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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूपक के दस प्रकार : नाटक, प्रकरण, भाण, व्यायोग, समवकार, डिम, ईहामृग उत्सृष्टिकांक, वीथी और प्रहसन इन दस रूपकों में सर्वांगपरिपूर्णता के कारण "नाटक" नामक रूपकप्रकार प्रमुख माना गया है। शास्त्रकारों ने परमानंदरूप रसास्वाद, दशविध रूपकों का प्रयोजन या फल माना है। वस्तु (कथा), नायक और रस इन तीन कारणों से रूपक में दस भेद निर्माण होते हैं, तदनुसार दसों रूपकों का स्वरूपभेद संक्षेपतः बताया जा सकता है जैसे : 1) नाटक : कथा, प्रख्यात । नायक : दिव्य, अदिव्य, दिव्यादिव्य एवं। धीरोदात्त गुणसंपन्न । नायिका : नायक के अनुरूप दिव्य अथवा अदिव्य। प्रधान रस : शृंगार अथवा वीर। अंकसंख्या : 5 से 10 तक। दस से अधिक अंक वाले नाटक को विश्वनाथ ने “महानाटक" संज्ञा दी है। 2) प्रकरण : कथा : कल्पित। नायक : अमात्य, ब्राह्मण, अथवा वणिक् (व्यापारी) धीरप्रशान्त गुणयुक्त। (रामचंद्र-गुणचंद्र के मतानुसार धीरोदत्त) "नायिका : कुलस्त्री अथवा वेश्या। विदूषक और विट आवश्यक। अंकसंख्या : 101 3) भाण : एक धूर्त पात्र चाहिए। उक्तिप्रयुक्ति । भारती वृत्ति । अंक : 1 । प्रधानरस : वीर, शृंगार, हास्य । वृत्ति : कैशिकी। 4) प्रहसन : 1) शुद्ध, उत्तम पात्रयुक्त। 2) संकीर्ण : अधम पात्रयुक्त 3) विकृत : अंकसंख्या : 2। 5) डिम : प्रख्यात वस्तु । शृंगार और हास्य रस वर्ण्य । नायक संख्या 16 1 अंक संस्या 4 । वृत्ति सात्वती और आरभटी । अंगीरस : रौद्र 6) व्यायोग : नायक : दिव्य प्रख्यात राजर्षि । अंक : 1। युद्धदर्शन। रस : रौद्र और वीर। नायक संख्या : शारदातनय के मतानुसार 3 से 10 तक। 7) समवकार : देवदैत्य कथा। अंक 3। प्रत्येक अंक में 4 नायक। कुल-नायकसंख्या : 12। प्रतिनायक : असुर । भरत के मतानुसार समवकार में त्रि-विद्रव, त्रि-कष्ट और त्रि-शृंगार चाहिए। 8) उत्सृष्टिकांक : वस्तु प्रख्यात । अप्रख्यात दिव्य पुरुषों का अभाव। युद्ध का अभाव। वृत्ति भारती अंक 1। १) वीथी: अंक 1। पात्र : एक या दो। प्रधानरस : शृंगार। अन्य सभी रस चाहिए। 10ईहामृग : वस्तु प्रख्यात । पात्र : दिव्य उद्धत। स्त्रीनिमित्तक युद्ध । अंक 4। रस : शृंगार । अंकों की संख्या के अनुसार दस रूपकों के छः भेद होते हैं जैसे :एक अंक = भाण, व्यायोग, वीथी और उत्सृष्टिकांक। चार अंक = डिम, ईहामृग। दो अंक = प्रहसन। पाँच से सात अंक = नाटक । तीन अंक = समवकार। आठ से दस अंक = प्रकरण । नायक संख्या की दृष्टि से अनेक नायक वाले रूपक तीन होते हैं। डिम : 16 नायक। समवकार : 4 नायक। व्यायोग : 3 से 10 तक। उपरूपक उपरूपक के 14 प्रकार धनंजय मानते हैं तो विश्वनाथ के अनुसार उसके 18 प्रकार होते हैं। 1) नाटिका : यह नाटक का उपरूपक माना जाता है। अंक 4। रस : शृंगार। नायक : धीरललित। नायिका : दो होती हैं। 1) ज्येष्ठा और 2) कनिष्ठा। नायक : प्रख्यात राजा। वृत्ति : कैशिकी। इसमें नृत्यगीत की आवश्यकता होती है। 2) त्रोटक : विश्वनाथ के मतानुसार इसमें 5, 7 या १ अंक होते हैं। प्रत्येक अंक में विदूषक का प्रवेश आवश्यक है। देवता और मानवों की मिश्रकथा होती है। कालिदास का विक्रमोर्वशीय त्रोटक का उदाहरण है।। 3) गोष्ठी : इसमें पुरुष पात्र 10 और स्त्री पात्र 6 होते हैं। वृत्ति : कैशिकी। 4) सट्टक : नाटिका के समान। वृत्ति : कौशिकी एवं भारती। प्राकृतभाषाप्रधान : इसमें सात्त्विक रस का महत्त्व होता है। 5) नाट्यरासक : नायक : उदात्त । नायिका : वासकसजा। अंक 1। रस : हास्य, शृंगार। संगीतप्रचुर। 10 प्रकार के लास्यांग प्रयुक्त होते हैं।। 6) प्रस्थानक : इसमें नायक - नायिका दास-दासी होते हैं। वृत्ति : कैशिकी। संगीतप्रचुर। 7) उल्लाध : शारदातनय के मतानुसार इसमें 4 नायिका और नायक होते हैं। अंक : 1। कैशिकी, सात्वती, आरभटी और भारती ये चारों वृत्तियाँ आवश्यक। रस : शृंगार, हास। संगीतप्रचुर । 8) प्रेक्षणक : विश्वनाथ के मतानुसार इसमें नायक नहीं होता। सागरनंदी के मतानुसार विविध भाषाएं होती हैं। उन में शौरसेनी प्रमुख। अंक 1, चारों वृत्तियाँ आवश्यक। १) रासक : प्रख्यात नायक और नायिका । पात्रसंख्या- पांच । नायक मूढ होता है। अंक 1 । वृत्तियाँ कैशिकी और भारती। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 217 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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