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कान्यकुब्ज के राजा यशोवर्मा, भवभूति के आश्रयदाता थे। इनके द्वारा लिखित रामकथाविषयक रामाभ्युदय नामक नाटक का, आनंदवर्धन ने ध्वन्यालोक में धनिक ने दशरूपक (1, 42) में और विश्वनाथ ने साहित्यदर्पण ( 6, 142 ) में उल्लेख किया है। परंतु वह अभी तक अप्राप्य रहा है ।
अनंतहर्ष : भासकृत स्वप्नवासवदत्त नाटक के कथाभाग में, कुछ अधिक अंश जोड़ कर अनहंगर्ष ने “ तापसवत्सराज" नामक नाटक लिखा है । वासवदत्ता के निधन की वार्ता सुनकर वत्सराज उदयन विरक्त होता है। उधर पद्मावती वत्सराज का चित्र देख कर प्रेमविव्हल और अंत में विरक्त हो जाती है। वासवदत्ता भी पतिवियोग से हताश होकर अग्निप्रेवश करने प्रयाग जाती है। वहीं पर उदयन भी उसी हेतु जाता है। अचानक दोनों की भेट होकर नाटक सुखान्त होता है। अनंगहर्ष ने अपने नाटक में हर्ष की रत्नावली नाटिका का अनुसरण किया है।
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मायुराज : दशरूपक की अवलोक टीका (2, 54) में मायुराजकृत "उदात्तराघव' नाटक का उल्लेख मिलता है। दक्षिण भारत में यह नाटक भासकृत माना जाता था। मायुराज "करचूली" या कलचूरी वंशीय थे। अपने उदात्तराघव में रामचन्द्र की धीरोदात्तता को बाधा देनेवाला वालिवध का प्रसंग, मायुराज ने बड़ी कुशलता से टाला है। कांचनमृग को मारने के लिये प्रथम लक्ष्मण जाते हैं और उनकी सुरक्षा के लिए राम जाते हैं, ऐसा दृश्य दिखाया है। नाट्यशास्त्र की दृष्टि से ऐसे औचित्यपूर्ण परिवर्तन प्रशंसनीय माने गये हैं।
मुरारि : अपने अनर्घराघव नामक सात अंकी नाटक में मुरारि ने अपना परिचय दिया है। वे महाकवि एवं "बालवाल्मीकि " इन उपाधियों से अपना उल्लेख करते हैं। अनर्थराघवकार ने भवभूति का और प्रसन्नरापवकार जयदेव ने मुरारिका अनुसरण किया है। अनर्घराघव में विश्वामित्र के यज्ञ से लेकर अयोध्या प्रत्यागमन तक का रामचरित्र चित्रित हुआ है। नाटककार "गुरूकुलक्लिष्ट" होने के कारण, उनकी रचना में भी क्लिष्टता का दर्शन होता है ।
राजशेखर: कर्पूरमंजरी, बालरामायण, विद्धशालंभजिका और बालभारत ( अथवा प्रचंडपांडव ) इन चार रूपकों के अतिरिक्त काव्यमीमांसा नामक साहित्यशास्त्रीय ग्रंथ और अनेक सुभाषित राजशेखर ने लिखे हैं।
बालरामायण (1, 12) में अपने छः ग्रन्थों का राजशेखर ने निर्देश किया है। अपना कर्पूरमंजरी नामक प्राकृत सट्टक, पत्नी अवंतिसुंदरी (चाहमान वंशीय) की सूचना के अनुसार राजशेखर ने लिखा इसमें अपना निर्देश बालकवि कविराज और निर्भयराज का अध्यापक इन विशेषणों से दिया है। बालरामायण का प्रयोग अपने छात्र “निर्भय'" अर्थात् प्रतिहार महेन्द्रपाल की प्रार्थना से किया था। विद्धशालभंजिका के प्रथम अंक में, नायक विद्याधरमल्ल, नायिका मृगांकावली की मूर्ति को माला अर्पण करता है। इस कारण नाटक का अपरनाम मृगांकावली हुआ है। इसकी रचना त्रिपुरी के कलचूरीवंशीय राजा केयूरवर्ष के आदेशानुसार राजशेखर ने की है। इस उल्लेख के कारण, राजशेखर महेंद्रपाल के पश्चात त्रिपुरी निवास के लिए गए होंगे यह अनुमान किया जाता है विद्धदशालभञ्जिका और कर्पूरमंजरी की कथाएं कविनिर्मित है। बालभारत के केवल दो अंक उपलब्ध हैं, जिनमें द्रौपदीस्वयंवर और हृतप्रसंग का चित्रण किया गया है राजशेखर का भुवनकोष नामक भूगोलवर्णनात्मक ग्रंथ अनुपलब्ध है बालरामायण में 741 पक्ष है जिनमें 200 गद्य शार्दूलविक्रीडित और 86 पद्य सम्धरा जैसे प्रदीर्घ वृत्तों में लिखे हैं। अंतिम अंक में 105 पद्यों में रामचन्द्र के लंका से अयोध्या तक के विमानप्रवास का वर्णन है। इस प्रकार के कारणों से बालरामायण महानाटक की अपेक्षा लघुकाव्य सा हुआ है।
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क्षेमीश्वर: अपने आश्रयदाता महीपालदेव के आदेशानुसार क्षेमीश्वरने चण्डकौशिक नामक पाँच अंकों का नाटक लिखा । मार्कण्डेय पुराणान्तर्गत हरिश्चन्द्र की कथा पर यह नाटक आधारित है। चण्डकौशिक की तंजौर में उपलब्ध पाण्डुलिपि में कवि का नाम "क्षेमेंद्र" लिखा है अतः बृहत्कथाकार क्षेमेन्द्र और चण्डकौशिककार इनकी एकता होने के विषय में बनेल और पिशेल ने चर्चा की है। क्षेमीश्वर का दूसरा नाटक नैषधानंद, नलकथा पर आधारित है।
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जयदेव प्रसन्नराघव नामक नाटक में सीता स्वयंवर से अयोध्याप्रत्यागमन तक का कथाभाग इन्होंने चित्रित किया है। अर्थात् भवभूति, मुरारि आदि पूर्ववर्ती रामनाटकों की कृतियों का अनुकरण, प्रसन्नराघवकार ने किया है जयदेव का चंद्रालोक नामक साहित्यशास्त्रीय ग्रंथ, अप्पय्य दीक्षित ने अपने कुवलयानंद में समाविष्ट किया है।
संस्कृत नाट्यवाङ्मय में विशेष रूप से योगदान करने वाले उपरिनिर्दिष्ट प्रमुख लेखकों के अतिरिक्त, हनुमान् कविकृत हनुमन्नाटक ( कुछ विद्वान मधुसूदन मिश्र को इस नाटक के लेखक अथवा संशोधनकार मानते हैं ) 14 अंकों का "महानाटक", सुभटकवि कृत दूतांगद नामक छायानाटक इत्यादि नाटक उल्लेखनीय हैं।
228 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड
छायानाटक के प्रयोग प्राचीन काल में प्रचलित थे। दूतांगद के अतिरिक्त भूभट्टकृत अंगद, रामदेवकृत सुभद्रापरिणय, रामाभ्युदय और पाण्डवाभ्युदय ये तीन नाटक, शंकरलाल कृत सावित्रीचारित, कृष्णनाथ स्वार्वभौम भट्टाचार्य कृत आनंदलतिका, वैद्यनाथ वाचस्पतिकृत चित्रयज्ञ (दक्षयज्ञविषयक) इत्यादि सायनाटक उल्लेखनीय हैं।
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