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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इत्यादि देवताओं के स्तोत्र सुप्रसिद्ध हैं। समस्त पुराण वाङ्मय में शताबधि स्तोत्र सर्वत्र विखरे हुए हैं। उनके अतिरिक्त मातृचेट का अर्घ्यशतक, शैववाङ्मय में पुष्पदन्त का शिवमहिम्नःस्तोत्र, बाणभट्ट का चण्डीशतक मुरारि का सूर्यशतक, और शंकरादि आचार्यों के भावपूर्ण स्तोत्र संस्कृत साहित्य में अविस्मरणीय हैं। जैन धर्म में ज्ञान, दर्शन और चरित्र पर विशेष आग्रह है। उपास्य तीर्थंकर एवं पंच परमेष्ठियों (अर्थात् अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु) के स्तोत्र गान से, जीव को इस "त्रिरत्न" का बोध होता है यह सिद्धान्त माना गया है। अतः संस्कृतभाषा में जैन मतानुकूल भक्तिपूर्ण स्तोत्र बहुमुखी धारा में प्रवाहित हुए। इन में कुछ तार्किक शैली में, कुछ आलंकारिक शैली में, कुछ समस्यापूर्ति के रूप में रचित है। जैन समाज में सबसे प्रिय दो स्तोत्र माने गये है :- 1) मानतुंगाचार्य (ई. 7 वीं शती) कृत भक्तामरस्तोत्र और 2) कुमुदचंद्रकृत कल्याणमंदिरस्तोत्र । प्रथम स्तोत्र में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की 44 (या 48) पद्यों में एवं द्वितीय में पार्श्वनाथ की 44 पद्यों में स्तुति की गई है। हेमचन्द्राचार्य कृत वीतरागस्तोत्र और महादेवस्तोत्र में, ___ "भवबीजांकुरजनना रागाद्याः क्षयमुपगता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै।।" "तं वन्दे साधुवंद्यं सकलगुणनिधिं ध्वस्तदोषद्विषन्तं । बुद्धं वा वर्धमानं शतदलनिलयं केशवं वा शिवं वा।।" इत्यादि वचनों द्वारा सर्वमतों की एकात्मता की उदार भावना उत्कृष्ट रीति से अभिव्यक्त हुई है। जैन स्तोत्र वाङ्मय में 24 तीर्थंकरों के गुणवर्णनपर स्तोत्र प्रमुख हैं। इन में सबसे अधिक संख्या है पार्श्वनाथ से संबंधित स्तोत्रों की । इस के बाद ऋषभदेव और महावीर पर लिखे स्तोत्रों की संख्या आती है। शेष तीर्थंकरों से संबधित स्तोत्र और भी कम हैं। "कुछ उल्लेखनीय जैन स्तोत्रकार और स्तोत्र" 1) समन्तभद्र- अ) स्वयंभूस्तोत्र आ) देवागमस्तोत्र। इ) युक्त्यनुशासन, ई) जिनशतकालंकार । 2) आचार्य सिद्धसेन- द्वात्रिंशिका स्तोत्र । - 3) आचार्य हेमचंद्र- 1) अयोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका। 2) अन्ययोगद्वात्रिंशिका। 4) प्रज्ञाचक्षु श्रीपाल- सर्वनियतिस्तुति । 5) रामचन्द्रसूरि- द्वात्रिशिंकास्तोत्र । 6) जयतिलकसूरि- चतुर्हारावलिचित्रस्तव । 7) विवेकसागर- वीतरागस्तव (श्लिष्टस्तोत्र)। इसके 30 अर्थ श्लेषद्वारा निकाले जाते हैं। 8) नयचंद्रसूरि- स्तंभपार्श्वस्तव। 18 अर्थो का (श्लिष्टस्तोत्र)। . 9) समयसुन्दर- ऋषभभक्तामरस्तोत्र । 10) लक्ष्मीविमल- शान्तिभक्तामर ।। 11) रत्नसिंहसूरि- नेमिभक्तामर । । 12) धर्मवर्धनगणि- वीरभक्तामर । 13) धर्मसिंहसूरि- सरस्वतीभक्तामर ।। इनके अतिरिक्त जिनभक्तामर, आत्मभक्तामर, श्रीवल्लभभक्तामर, एवं कालीभक्तामर इत्यादि भक्तामर- शब्दान्त स्तोत्रों में मानतुंग कृत सुप्रसिद्ध भक्तामरस्तोत्र की पादपूर्ति करते हुए स्तुतिपद्यों की रचना की गई है। इसी प्रकार कुमुदचंद्रकृत कल्याणमंदिर स्तोत्र की समस्यापूर्ति में भावप्रभसूरिकृत जैनधर्मवरस्तोत्र, तथा अज्ञातकर्तृक पार्श्वनाथस्तोत्र, वीरस्तुति, विजयानदसूरी ईश्वरस्तवन, इत्यादि स्तोत्र उल्लेखनीय हैं। 14) देवनन्दी पूज्यपाद (ई. 6 शती) :- सिद्धभक्ति और सिद्धप्रियस्तोत्र । 15) पात्रकेशरी- (ई. 6 शती) - जिनेन्द्रगुणसंस्तुति । 16) मानतुंगाचार्य (ई. 7 वीं शती) भक्तामरस्तोत्र (या आदिनाथ स्तोत्र) 17) बप्पभट्टि- (ई. 8 वीं शती) - सरस्वतीस्तोत्र, शान्तिस्तोत्र, चतुविंशतिजिनस्तुति, वीरस्तव। 18) धनंजय (ई. 8 वीं शती) जिनसहस्रनाम। 19) जिनसेन (ई. 9 वीं शती) जिनसहस्रनाम। 20) विद्यानन्द - श्रीपुरपार्श्वनाथ। 21) कुमुदचन्द्र (सिद्धसेन ई. 11 वीं शती) कल्याणमन्दिर । 22) शोभनमुनि- (ई. 11 वीं शती) चतुर्विशतिजिनस्तुति । 23) वादिराजसूरि - ज्ञानलोचनस्तोत्र, एकीभावस्तोत्र । .11 वीं 23) वाशिमान (ई. 198 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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