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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org की रचना की, जिनमें जिनसेन (ई.8 वीं शती) का पार्श्वाभ्युदय, विक्रम का नेमिदूत (ई. 13 वीं शती), मेरुतुंग का जैनमेघदूत (ई. 14-15 वीं शती), चरित्रसुंदरगणि का शीलदूत (ई. 15 वीं शती), वादिचंद्र का पवनदूत (ई. 17 वीं शती), विनयविजयगणिका इन्दुदूत (ई. 18 वीं शती), मेघविजय का मेघदूत समस्यालेख (ई. 18 वीं शती) विमलकीर्तिगण का चन्द्रदत और अज्ञातकर्तृक चेतोदूत इत्यादि दूतकाव्य उल्लेखनीय हैं। इन दूतकाव्यों में विप्रलंभ के अलावा शान्तरस को प्रधान स्थान दिया गया है। साहित्यिक सरसता से अपने धर्म सिद्धान्तों एवं धर्मनियमों को इन दूतकाव्यों द्वारा प्रचारित करने का प्रयास हुआ है। " जयदेवकृत राग-ताल निबद्ध गीतगोविंदम् के प्रभाव से अभिनव चारुकीर्ति पंडितचार्य (श्रवणबेलगोल (कर्णाटक) मठ के भट्टारक ई.14-15 वीं शती) ने गीतवीतराग प्रबन्ध की रचना की, जिसमें 25 प्रबंधों में तीर्थंकर ऋषभदेव के पूर्वजन्मों की कथा वर्णन करते हुए स्तुति की है। संस्कृत वाङ्मय में प्रभुरामचंद्र की कथा पर आधारित विविध प्रकार के साहित्य की संख्या बहुत बड़ी है। उपरिनिर्दिष्ट तीर्थंकर विषयक साहित्य के साथ ही जैन साहित्यिकों ने रामकथा पर आधारित पौराणिक काव्यों की रचना की। ई-7 वीं शती में रचित विमलसूरि का "पऊमचरिय” नामक प्राकृत काव्य रामकथा विषयक जैन काव्यों का उपजीव्य ग्रंथ है। जैनपुराण साहित्य में यह सब से प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। इसमें वर्णित रामकथा का स्वरूप वाल्मीकीय रामकथा से अनेक प्रकारों से भिन्न है। वाल्मीकीय और जैनीय रामायण के सारे प्रमुख पात्र नामतः एक ही हैं, परंतु उनके व्यक्तित्व का चित्रण सर्वथा निराला है। यहाँ के उपाख्यान भी स्वतंत्र हैं। विमलसूरि ने रामकथा का निरुपण जैन धर्म के अनुकूल करते हुये, जैन धर्म का यथोचित प्रतिपादन किया है। संस्कृत में रचित रामचरित्रों में रविषेण कृत पद्मचरित या पद्मपुराण, देवविनय कृत गद्यात्मक जैनरामायण तथा जिनदास (ई. 16 वीं शती) सोमसेन, धर्मकीर्ति, चन्द्रकीर्ति भट्टारक, चन्द्रसागर, श्रीचन्द्र इन लेखकों के पद्मपुराण (या रामपुराण) नामक ग्रंथ एवं शुभवर्धनगणि कृत पद्ममहाकाव्य, पद्मनाभकृत रामचरित्र, प्रभाचंद्र (या श्रीचंद्र) कृत पद्मपुराणपंजिका, इत्यादि ग्रंथ विशेष उल्लेखनीय हैं। सोताचरित्रपरक ग्रन्थों मे शान्तिसूरि ब्रह्मनेमिदत्त और अमरदास के काव्य उल्लेखनीय हैं। महाभारत की कथा पर आधारित जिनसेन (ई. 8 वीं शती) कृत हरिवंशपुराण काव्यगुणों से परिपूर्ण एक विश्वकोशात्मक कथाग्रंथ है। इसमें 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ का चरित्र केन्द्रबिन्दु है, जिसका विस्तार, वसुदेव, कृष्ण, बलराम, प्रद्युम्न, सांब, जरासंघ, कौरव, पाण्डव इत्यादि पुरुषों का, जैन मान्यतानुसार चरित्रवर्णन करते हुए, किया गया है। इस ग्रंथ का स्वरूप "जैन महाभारत" संज्ञा के योग्य है ग्रन्थ की प्रत्येक पुष्पिका में "अरिष्टनेमिपुराणसंग्रह" नाम से इस पुराण का निर्देश हुआ है। I पाण्डवचरित नामक 18 सर्गों के महाकाव्य में देवप्रभसूरि (ई. 14 वीं शती) ने जैन परंपरा के अनुसार, षष्ठांगोपनिषद तथा हेमचन्द्राचार्य कृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित पर आधारित पाण्डवचरित्र का वर्णन किया है साथ में तीर्थंकर नेमिनाथ का चारित्र भी निवेदित हुआ है। इसी प्रकार भट्टारक सकलकीर्ति के हरिवंश पुराण में कौरव पाण्डव और श्रीकृष्ण के चरित्रों के साथ 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ का चरित्र वर्णन किया गया है। इस काव्य में कुल सर्गसंख्या है 40 परंतु उनमें से प्रथम 14 सर्गों की रचना सकलकीर्ति की है, और शेष सर्गों की रचना, उन के शिष्य ब्रह्मजिनदास ने की है। सकलकीर्ति द्वारा रचित 28 संस्कृत ग्रंथों में से कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का निर्देश प्रस्तुत प्रकरण में यथास्थान हुआ है। भट्टारक शुभचन्द्र का पाण्डवचरित "जैनमहाभारत" नाम से विदित है इसमें 25 पर्व है और प्रत्येक पर्व का प्रारंम्भ तीर्थकर की स्तुति से होता है प्रथम पर्व में ऋषभादि 24 तीर्थंकरों की स्तुति है। पाण्डव चरित्र विषयक अन्य ग्रंथ: पाण्डवपुराण (सर्ग-18) ले. भट्टारक वादिचन्द्र । पाण्डवपुराण ले. श्रीभूषण ई. 18 वीं शती। पाण्डवचरित्र (सर्ग - 18 ) :- ले. देवविजयगणि। ई. 18 वीं शती । पाण्डवचरित्र (हरिवंशपुराण): ले. शुभवर्धनगण । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पाण्डवपुराण: ले. रामचंद्र ! हरिवंशपुराण:- ले. श्रीभूषण ई. 18 वीं शती । 2) ले श्रुतकीर्ति, 3) ले. जयसागर 4 ) ले. जयानन्द । ५) ले मंगरा । इस प्रकार रामायण और महाभारत की लोकप्रियता के कारण जैन साहित्यकों ने उन सरस कथाओं पर आधारित काव्यों की रचना पर्याप्त मात्रा में की है, परंतु उन कथाओं में जैन परंपरा तथा जैन विचारधारा का अंश मिला कर पृथगात्मता निर्माण करने का प्रयास किया है। ! 5) जैन anantव्ण संस्कृत साहित्य में स्तोत्रात्मक काव्यों की वेदों से प्रारंभ होता है। इन्द्र, वरुण, For Private and Personal Use Only संस्कृत कङ्मय कोश अपर
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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