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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तात्रिक साधक द्वारा उपास्य देवता से संबध ओर प्रगति करने में देवता का साहा । प्रत्येक तात्रिक देवता गण : तंत्रमार्ग में साधक द्वारा उपास्य देवता से संबंध जोडना, उसका आवाहन करना, उसकी सहायता मिलाना इत्यादि विषयों का गंभीर विचार हुआ है। साधक को सत्य, ज्ञान और आनंद की ओर प्रगति करने में देवता का साहाय्य मिलता है। देवता याने परमेश्वर अथवा परमेश्वरी की विशिष्ट शक्ति होती है। मंत्रसाधना द्वारा साधक का देवता से संबंध स्थापित होता है। प्रत्येक देवता का विशिष्ट रूप, वर्ण, ध्यान, परिवार, वाहन, तंत्रशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वानों ने निर्धारित किया है। मंत्र-तंत्रादि साधनाओं से दिव्य दृष्टि का उन्मीलन होने पर साधक को देवतास्वरूप का साक्षात्कार होता है। मूर्तिविज्ञान, मंत्रविज्ञान जैसे शास्त्रों द्वारा तांत्रिकों ने देवताओं के नाम, रूप एवं गुण इत्यादि का प्रतिपादन अपने ग्रंथों में किया है। तांत्रिक साधनाओं में उपास्य देवताओं की आराधना अन्यान्य रूपों में होती है। अतः तंत्र मार्ग में देवताओं का वैविध्य और वैचित्र्य निर्माण हुआ। प्रत्येक तंत्रमार्ग के विविध देवताओं के नाम और स्वरूप की कल्पना निम्न लिखित सूची से आ सकती है। भारत में यत्र तत्र इन तांत्रिक देवताओं की प्रतिमाएं उपलब्ध होती हैं और अनेक क्षेत्रों में उन की तंत्रानुसार आराधना होती है। वैष्णव तांत्रिक देवता : लक्ष्मीवासुदेव, लक्ष्मीनारायण, हरिहर, नृसिंह, राम, कृष्ण, दधिवामन, हयग्रीव और गोपालकृष्ण। शारदातिलक और तंत्रसार नामक ग्रंथों में वैष्णव तांत्रिकों की देवताओं का सविस्तर वर्णन मिलता है। तांत्रिक शिवस्वरूपः शैवतंत्र में आदिनाथ महाकाल के क्षेत्रपाल, भैरव, बटुभैरव नामक स्वरूप, उपास्य माने जाते हैं। मुख्य पूजा से पहले क्षेत्रपाल की पूजा शैवतंत्र में आवश्यक मानी. है शिवस्वरूपी भैरव आठ प्रकार के होते हैं। भैरव की पूजा, काली देवता के साथ कुछ तांत्रिक करते हैं। गाणपत्य तंत्र में महागणपति, वीरगणपति, शक्ति-गणपति, विद्यागणपति, हरिद्रागणपति, उच्छिष्ट-गणपति, लक्ष्मीविनायक, हेरंब, वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानन, लंबोदर, विकट और विघ्नराज नामक गणपति के स्वरूप उपास्य माने जाते हैं। मेरुतंत्रप्रकाश में इन के विविध स्वरूप वर्णन किये हैं। सौर तांत्रिक देवताः चंद्र, मार्तण्डभैरव और अग्नि इन तीन देवताओं को सूर्य से संबंधित माना गया है। चंद्र नीलजटाधारी, मार्तण्ड अर्धांगिनी सहित, अग्नि अष्टभुज तथा त्रिनेत्र, और चतुर्भुज एवं सूर्य रक्तकमलासन पर विराजमान होता है। शाक्त तांत्रिक देवताः मुंडमाला तंत्र में दशमहाविद्या नामक देवताओं के नाम बताये हैं : काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी। भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा ।। बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका। एता दश महाविद्याः सिद्धविद्याः प्रकीर्तिताः ।। अन्य स्थान पर विद्या-देवताओं की संख्या 27 बतायी है। नित्याषोडशिकार्णव नामक ग्रंथ में 'नित्या' नामक 16 देवताओं के नाम बताये हैं : महात्रिपुरसंदरी कामेश्वरी, भगमालिनी, क्लिन्ना, भेरुण्डा, वह्निवासिनी, महाविद्येश्वरी, दूती, त्वरिता, कुलसुंदरी, नीलपताका, विजया, सर्वमंगला, ज्वालामालिनिका और चित्रा। शाक्ततंत्र में दक्षिणाकाली, भद्रकाली, श्मशानकाली, कामकलाकाली, धनकाली, सिद्धकाली, चण्डीकाली इत्यादी काली मां के भिन्न स्वरूप माने जाते हैं। प्राणतोषिणी तंत्र में कुमारी देवता को 'सर्वविद्यास्वरूपा' कहा है। इस कारण शाक्ततंत्र में कुमारीपूजा का विशेष महत्त्व माना गया है। जैन तांत्रिक देवताः सरस्वती, अंबिका, कुबेरा, पद्मावती, सिद्धार्थका, इद्राणी, विधिप्रभा, अक्षुप्ता और चक्रेश्वरी। ये देवताएं, तीर्थंकरों की सेविकाएं मानी जाती हैं। पार्श्वनाथ की पद्मावती और महावीर की सिद्धार्थका सेविका है। दिगंबर संप्रदाय में ज्वालामालिनी और महाज्वाला नामक देवताओं का विशेष महत्त्व माना गया है। तांत्रिक उपासकों में मान्यताप्राप्त देवी के 12 रूप हैं और उनके 12 तीर्थक्षेत्र अत्यंत पवित्र माने जाते हैं। कामाक्षी - कांचीपुर में 2) भ्रामरी - मलयगिरि में कन्याकुमारी - तामिलनाडु में 4) अम्बा - गुजरात में 5) महालक्ष्मी - कोल्हापुर (महाराष्ट्र) कालिका - उज्जयिनी में ललिता - प्रयाग में विन्ध्यवासिनी - विन्ध्याचल में। विशालाक्षी - वाराणसी में मंगलचंडी - गया में 11) सुन्दरी - बंगाल में। 12) गृह्यकेश्वरी - नेपाल में। बारह विद्येश्वर : मनु, चंद्र, कुबेर, लोपामुद्रा, मन्मथ, अगस्त्य, अग्नि, सूर्य, इन्द्र, स्कन्द, शिव, और कोधभट्टारक (अथवा दुर्वासा)। तंत्रमार्ग में इन बारह विद्येश्वरों में ही बीज और मंत्रों का प्राधान्य माना जाता है। इन में से केवल मन्मथ (या कामराज) और लोपामुद्रा का सम्प्रदाय जीवित है। 158 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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