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काली-विषयक वाङ्मय :- 1) महाकाल संहिता, 2) कालज्ञान, 3) कालीकुलकमार्चन (विमलबोधकृत), 4) भद्रकालीचिन्तामणि, 5) व्योमकेशसंहिता, 6) कालीयामल, 7) कालीकल्प, 8) कालीसपर्याकमकल्पवल्ली, 9) श्यामारहस्य (पूर्णानंदकृत), 10) कालीविलासतंत्र, 11) कालीकुलसर्वस्व, 12) कालीतंत्र, 13) कालीपरा, 14) कालिकार्णव, 15) विश्वसारतंत्र, 16) कामेश्वरी तंत्र, 17) कुलचूडामणि, 18) कौलावली, 19) कालीकुल, 20) कुलमूलावतार, 21) श्यामासपर्या (काशीनाथ भट्टाचार्यकृत), 21) कुलमुक्तिकल्लोलिनी (आद्यानंदन या नवमीसह कृत), 22) कालीतत्त्व (राघवभट्टकृत), 23) कौलिकार्चनदीपिका, 24) कुमारीतंत्र, 25) कुलार्णव, 26) कुब्जिकातंत्र, 27) कालिकोपनिषद् इत्यादि प्रमुख ग्रंथों के अतिरिक्त कर्पूरस्तव, कालीभुजंगप्रयात, इत्यादि कालीस्तोत्र भी प्रसिद्ध हैं। तारा-विषयक ग्रंथ :- 1) तारातंत्र (या तारिणी तंत्र), 2) तारासूक्त, 3) तोडलतंत्र, 4) तारार्णव, 5) नीलतंत्र, 6) महानीलतंत्र, 7) नीलसरस्वतीतंत्र, 8) चीनाचार, 9) तंत्ररत्न, 10) ताराशाबरतंत्र, 11) एकजटीतंत्र, 12) एकजटाकल्प, 13) एकवीरातंत्र 14) तारिणीनिर्णय, 15) महाचीनाचारक्रम, 16) तारोपनिषद्, 17) ताराप्रदीप (लक्ष्मीभट्टकृत), 18) ताराभक्तिसुधार्णव (नरसिंह ठवकुर कृत), 19) तारारहस्य (शंकरकृत), 20) ताराभक्तितरगिणी (प्रकाशानंदकृत, विमलानंदकृत और काशीनाथकृत), 21) ताराकल्पलतापद्धति (नित्यानंदकृत), 22) तारिणीपारिजात (विद्वदुपाध्यायकृत), 23) महोग्रताराकल्प इत्यादि ग्रंथो के अतिरिक्त तारासहस्रनाम और ताराकपूरस्तोत्र आदि स्तोत्र उल्लेखनीय हैं। श्रीविद्या-विषयक ग्रंथ :- श्रीविद्या के कादि, हादि और कहादि नामक तीन भेद प्रसिद्ध हैं। कादियों की देवी काली, हादियों की त्रिपुरसुंदरी और कहादियों की तारा (अथवा नीलसरस्वती) है। तीनों संप्रदायों के अपने अपने मान्य ग्रंथ हैं :
1) त्रिपुरोपनिषद्, 2) भावनोपनिषद्, 3) कौलौपनिषद्, 4) तंत्रराज (इस पर सुभगानंदनाथ, प्रेमनिधिपन्त, इत्यादि विद्वानों की अनेक टीकाएं हैं), 5) योगिनीहृदय, 6) परमानंदतंत्र, 7) सौभाग्यकल्पद्रुम (माधवानंदनाथकृत), 8) वामकेश्वरतंत्र, 9) ज्ञानार्णव, 10) श्रीक्रमसंहिता, 11) दक्षिणामूर्तिसंहिता, 12) स्वच्छन्दतन्त्र, 13) ललितार्चनचंद्रिका, (सच्चिदानंदनाथकृत), 14) सौभाग्यरत्नाकर (विद्यानंदनाथकृत), 15) सौभाग्यसुभगोदय (अमृतानंदनाथकृत), 16) शक्तिसंगमतंत्र, 17) त्रिपुरारहस्य, 18) श्रीक्रमोत्तम (मल्लिकार्जुनकृत), 19) सुभगार्चापारिजात, 20) सुभगार्चारत्न, 21) आशावतार, 22) संकेतपादुका, 23) चंद्रपीठ, 24) सुंदरीमहोदय (शंकरनंदकृत) 25) हृदयामृत (उमानंदकृत) 26) लक्ष्मीतंत्र 27) त्रिपुरासारसमुच्चय (लालभट्टकृत), 28) श्रीतत्त्वचिन्तामणि और शाक्तक्रम (पूर्णानंदपरमहंसकृत), 29) कामकलाविलास (पुण्यानंदकृत), 30) सौभाग्यचंद्रोदय, 31) वरिवस्यारहस्य, 32) वरिवस्याप्रकाश और 33) शांभवानंदकल्पलता (ये चारों ग्रंथ भास्करराय-विरचित हैं) 34) त्रिपुरासार, 35) संकेतपद्धति, 36) सौभाग्यसुधोदय, 37) परापूजाक्रम, 38) सुभगोदयस्तुति और 39) श्रीविद्यारत्नसूत्र [दोनों गौडपादाचार्य (श्रीशंकराचार्य के परमगुरु) विरचित] । श्रीशंकराचार्य स्वयं तांत्रिक उपासक थे इस का यह प्रमाण है कि विभिन्न तांत्रिक संप्रदाय अपनी अपनी गुरुपरंपरा में श्रीशंकराचार्य का निर्देश करते हैं। भुवनेश्वरी विषयक ग्रंथ :- 1) भुवनेश्वरीरहस्य, (पृथ्वीधराचार्य कृत), 2) भुवनेश्वरीतन्त्र, 3) भुवनेश्वरीपारिजात, इ.। भैरवीविषयक ग्रंथ:- 1) भैरवीतंन्त्र, 2) भैरवीरहस्य, 3) भैरवीसपर्याविधि, 4) भैरवीयामल । छिन्नमस्ताविषयक ग्रंथः- शक्तिसंगमतंत्र का छिन्नाखंड। धूमावतीविषयक ग्रंथः- प्राणतोषिणीतंत्र । बगलाविषयक ग्रंथ:- 1) शांखायनतंत्र (या षड्विद्यागम), 2) बगलाक्रम कल्पवल्ली, 3) संमोहनतंत्र । मातंगीविषयक ग्रंथः- (मातङ्गी के अपरनाम हैं उच्छिष्टचाण्डालिनी और महापिशाचिनी) 1) मातंगीक्रम (कुलमणिकृत), 2) मार्तगीपद्धति (रामभट्टकृत), यह ग्रंथ सिंहसिद्धान्तबिन्दु का एक अध्याय मात्र है। 3) सुमुखीपूजापद्धति (शंकरकृत)। कमलाविषयक ग्रंथ:- 1) तंत्रसार, 2) शारदातिलक, 3) शाक्तप्रमोद इ.। दशमहाविद्याओं के अतिरिक्त गणपति, गायत्री, गोपालकृष्ण, दत्तात्रेय, नरसिंह, भैरव, राधाकृष्ण, रामचंद्र, हनुमान, परशुराम, हयग्रीव इत्यादि देवताविषयक तंत्रों के विविध प्रकार के ग्रंथ तांत्रिक वाङ्मय में मिलते हैं।
१ तांत्रिक परिभाषा प्रत्येक शास्त्र में विशिष्ट अर्थों का चयन एवं प्रकाशन करने के लिए शास्त्रकार परिभाषिक शब्द निर्माण करते हैं। शास्त्र ग्रंथों में उन पारिभाषिक शब्दों का विवरण या विवेचन दिया जाता है। शास्त्राध्ययन करने वाले जिज्ञासु को पारिभाषिक शब्दों में निहित अर्थ का सम्यक् आकलन हुए बिना उस शास्त्र का सम्यक् आकलन नहीं होता और उस शास्त्र में उसकी प्रगति भी नहीं होती। तंत्रशास्त्र की पारिभाषिक शब्दावली बहुत विस्तृत है। यहां स्थालीपुलाकन्याय से कुछ ही शब्द दिये हैं। जिनका समग्र विवरण मूल ग्रंथों से ही देखना उचित होगा। तंत्रशास्त्र का ठीक आकलन होने के लिए इन शब्दों के अतिरिक्त अनेक पारिभाषिक शब्दों का परिचय मूल ग्रंथों में देखना होगा।
160/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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