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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनिसुव्रतचरित : ले. मुनिरत्न सूरि। सर्ग 23। श्लोक 6806) 2) ले. पद्मप्रभसूरि। श्लोक 55551 3) ले. विनयचंद्रसूरि । सर्ग 8, श्लोक 455214) ले. अर्हद्दास। 5) ले. कृष्णदास (सर्ग 23) 6) ले. केशवसेन । 7) ले. भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति । 8) ले. हरिषेण । नेमिनाथचरितः- ले. सुराचार्य। यह काव्य द्विसन्धानात्मक है; जिसका एक अर्थ प्रथम तीर्थंकर ऋषभ परक और दूसरा 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ परक होता है। नेमिनिर्वाणकाव्यः- ले. वाग्भट (12 वीं शती) सर्ग-15। नेमिचरित्रमहाकाव्यः- ले. रामन। ई. 14 वीं शती। नेमिनाथचरित्रः- ले. दामोदर। ई. 14 वीं शती। 2) ले. उदयप्रभ । नेमिचरितकाव्य:- ले. विक्रम। इसमें मेघदूत के पादों की समस्यापूर्ति कवि ने की है। नेमिनाथ-महाकाव्यः- ले. कीर्तिराज उपाध्याय। सर्ग-12। श्लोक-703 । नेमिनाथचरित (गद्यकाव्य):- ले. गुणविजय गणि। ग्रंथ 13 विभागों में विभाजित है। नेमिनिर्वाणकाव्य:- ले. ब्रह्मनेमिदत्त । ई. 17 वीं शती। सर्ग-161 पार्वाभ्युदयः- ले. जिनसेन (प्रथम)। ई.9 वीं शती । मेघदूत की पंक्तियों की समस्यापूर्ति करते हुए पार्श्वनाथ का चरित्र इसमें वर्णित है। पार्श्वनाथ-चरित (अपरनाम-पार्श्वनाथ जिनेश्वर चरित):- ले. वादिराज सूरि । ई. 11 वीं शती। सर्ग-121 2) ले. माणिक्यचंद्रसूरि । सर्ग-10। श्लोक-67701 3) ले. विनयचंद्रसूरि। ई. 14वीं शती। श्लोक-49851 4) ले. सर्वानन्दसूरि। श्लोक-8000। 5) ले. भावदेव सूरि । ई. 16 वीं शती। सर्ग-8। श्लोक-6074। 6) ले. सकलकीर्ति । ई. 15 वीं शती। सर्ग-23। 7) ले. पद्मसुंदर । ई. 15 वीं शती । सर्ग-718) ले. हेमविजय । 9) ले. वादिचंद्र । ई. 17 वीं शती। 10) ले. वीरगणि (गद्यग्रंथ)। महावीर चरितः- (अपरनाम-वर्धमानचरित या सन्पतिचरित):- ले. असंग कवि। ई. 11 वीं शती। वर्धमानचरितः- (अपरनाम महावीरपुराण या वर्धमानपुराण)- ले. सकलकीर्ति। अममस्वामिचरित:- ले. मुनिरत्नसूरि । ई. 13 वीं शती। सर्ग-201 श्लोक-10 हजार। इसमें भावी तीर्थंकर अममस्वामी का चरित्र वर्णन किया है। जैन धर्म में जिन 24 तीर्थंकरों को मान्यता प्राप्त है, उनके जीवनचरित्र इस प्रकार विविध पौराणिक काव्यों में लिखे गये। इन महापुरुषों के चरित्रों पर आधारित महाकाव्य, भारवि, माघ बाण, भट्टि आदि के महाकाव्यों के अनुकरणपर रचे गये हैं, जिनका अन्तर्भाव रीतिबद्ध श्रेणी में या शास्त्रकाव्य तथा बह्वर्थक महाकाव्यों में होता है। इनमें कवियों ने अन्य महाकवियों के समान अल्प कथावस्तु का चित्रण करते हुए अपना पाण्डित्य एवं प्रतिभावैभव प्रकट करने की चेष्टा की है। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण काव्यों का उल्लेख पौराणिक महाकाव्यों की उपरिलिखित नामावलि में हुआ है। विशेषतः उल्लेखनीय हैं कुछ अनेकार्थक या "संधान-काव्य" जिनकी रचना (संस्कृतभाषीय शब्दों की अनेकार्थकता के कारण) संस्कृत में ही हो सकती है। इस प्रकार के जटिल काव्यों की रचना ई. 5 वीं 6ठी सदी से होने लगी। जैन संधानकाव्यों में सबसे प्राचीन और उत्तम माना हुआ "द्विसंधान" काव्य धनंजय ने (ई. 8 वीं शती) में लिखा, जिसका नाम है राघव-पाण्डवीय। इसमें रामायण और महाभारत की कथा 18 सर्गों में एक साथ बड़ी कुशलता से ग्रंथित की है। इस विचित्र परंपरा में श्रुतकीर्ति त्रैविद्य का राघवपाण्डवीय, माधव भट्ट का राघवपाण्डवीय, सन्ध्याकरनन्दी का रामचरित, हरिदत्त सूरि का राघवनैषधीय चिदम्बरकविकृत राघवपाण्डवयादवीय आदि संधानकाव्यों का अन्तभाव होता है। जैन वाङ्मय की दृष्टि से इस प्रकार के काव्यों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण काव्य है मेघविजयगणिकृत "सप्तसंधानकाव्य", जिस के प्रत्येक श्लेषमय पद्य से ऋषभ, शान्ति, नेमि, पार्श्व और महावीर इन पांच तीर्थंकरों एवं राम तथा कृष्ण इन सात महापुरुषों के चरित्र व्यक्त होते हैं। इस काव्य में 9 सर्ग हैं। सोमप्रभाचार्य ने "शतार्थिक" काव्य के रूप में एक ही पद्य की रचना की और उसपर अपनी टीका लिखकर 106 -अर्थ निकाले है जिनमें 24 तीर्थंकरों के साथ ब्रह्म, विष्णु, महेश तथा कुछ ऐतिहासिक नृपतियों के भी चरित्र व्यक्त होते हैं। 10 वीं शताब्दी से त्रिविक्रमभट्ट कृत नलचम्पू के प्रभाव से संस्कृत में गद्य-पद्यात्मक काव्य रचना होने लगी, जिसे साहित्यशास्त्रियों ने "चम्पू" नाम दिया। जैन संस्कृत वाङ्मय की परम्परा में सोमदेव सूरिकृत यशस्तिलकचम्पू (जिसमें जैन पुराणों में वर्णित यशोधर नृपति की कथा, आठ आश्वासों में वर्णित है, हरिचन्द्रकृत जीवन्धर-चम्पू और अर्हद्दासकृत पुरुदेवचम्पू ये तीन ग्रंथ विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। दूतकाव्य विश्व साहित्य में संस्कृत साहित्य के दूतकाव्य अपूर्व माने जाते हैं। कालिदास ने अपने मेघदूत द्वारा इस काव्य प्रकार को प्रवर्तित किया। पाश्चात्य साहित्य पर भी इस का प्रभाव पड़ा। प्राचीन जैन कवियों ने इस पद्धति के अनुसार कुछ दूतकाव्यों 196/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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