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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 2 ) योगदृष्टिसमुच्चय:- ले. हरिभद्र । श्लोक - २२६ । इस पर स्वयं ग्रंथकार कृत 1175 श्लोक परिमाण (59 वृत्ति और साधुराजगणि कृत 450 श्लोक परिमाण (अप्रकाशित) टीका है। भानुविजयमणि की योगदृष्टिसमुच्चय पीठिका प्रकाशित है। 3) ब्रह्मसिद्धिसमुच्चयः ले. हरिभद्रसूरि श्लोकसंख्या 423 से अधिक । (4) परमात्मप्रकाशः ले पद्मनन्दी । श्लोक - 13001 5) योगसार:- मूल प्राकृत नाम है जोगसार । ले. योगीन्दु। इस पर इन्द्रनन्दी तथा एक अज्ञात लेखक की टीकाएं संस्कृत में हैं। 6) योगशास्त्र (अथवा अध्यात्मोपनिषद्): ले. हेमचन्द्र सूरि ( उपाधि - कलिकालसर्वज्ञ) । 12 प्रकाशों में पूर्ण । श्लोक संख्या-1019। इस पर इन्द्रनन्दी कृत (ई. 13 वीं शती) योगिरमा, अमरप्रभसूसिरकृत वृत्ति, और इन्द्रसौभाग्यगणि कृत वार्तिक हैं । 7) योगप्रदीप ( नामान्तर- योगार्णव, ज्ञानार्णवः - ले. शुभचंद्र । समय- ई. 13 वीं शती । सर्गसंख्या - 12 । श्लोक - 2077 इस पर श्रुतसागरकृत तत्त्वत्रयप्रकाशिनी तथा अन्य दो टीकाएं हैं। 8) योगप्रदीप:- ले. अज्ञात । श्लोक 143 १) ध्यानविचार:- गद्यात्मक रचना ले अज्ञात इसमें ध्यान के प्रमुख 24 प्रकार और अनेक अनेकविध उप प्रकारों का निरूपण किया है। 10 ) ध्यानदीपिका :- ले. सकलचंद्र | ई. 16 वीं शती । ११) ध्यानमाला :- ले. नेमिदास। 12) ध्यानसार:- ले. यशकीर्ति । 13) ध्यानस्तव: ले. भास्कर नन्दी । 14) ध्यानस्वरूप :- ले. भावविजय। ई. १८ वीं शती । 15) द्वादशानुप्रेक्षा: 1) सोमदेव, 2) कल्याणकीर्ति 3) अज्ञातकर्तृ । 16) साम्यशतक :- ले विजयदेवसूरि श्लोक -107। 17) योगतरंगिणी :- ले. अज्ञात । इसपर जिनदत्त सूरि को टीका है। 18) योगदीपिका :- ले. आशाधर । 19) योगभेद द्वात्रिंशिका ले. परमानन्द । 20) योगमार्ग ले सोमदेव 21 ) योगरत्नाकर:- ले. जयकीर्ति । 22) योगविवरण: ले. यादव सूरि 23) योगसंग्रहसार : ले. जिनचंद्र - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24) योगसंग्रहसार - प्रक्रिया:- अथवा अध्यात्मपद्धति । ले. नन्दीगुरु । 25 ) योगसार:- ले. गुरुदास 26) योगांग:- ले. शान्तरस। श्लोक- 45001 27 ) योगाभृत: ले. वीरसेन देव 28) अध्यात्मकल्पद्रुमः ले. "सहसावधानी मुनिसुंदर सूरि 16 अधिकारों में विभक्त इस पर धनविजयगणिकृत अधिरोहिणी, रत्नसूरिकृत अध्यात्मकल्पलता एवं उपाध्याय विद्यासागर कृत टीकाएं मिलती हैं। 29 ) अध्यात्मरास- ले. रंगविलास । (30) अध्यात्मसार:- ले. यशोविजयगणि। सात प्रबन्धों में विभाजित । श्लोक - 13001 31) अध्यात्मोपनिषद ले. यशोविजयगणि चार विभागों में विभाजित श्लोक 203 32) अध्यात्मविन्दु ले उपाध्याय हर्षवर्धन 33) अध्यात्मकमलमार्तण्डः - ले. राजमल्ल । श्लोक -200। 13 34) अध्यात्मतरंगिणीः- ले. सोमदेव । प्रस्तृत ग्रंथावलि में प्रायः संस्कृत भाषीय ग्रंथों का प्रधानता से निर्देश किया गया है। इनके अतिरिक्त प्राकृत भाषा में भी योग विषयक अनेक ग्रंथ जैन विचारधारा के अनुसार लिखे गये हैं। आध्यात्मिक साधकों के जीवन में योगसाधना के समान ही नित्य और नैमितिक आचार, व्रत इत्यादि बातों का महत्त्व संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड / 193 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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