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अन्तर इतना ही है कि यहाँ ईश्वर शिवस्वरूप माने गये हैं, तथा सगुण ब्रह्म ही परमार्थभूत है और चित् अचित् उसके प्रकार हैं। शिव, महादेव, उग्र आदि संज्ञाएं इस सगुण परब्रह्म की ही हैं।
7 "द्वैतवादी माध्वमत" ई. 13 वीं शती में कर्नाटक के उडुपी क्षेत्र के पास पाजक नामक गाँव में मध्यगेह भट्ट (या नारायणाचार्य) और वेदवती (या वेदवेदी) को एक पुत्र हुआ जिसका नाम उन्होंने वासुदेव रखा था। शास्त्राध्ययन संपूर्ण होने पर वासुदेव ने उडुपी के विद्वान अच्युतप्रेक्ष, (जो अद्वैतावादी थे) से संन्यास दीक्षा ली। संन्यास आश्रम में उन्हें पूर्णप्रज्ञतीर्थ तथा आनंदतीर्थ नाम दिये गये परंतु वे सर्वत्र मध्वाचार्य नाम से ही प्रख्यात हुए। मध्वाचार्य के शिष्य परिवार में पद्मनाभतीर्थ, नरहरितीर्थ, माधवतीर्थ,
अक्षोभ्यतीर्थ और त्रिविक्रमतीर्थ नामक पांच विद्वान शिष्य थे। मध्वाचार्य के द्वारा उत्तरादिमठ नामक प्रमुख मठ उडुपी में स्थापित हुआ। इसके अतिरिक्त स्वादिमठ, सुब्रह्मण्यमठ इत्यादि अन्य मठों की स्थापना शिष्यों द्वारा हुई।
मध्वाचार्य को संप्रदाय में वायुदेवता का अवतार माना जाता है। वे द्वैतवादी या भेदवादी थे। उनके मतानुसार स्वतंत्र और अस्वतंत्र इन दो प्रमुख तत्त्वों में भगवान विष्णु स्वतंत्र एवं सकलसद्गुण सम्पन्न हैं। अन्य सभी अस्वतंत्र हैं। भेद पांच प्रकार के होते हैं। 1) जीव ईश्वर भेद 2) जड ईश्वर 3) जीव अजीव भेद 4) जीव जडभेद और 5) जड अजड भेद । परमात्मा और जीव में मोक्षावस्था में भी अभेद संभव नहीं, जो भी अभेद प्रतीत होता है वह भ्रममात्र है। सच्चिदानंद स्वरूप परमात्मा इस सृष्टि का निमित्त कारण है और वह चराचर वस्तुमात्र में निवासी है। दुःख का उसे स्पर्श भी नहीं होता। लक्ष्मी, श्रीवत्स और अचिंत्य शक्ति परमात्मा के वैभव हैं। मुक्त जीवात्मा को भी उसकी प्राप्ति नहीं होती। मोक्ष प्राप्ति के लिये जीव को परमात्मा की सेवा, अंकन (विष्णुचिह्नों का तप्तमुद्राओं से अंकन) नामकरण और भजन इन तीन प्रकारों से करनी चाहिए। इस प्रकार का अपना द्वैतवादी मत प्रतिपादन करने के लिए मध्वाचार्य ने विपुल ग्रंथ संपदा निर्माण की :
1) गीताभाष्य, 2) गीतातात्पर्य, 3) सूत्रभाष्य, 4) अणुभाष्य, 5) महाभारत-तात्पर्यनिर्णय, 6) भागवत-तात्पर्य, 7) नखस्तुति, 8) यमकभारत, 9) द्वादशस्तोत्र, 10) तंत्रसार, 11) सदाचारस्मृति, 12) यतिप्रणवकल्प 13) जयंतीनिर्णय 14) ऋग्भाष्य, 15) प्रणयलक्षण, 16) कथालक्षण, 17) तत्त्वसंस्थान, 18) तत्त्वविवेक, 19) मायावादखंडन, 20) उपाधिखंडन, 21) प्रपंच-मिथ्यात्वानुमानखंडन, 22) तत्त्वोद्योत, 23) विष्णुतत्त्वनिणर्य, 24) दशोपनिषद्भाष्य, 25) अनुव्याख्यान, 26) संन्यास विवरण, 27) कृष्णामृतमहार्णव, और 28) कर्मनिर्णय । इन ग्रंथों द्वारा स्वमत प्रतिपादन और शांकर अद्वैत के मायावाद का खंडन मध्वाचार्य ने किया है। इन की शिष्यपरम्परा में भी उद्भट विद्वान हुए जिन में जयतीर्थ (14 वीं शती), व्यासतीर्थ (15 वीं शती), रघूत्तमतीर्थ (16 वीं शती) वनमाली मिश्र (18 वीं शती) सत्यनाथ यति (17 वीं शती) वेणीदत्त, पूर्णानन्दचक्रवर्ती आदि विद्वानों ने माध्व मत का प्रतिपादन अपने टीकात्मक वाङ्मय से किया।
जयतीर्थ ने मध्वाचार्य के सूत्रभाष्य पर, तत्त्वप्रकाशिका और तत्त्वोद्योत, तत्त्वविवेक, तत्त्वसंख्यान, प्रमाणलक्षण तथा गीताभाष्य के उपर अन्य सुबोध टीकाएं लिखीं। इनकी प्रमाणपद्धति (जिस पर आठ टीकाएं लिखी गयीं) और वादावली द्वैतवादी वाङ्मय में महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं।
व्यासतीर्थ के ग्रंथ :- न्यायामृत, तर्कताण्डव, तात्पर्यचन्द्रिका (जयतीर्थ की तत्त्वप्रकाशिका की टीका) मन्दारमंजरी, भेदोज्जीवन - और मायावादखंडन-टीका। इनके न्यायामृतपर 10 विख्यात टीकाएं लिखी गयीं। प्रसिद्ध अद्वैती विद्वान मधुसूदन सरस्वती ने अपनी अद्वैतसिद्धि में व्यासतीर्थ के न्यायामृत का खंडन किया है। बाद में द्वैतवादी रामाचार्य ने अपनी तरंगिणी टीका में और विजयीन्द्रतीर्थ ने अपने कण्टकोद्धार टीका में अद्वैतसिद्धि के युक्तिवादों का खंडन किया है।
रघूत्तमतीर्थ के ग्रंथः- इन्होंने मध्वाचार्य के विष्णुतत्त्वनिर्णय पर और जयतीर्थ की तत्त्वप्रकाशिका पर भावबोध नामक व्याख्याएं लिखीं. जिसके कारण ये भावबोधाचार्य या भावबोधकार नाम से प्रसिद्ध हुए। ब्रह्मप्रकाशिका मध्वाचार्य के बृहदारण्यक-भाष्य की टीका है।
वेदेशभिक्षु, रघूत्तमतीर्थ के शिष्य थे। इन्होंने तत्त्वोद्योत-पंचिका (ऐतरेय, छान्दोग्य, केन उपनिषदों पर मध्वाचार्य के भाष्यों की टीका) तथा प्रमाणपद्धति (मध्वकृत) पर भी इनकी टीका है। वनमाली मिश्र के ग्रंथः- माध्वमुखालंकार, वेदान्तसिद्धान्तमुक्तावली (ब्रह्मससूत्रों की टीका)। सत्यनाथ यतिः- इन्होंने अप्पय्य दीक्षित के ग्रंथ के खंडन में अभिनवगदा, अभिनवतर्कताण्डव, तथा अभिनवचंद्रिका (तात्पर्यदीपिका की टीका) इत्यादि द्वैतमतवादी ग्रंथों की रचना की। इन ग्रंथों के अतिरिक्त वेणीदत्तकृत भेदजयश्री तथा वेदान्तसिद्धान्तकण्टक, पूर्णानन्द चक्रवर्तीकृत तत्त्वमुक्तावली (या मायावाद-शतदूषणी) इत्यादी द्वैतवादी ग्रंथ उल्लेखनीय हैं।
174 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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