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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 लाक्षणिक या प्रतीक नाटक 12 वीं शती के एक संन्यासी कृष्णमिश्र दण्डी ने "प्रबोधचन्द्रोदय" नामक छः अंकों का शांतरसप्रधान तत्त्वोद्बोधक नाटक निर्माण कर, संस्कृत नाट्यवाङ्मय में एक नयी प्रणाली का प्रवर्तन किया। अद्वैतवाद के प्रतिपादन के उद्देश्य से इस नाटक में श्रद्धा, भक्ति, विद्या, ज्ञान, मोह, विवेक, दम्भ, बुद्धि इत्यादि अमूर्त भावों को पात्रों के रूप में मंच पर लाया गया है। कृष्णमिश्र का यह अनोखा नाट्यप्रकार आगे चल कर लोकप्रिय हुआ सा दीखता है। इस प्रकार के लाक्षणिक नाटकों में परमानंद दास कवि कर्णपूर (16 वीं शती) का चैतन्यचंद्रोदय, भूदेव शुक्ल (16 वीं शती) कृत धर्मविजय, कृष्णदत्त मैथिल (17 वीं शती) कृत पुरंजनचरित्र, शुक्लेश्वरनाथकृत प्रबोधोदय, श्रीनिवास अतिरात्र याजी का भावनापुरुषोत्तम, आनंदरायमखीकृत (वस्तुतः वेदकविकृत) विद्यापरिणयन और जीवनंदन; कवितार्किकसिंह कृत संकल्पसूर्योदय, गोकुलनाथ शर्मा का अमृतोदय, नृसिंह कवि का अनुमितिपरिणय, रंगीलाल (19 वीं शती) का आनंदचंद्रोदय, नृसिंहदैवज्ञ का चितसूर्यालोकः नल्ला दीक्षित का चित्तवृत्तिकल्याण और जीवनमुक्तिकल्याण, ब्राह्मसूर्यकृत ज्योतिःप्रभाकल्याण, रविदासकृत मिथ्याज्ञानविडम्बन, यशःपालकृत मोहपराजय, कृष्णकविकृत मुक्ताचरित, गोविंदपुत्र सुंदरदेव कृत मुक्तिपरिणय, घट्टशेषार्यकृत प्रसन्नसपिण्डीकरणनिरासः, जातवेदसकृत पूर्णपुरुषार्थचन्द्रोदय, जयंतभट्टकृत सन्मतनाटक, वैकुण्ठपुरीकृत शांतिचरित (बौद्धधर्मविषयक) नाटक, वैद्यनाथकृत सत्संगविजय, अनंतरामकृत स्वानुभूतिनाटक, पूर्णगुरुपुत्र रामानुजकविकृत विवेकविजय, वरदाचार्य (नामान्तर अम्मलाचार्य) कृत वेदान्तविलास (अथवा यतिराजविजय ही नहीं अपि तु जागतिक नाट्य वाङ्मय का यह रामानुजमतप्रतिपादक नाटक है), पद्मराज पंडितकृत महिसूरू-शांतीश्वर-प्रतिष्ठा (जैनधर्मीय नाटक); वादिचंद्रसूरिकृत ज्ञानसूर्योदय; यशश्चंद्रकृत कुसुमचंद्र, कृष्णानंद सरस्वतीकृत अन्तर्व्याकरणनाट्य (इसके श्लोक क्लिष्ट हैं जिनमें व्याकरण शास्त्र परक और नीतिपरक अर्थ मिलते हैं।) इत्यादि। लाक्षणिक नाटक संस्कृत नाट्यवाङ्मय का, एक वैशिष्ट्यपूर्ण अनोखा अंग कहा जा सकता है। 11 रामायणीय नाटक वाल्मीकि का रामायण भारत की सभी भाषाओं के असंख्य साहित्यिकों के लिए उपजीव्य ग्रंथ रहा है। संस्कृत नाटककारों में, रामायणीय नाटकों को लिखने की परंपरा भास से प्रारंभ होती है और भवभूति के उत्कृष्ट नाटकों के प्रभाव से बढ़ती हुई दिखाई देती है। कुछ श्रेष्ठ नाटककारों का जो परिचय उपर दिया गया है, उनमें कुछ रामचरित्र विषयक नाटकों का उल्लेख किया है। उनके अतिरिक्त उल्लेखनीय नाटकों का संक्षेपतः निर्देश मात्र इस प्रकरण में देना संभव है। नाटककार नाटक विशेष भट्टसुकुमार (अथवा भूषण) रघुवीरचरित पांच अंकी नृत्यगोपाल कविरत्न रामावदान, पांच अंकी दर्पशातन परशुरामविषयक कथांश पर आधारित सुंदर मिश्र अभिरामवाटक सात अंकी महादेव (सूर्यपुत्र) अद्भुतदर्पण दशांकी, अंगदाशिष्टाई से अयोध्या (नामान्तर मायारूपक अथवा माया प्रत्यागमन तक का लंका में हुआ कथा भाग, नाटिका) इस नाटक में राम-लक्ष्मण मायावी दर्पण में देखते हैं। रामनाटक में कहीं भी न मिलने वाला विदूषक इस नाटक में हास्य रस की झलक दिखाता है। महादेवशास्त्री उन्मत्तराघव सात अंकी रामभद्र दीक्षित (कुंभकोण निवासी) जानकीपरिणय सात अंकी, सीता स्वयंवर से अयोध्या प्रत्यागमन तक की कथा। मधुसूदन (दरभंगा निवासी) जानकीपरिणय चार अंकी भट्टनारायण जानकीपरिणय (वेणी संहार के लेखक से भिन्न व्यक्ति) सीताराम जानकीपरिणय हस्तिमल्लसेन (जैन धर्मी) मैथिलीपरिणय और अंजनापवनंजय सुब्रह्मण्य (कृष्णसूरिपुत्र) सीताविवाह पांच अंकी संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 229 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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