________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रभावपूर्ण पद्धति से चित्रित किया है। महाभारत के नलोपाख्यान में वर्णित हंस का दूतकर्म सर्वत्र सुविदित है। इस प्रकार दूतद्वारा प्रिय व्यक्ति की ओर काव्यात्मक संदेश भेजने की कविपरंपरा कालिदास को अज्ञात नहीं थी। मेघदूत की रचना करते समय रामायण के हनुमद्भूत का चित्र कालिदास के मन में था इस का प्रमाण “इत्याख्याते पवनतनयं मैथिलीवोन्मुखी सा" इस पंक्ति में स्पष्ट मिलता है। परंतु कालिदास का मेघरूपी दूत "धूमज्योतिसलितमरुतां सन्निपातः" याने एक अचेतन पदार्थ था। इस प्रकार के अचेतन दूतों के माध्यम से काव्यात्मक सन्देश (या सन्देशकाव्य) लिखने की प्रवृत्ति पर भामह ने अपने काव्यालंकार में प्रतिकूल अभिप्राय व्यक्त किया है :
"अयुक्तिमद् यथा दूता जलभृन्मारुतेन्दवः। तथा भ्रमरहारीतचक्रवाकशुकादयः ।।2-42।। अवाचो युक्तिवाचश्च दूरदेशविचारिणः। कथं दूत्यं प्रपद्येरनिति युक्त्या न युज्यते।।43 ।।
यदि चोत्कण्ठया यत् तदुन्मत्त इव भाषते। तथा भवतु भूनेदं सुमेधोभिः प्रयुज्यते । 144 ।। अर्थात् मेघ, वायु, चंद्र, भ्रमर, आदि पक्षी वाणीहीन होने के कारण संदेशवाहक दूतकर्म कैसे कर सकेंगे? उन का दूतकर्म युक्तिसंगत नहीं प्रतीत होता। अत्यंत उत्कण्ठा के कारण उन्मत्त होकर नायक उनके द्वारा संदेश भेजते होगे तो वह ठीक नहीं है। इस प्रकार के दूत अच्छे बुद्धिमान् लोगों द्वारा भेजे गए. काव्यक्षेत्र में दिखाई देते हैं। इस प्रकार का साहित्य-शास्त्रकार भामह का प्रतिकूल अभिप्राय होने पर भी संस्कृत साहित्यिकों ने उस की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। संदेशकाव्यों की परंपरा अव्याहत चालू ही रही।
__ कुछ समालोचकों ने दूतकाव्यों का अन्तर्भाव प्रबन्धात्मक गीतिकाव्यों में तथा मुक्त गीतिकाव्य के रसात्मक प्रकार में किया है। रसरहित गीति साहित्य के अर्न्तगत स्तोत्र, शतक आदि काव्यप्रकारों का अन्तर्भाव वे करते हैं।
उत्तम दूतकाव्य नायक-नायिका के वियोग को पृष्ठभूमि पर लिखे गये हैं। ऐसी विरहावस्थामें दूरस्थ नायिका की स्मृति से व्याकुल नायक मेघ, चंद्रमा, हंस पक्षी आदि के द्वारा अपनी व्यथा प्रेयीसी के प्रति काव्यरूप में भेजता है। साथ ही वह अपने कल्पित संदेशवाहक को प्रिया के निवासस्थान का मार्ग कथन करते हुए नदी, पर्वत, कानन, नगर, ग्राम, तीर्थक्षेत्र आदि रमणीय स्थानों का चित्रण करता है, जिसमें उसकी विरहव्यथा या विप्रलंभ शृंगार की व्यज्जना अत्यंत हृदयावर्जक हुई है। दूतकाव्यों का विषय इतना ही सीमित होने के कारण वह लघुत्तर होता है। इसी कारण साहित्यशास्त्री उसे “खण्डकाव्य" कहते हैं। इस प्रकार की काव्य परंपरा में मेघदूत की साथ ही घटखर्परकाव्य (ले-घटखर्पर) को भी महत्त्व दिया जाता है। मेघदूत और घटखर्परकाव्य के पौर्वापर्य के संबंध में मतभेद है। अभिनवगुप्ताचार्य ने घटखर्पर काव्य पर टीका लिखी है। उसीमें वे उसे कालिदास की ही रचना मानते हैं। मेघदूत का स्पष्ट प्रभाव या अनुकरण, रामचंद्रकृत घनवृत्त, कृष्णमूर्तिकृत यक्षोल्लास, रामशास्त्रीकृत मेघप्रतिसन्देश, परमेश्वर झा कृत यक्षसमागम जैसे काव्यों में दिखाई देता है। जिनसेनाचार्य कृत पार्वाभ्युदय काव्य में प्रत्येक पद्य मेघदूत के क्रम से एक चरण या दो चरणों की समस्या के रूप में ले कर पूरा किया है। विक्रमकविकृत नेमिदूत में मेघदूत के अन्तिम चरणों की समस्यापूर्ति की गई है। मेरुतुंग आचार्य के काव्य का नाम जैनमेघदूत हे परंतु इसमें मेघदूत की समस्यापूर्ति नहीं है। चरित्रसुंदरगणिकृत शीलदूत में कालिदास के मेघदूत का अनुकरण और उसके चौथे चरण की समस्यापूर्ति प्रत्येक श्लोक में की गयी है। मेघविजय कृत मेघदूतसमस्यालेख में मेघद्वारा गुरु के पास सन्देश भेजा गया है।
कालिदास के मेघदूत में प्रधान रस वियोग शृंगार, उद्दीपनविभाव के रूप में आकाश मार्ग से दृग्गोचर सृष्टिके सौंदर्य का रसानुकूल चित्रण हुआ है। परंतु उसका अनुकरण करने वाले अन्य काव्यों में सन्देशवाहक की कल्पना के अतिरिक्त रस, भाव में तथा छन्द में भी वैचित्र्य आया है। जैन संप्रदायी कवियों के दूतकाव्यों में शृंगारिकता के स्थान पर आध्यात्मिक उदात्तता का भाव प्रतीत होता है। वैष्णव कवियों की रचनाओं में कवीन्द्र भट्टाचार्य कृत उध्दवदूत, रूपगोस्वामी कृत उद्धवसन्देश, श्रीकृष्णसार्वभौम कृत पादाङ्कदूत, लंबोदरवैद्यकृत गोपीदूत, त्रिलोचन कृत दूत तुलसी जैसे काव्यों में कृष्णभक्ति का मनोज्ञ उद्रेक दिखाई देता है।
मेघदूत के सन्देशवाहक दूत कल्पना का प्रभाव जर्मन कवि शीलर पर हुआ था। उसने अपने "मारिया स्टुअर्ट" नामक काव्य में कारागृह में पड़ी हुई नायिका का सन्देश मेघ द्वारा प्रियतम की ओर भेजा है। विश्वसाहित्य में बाइबल और पंचतंत्र के अनुवाद संसार की सभी प्रमुख भाषाओं में अभी तक हुए हैं। मेघदूत के अनुवादों की भी संख्या उतनी ही बडी है। इसका पहला अनुवाद 13 वीं शती में तिब्बती भाषा में हुआ। सन 1847 में मैक्समूल्लर ने जर्मन भाषा में किया हुआ अनुवाद उत्कृष्ट माना जाता है। अंग्रेजी अनुवादों में अमेरिकन पंडित रायडर का अनुवाद उत्कृष्ट माना जाता है। 19 वीं शताब्दी में बोन आर गील्ड मिस्टर ने लातिन भाषा में उत्तम अनुवाद किये। मराठी भाषा में भारत के भूतपूर्व विद्वान अर्थमंत्री डॉ. चिन्तामणि द्वारकानाथ देशमुख का समवृत्त अनुवाद सर्वोकृष्ट माना जाता है।
दूतकाव्य की विशेष अभिरुचि बंगाली साहित्यिकों में दिखाई देती है। डॉ. जतीन्द्रबिमल चौधरी ने सन 1953 में
ने घटसर्पर काव्य पर महत्त्व दिया जाता है। मघटूकहते हैं। इस प्रकार
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 249
For Private and Personal Use Only