से नारायणभट्ट वातरोग से मुक्त हुए, इस प्रकार की स्तोत्र काव्य विषयक अनेक कथाएं सर्वत्र प्रसिद्ध हैं।
स्तोत्रकाव्य का स्थायी भाव है उपास्य दैवत, गुरु तथा वंद्य महापुरुष के प्रति उत्कट भक्ति या परमप्रीति । इस अतिसात्त्विक भाव का उद्रेक, ऋग्वेद के इन्द्रवरुणादि देवताविषयक सूक्तों में सर्वप्रथम मिलता है समग्र ऋग्वेद को आद्य स्तोत्रसंग्रह कहने
For Private and Personal Use Only