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गये है, भाग नहीं सकते। हम तीनों भी इस दावाग्नि में शरीर की आहुतियां देकर सद्गति को प्राप्त करेंगे।" इतना कहकर धृतराष्ट्र, गांधारी और कुन्ती पूर्व की ओर मुंह किये ध्यानस्थ बैठे। तब संजय उनकी परिक्रमा कर वहां से चल दिया। आश्रम पहुंच सभी ऋषियों को उसने वह बात बताई और वह हिमालय में चला गया।
16 मौसल पर्व वैशंपायन जनमेजय से कहने लगे- धर्मराज के पैतीस साल राज्य करने पर छत्तीसवें वर्ष कुछ ऋषि द्वारका गए थे। यादवों के पुत्रों ने उनका मजाक उडाया। श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री का वेष देकर ऋषियों के पास जाकर उसने पूछा कि यह स्त्री गर्भवती है? बताइए, इसे पुत्र होगा या पुत्री? ऋषि उस छल कपट को समझ गये। उन्होंने कहा इसे एक लोहे का मूसल होगा, और उस मूसल से सभी यादवों का (श्रीकृष्ण और बलराम को छोड़कर) नाश होगा। ऋषियों के कहने के अनुसार दूसरे दिन उस सांब के पेट से मूसल पैदा हुआ। उसे देखकर सभी घबरा गये। उग्रसेन राजा ने उस मूसल को चूर्ण करके समुद्र में फिकवा देने की व्यवस्था की।
__ उसके बाद श्रीकृष्ण के कहने पर सभी यादव तीर्थयात्रा के लिए प्रभास तीर्थ पहुंचे। वहां आपस में झगड़ा और मारपीट शुरु हुई। मूसल का चूर्ण समुद्र की लहरों से किनारे पर आ गया था। उससे उत्पन्न घास को लेकर यादव एक दूसरे पर प्रहार करने लगे। वह घास वज्र के समान होने से उस लड़ाई झगडों में उससे सभी यादवों का नाश हो गया। वसुदेव, बलराम, श्रीकृष्ण और स्त्रियां, बालबच्चे आदि कुछ ही लोग जीवित रहे। श्रीकृष्ण ने दारुक के हाथों लड़ झगड़कर नष्ट हुए बलराम के मुंह से बड़ा सफेद नाग निकल कर समुद्र में चला गया। श्रीकृष्ण जब ध्यान लगा कर बैठे तब जरा नाम के किसी व्याध ने उनके पांव के तलुवे को लक्ष्य करके तीर चलाया, और हिरन समझकर पास पहुंचा। वहां चतुर्भुज मूर्ति को देखकर वह व्याध श्रीकृष्ण के चरणों पर गिर पड़ा। उसको सांत्वना देकर श्रीकृष्ण निजधाम चले गए।
दारुक ने जब सारा वृत्तांत पांडवों को बतलाया तब उसे सुनकर बड़े ही दुःख के साथ अर्जुन द्वारका चला आया। वहां वह वसुदेव से मिला। दूसरे दिन वसुदेव ने भी प्राणत्याग किया। उसका अग्निसंस्कार कर देने पर श्रीकृष्ण, बलराम, आदि यादवों के शरीर जहां पडे थे उस प्रभास तीर्थ पर अर्जुन आ पहुंचा। उसने सभी के शरीरों को अग्नि संस्कार किया। पुनः द्वारका में आकर सभी स्त्रियों, बालकों, वृद्धों को साथ में लेकर वह चल पड़ा। श्रीकृष्ण के अवतार समाप्ति के सात दिनों के बाद समुद्र ने द्वारकापुरी को आत्मसात् किया।
द्वारका के लोगों के साथमें लेकर अर्जुन पंचनद (पंजाब) देश को पहुंचा। वहां आभीर नाम के डाकुओं ने यादवों की बहुत सी स्त्रियों को ले भगाया। अर्जुन देखता ही रह गया। तूणीर में उसके पास एक भी तीर नहीं बचा। अस्त्रों के प्रयोगों को भूलता गया। तब बडे ही दुःख के साथ बचे खुचे लोगों को साथ में लेकर अर्जुन कुरुक्षेत्र पहुंचा। उसने सात्यकि के पुत्र को सरस्वती नदी के तट पर और वज्र नामक यादवपुत्र को इंद्रप्रस्थ के राज्य पर स्थापित किया, और स्वयं व्यास महर्षि के दर्शन के लिए चला गया। घटित सारी बातें उसने व्यास महर्षि पर प्रकट की और उनसे उनका कारण पूछा। व्यास ऋषि ने कहा, " विधिलिखित है। बुद्धि, तेज, ज्ञान आदि सब काल के अनुसार रहते हैं। काल के प्रतिकूल जाते ही वे विनाश को पाते हैं। इस समय तुम्हारे लिए काल प्रतिकूल है। इसी लिए तुम्हें अस्त्रप्रयोगों का स्मरण नहीं रहा। अनुकूल काल के आने पर फिर से स्मृति आ जाएगी। अब तुम्हारा कल्याण इसी में है कि तुम सद्गति को प्राप्त करो।" व्यास ऋषि का कथन सुन कर अर्जुन हस्तिनापुर पहुंचा और उसने यादवों के विनाश की पूरी वार्ता धर्मराज को सुनाई।
17 महाप्रास्थानिक पर्व वैशंपायन ने आगे कहना आरंभ किया- यादवों के विनाश की वार्ता सुनकर पांडवों ने स्वर्ग लोक पहुंचने के लिए महाप्रस्थान करने का निश्चय किया। परीक्षित् को राज्य देकर और सुभद्रा पर उसकी रक्षा का भार सौप कर कृपाचार्यजी को गुरु नियुक्त कर, सभी प्रजाननों की प्रार्थना करके, वल्कल परिधान कर लेने के बाद द्रौपदी को साथ में लेकर पांचों पांडव हस्तिनापुर के बाहर चल पड़े। उनके साथ एक कुत्ता था। जाते जाते उन्हें अग्निदेव मिले। उनके कहने पर अर्जुन ने अपना गाण्डीव धनुष्य पानी में छोड़ दिया। अनन्तर पृथ्वी की परिक्रमा करके पाण्डव उत्तर दिशा की ओर चल पड़े।
हिमालय पर्वत, वालुकामय प्रदेश पार कर उन्हें मेरु पर्वत दीख पड़ा। वहां जाते समय पहले द्रौपदी गिर पडी। उसका कारण वह अर्जुन से विशेष प्रेम करती थी। बाद में सहदेव गिर पड़ा। उसका कारण वह अपने को बडा बुद्धिमान् समझता था। पश्चात् नकुल गिर पड़ा कारण उसे अपनी सुंदरता का बडा ही गर्व था। उपरान्त अर्जुन गिर पडा उसका कारण उसने प्रतिज्ञा कर ली थी कि मै एक दिन में समूचे वीरों को मार डालूंगा" लेकिन उस प्रतिज्ञा की पूर्ति उससे नहीं हो पाई और
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 123
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