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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ग्रंथकार गौडपादाचार्य लक्ष्मणदेशिक पृथ्वीराचार्य चरणस्वामी 7 तंत्रशास्त्र के प्रमुख ग्रंथकार तंत्रशास्त्र का विस्तार और उसके अनेक प्रकार होने से सभी प्रकार के तंत्रों पर लिखे गये प्राचीन तथा अर्वाचीन संस्कृत ग्रंथों की संख्या भी अपार है। प्रस्तुत कोश में म. म. गोपीनाथ कविराज द्वारा संपादित तांत्रिक साहित्य की बृहत्सूची से उद्धृत अनेक ग्रंथों का यथास्थान संक्षिप्त परिचय दिया है। अनेक ग्रंथों के लेखकों के नाम उपलब्ध नहीं तथापि कुछ महनीय लेखकों का कार्य चिरस्मरणीय है। तांत्रिक संप्रदायों में मान्यता प्राप्त 30 तंत्राचार्यो की नामावली यहां उद्धृत की है : राघवभट्ट पुण्यानंद अमृतानंदनाथ सुंदराचार्य विद्यानंदनाथ सर्वानंदनाथ ब्रह्मानंद पूर्णानंद गोरक्ष सुभगानंद प्रकाशानंद महीधर यशंकर भास्करराय प्रेमनिधि पंत उमानंद रामेश्वर शंकरानंद अप्पय्य दीक्षित देवनाथ ठाकुर काशीनाथ तर्कालंकार ( शिवानंद) गीर्वाणेन्द्र रघुनाथ तर्कवागीश यदुनाथ चक्रवर्ती नरसिंह ठाकुर गोविंद न्यायवागीश - - FELLE - - - - www.kobatirth.org - - ग्रंथ 1) सुभगोदयस्तुति, 2) श्रीविद्यानसूत्र प्रपंचसार, सौंदर्यलहरी इ. भुवनेश्वरीरहस्य | श्रीविद्यार्थदीपिका, प्रपंचसारसंग्रह इ. । शारदतिलक पर टीका। कामकलाविलास सौभाग्यसुभगोदय ललितार्चनचंद्रिका | शिवार्चनचंद्रिका, क्रमरत्नावली इ. । सर्वोल्लासतंत्र । शाक्तानंदतरंगिणी, तारारहस्य | श्रीतत्त्वचिंतामणि, श्यामारहस्य । महार्थमंजरी, परास्तोत्र, पादुकोदय इ. । षोडशनित्या । तंत्रसार । पंचमहोदधि । तारारहस्यवृत्ति, शिवार्चनमाहात्म्य । सौभाग्यभास्कर, सौभाग्यचन्द्रोदय इ. दीपप्रकाश और अनेक टीकात्मक ग्रंथ । हृदयामृत, . नित्योत्सव निबंध | सौभाग्योदय सुंदरीमहोदय । सौभाग्यकल्पद्रुम । सत्यकौमुदी, मंत्रकौमुदी, तंत्रकौमुदी इ. श्यामासपर्याविधि, तंत्रराजटीका, तंत्रसिद्धांत कौमुदी मंत्रराजसमुच्चय इ. । प्रपंचसारसंग्रह आगम-तर्कविलास पंचरत्नाकर, आगमकल्पलता । ताराभक्तिसुधार्णव । मंत्रार्थदीपिका | (भारतीय संस्कृति कोशखंड 4 से उद्धृत) उपास्य देवता और तांत्रिक वाङ्मय तंत्रिक वाड्मय में काली, तारा, श्रीविद्या (धोडशी या त्रिपुरसुंदरी) भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती बगला, मातंगी, और कमला इन दस देवताओं को दश महाविद्या कहते हैं। महाकालसंहिता के अनुसार विभिन्न देवताएं विभिन्न युगों में फलप्रदान करती हैं किन्तु चारों युगों में फलप्रदान का सामर्थ्य एक मात्र दश महाविद्याओं में है। तांत्रिक वाङ्मय की रूपरेखा देवताविषयक ग्रंथों के स्वरूप से संक्षेपतः आ सकती है। देवताविषयक ग्रंथों में (1) सिद्धान्त पर और (2) प्रयोगपर ग्रंथ होते है। संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड / 159 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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