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धत्थामा ने अपना का मणि पांडवा अपना अस्त्र समेट युद्ध होता है, अत्र
भीमसेन गंगा के किनारे व्यास महर्षि के आश्रम पर पहुंचा। भीम को यह समाचार मिला था कि वह दुष्ट नराधम, अश्वात्थामा वहीं है। भीम के पीछे पीछे श्रीकृष्ण का भी रथ वहां धमका। वह सब देखकर कि अब छुटकारा नहीं है, भयभीत होकर पाण्डवों के विध्वंस के लिए अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। तब श्रीकृष्ण के कहने पर पांडवों की तथा सबकी रक्षा के लिए अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। दोनों अस्त्र टकराकर सर्वनाश का समय आ गया, तब व्यास महर्षि और देवर्षि नारद ने बीच बचाव करके दोनों को अपने अपने अस्त्र समेट लेने के लिए कहा। तद्नुसार अर्जुन ने तुरन्त अपने अस्त्र को समेट लिया, लेकिन अश्वत्थामा को उसे समेटना मुश्किल हो गया। तब ऋषि बोले जहां ब्रह्मास्त्रों से युद्ध होता है, उस जगह पर बारह वर्ष वर्षा नहीं होती और अकाल पड़ता है। हमारे कहने पर अर्जुन ने अपना अस्त्र समेट लिया है। तू अगर अपना अस्त्र समेट लेने में आपको असमर्थ पाता है तो तू माथे पर का मणि पांडवों को दे दे और अस्त्र को पांडवों पर प्रयुक्त न कर, तभी तू जिन्दा रह सकेगा। उस पर अश्वत्थामा ने अपना अस्त्र उत्तरा के गर्भ पर प्रयुक्त किया।
वह देख कर श्रीकृष्ण उससे बोले “उत्तरा के गर्भ को तो मै जीवित रख ही लूंगा, पर गर्भहत्या (भ्रूणहत्या) करने वाले तुझ महादुष्ट और पातकी को अपने पाप का फल इसी जन्म में भुगतना पडेगा। तीन हजार (3,000) साल तक तेरे शरीर से पूयमिश्रित खून बहता रहेगा। उस दुर्गंध को सहते जंगल में तुझ अकेले को भटकते रहना पडेगा। तुझे कोई भी पहचान नहीं सकेगा।" वह सुनकर बडे दुःख के साथ पांडवों को अपना मणि सौंप कर अश्वत्थामा जंगल चला गया।
अनन्तर पांडव मणि प्राप्त करके अपने शिबिर लौट आये। द्रौपदीकी इच्छा के अनुसार उस मणि को धर्मराज ने अपने माथे धारण किया। तब द्रौपदी, जो प्राण त्यागके निश्चय से धरना देकर बैठी थी, बड़ी प्रसन्न हुई।
12 शान्ति पर्व वैशम्पायन जनमेजय राजा को सुनाने लगे : युद्ध में मृत लोगों के नाम तर्पण करने के बाद गंगा के बाहर आकर धर्मराज वहीं एक महिना रहे। एक बार उनका क्षेमकुशल पूछने जब अनेक ऋषि वहाँ पधारे तब धर्मराजा ने अंतरंग का दुःख प्रकट किया। धर्मराज ने कहा, “मेरे हाथों जातिवध का भारी पातक तो हुआ ही है, लेकिन हमारे सगे बड़े भाई कर्ण का वध हमारे हाथों हुआ, इसी का मुझे बहुत ही दुःख है। कौरव सभा में कर्ण ने हमें कैसी भी कड़ी बातें क्यों न सुनाई, तब भी उसके चरणों की तरफ देखते ही मेरा क्रोध शांत हो जाता था। उसके पांव कुन्ती के पांवो जैसे दीखते थे। लेकिन वह ऐसा क्यों, कुछ समझ में नही आता था। उसकी मृत्यु हो जाने पर वह बात मेरी समझ में आ गई। अब उसको किसका शाप था और अंत में उसके रथ का पहिया धरती ने क्यों निगल लिया वह कृपा कर बताएं।
नारद ऋषि बोले, "क्षत्रिय, युद्ध में प्राणार्पण करके स्वर्ग लोक में पहुंच जाये, इसलिये देवों ने वह पुत्र 'कन्या' से उत्पन्न किया था। उसी से आपस का वैरभाव बढा। उस कर्ण ने द्रोणाचार्य के पास धनुर्विद्या की शिक्षा ग्रहण की। आगे अर्जुन को प्रबल जान कर एक बार कर्ण ने द्रोणाचार्य से ब्रह्मास्त्र सीखने की प्रार्थना की। द्रोणाचार्य ने बताया कि ब्राह्मणों या क्षत्रियों को ही ब्रह्मास्त्र सीखने का अधिकार है। उसपर कर्ण महेंद्र पर्वत पर परशुराम के पास चला गया। अपने को ब्राह्मण (भार्गव गोत्र का) बतलाकर उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग सीख लिया। एक बार कर्ण ने किसी ब्राह्मण की गाय अनजाने मारी। तब उस ब्राह्मण ने कर्ण को शाप दे दिया, "जिससे तू स्पर्धा कर रहा है जिसे मारने के लिए बड़ा भारी व्यूह रचा है, उससे युद्ध करते समय तेरे रथ का चक्र धरती निगल लेगी और वह भी तुझे ऐसे ही मार डालेगा।
एक बार परशुराम कर्ण के अंक पर माथा टेककर जब सो रहे थे तब एक कीडे ने कर्ण की जांघ को नीचे से कतरा, लेकिन कर्ण ने जांघ नही हिलाई। जांघ के गरम खून का स्पर्श परशुराम के शरीर में हुआ तब वे जाग पड़े। उन्हें एक कीड़ा दिखाई दिया। पहले कृतयुग में वह दंश नाम का राक्षस था। उसने भृगुऋषि की पत्नी का अपहरण किया इसलिये उस ऋषि के शाप से वह कीड़ा बन गया। उसके चले जाने पर परशुराम कर्ण से बोले, “इतना भारी दुःख ब्राह्मण सह नहीं सकता। तू ब्राह्मण नहीं है। अब सच सच बता तू यथार्थ में कौन है? तब, इस डर से कि परशुराम शाप दे देंगे (और अपनी विद्या भी लोप ही जाएगी) कर्ण ने बताया, "मै ब्राह्मण नहीं हूँ, क्षत्रिय भी नहीं हूं, बल्कि सूत हूं। केवल ब्रह्मास्त्र का प्रयोग सीखने के लिए ही आपको मैं भार्गव गोत्री हूं बताया। वह सुन कर परशुराम क्रोध के मारे आग बबूला होकर बोले, "मुझे धोखा देकर तूने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग सीखा, परंतु अंत समय में इस अस्त्र के मंत्र याद नहीं आएंगे। हट जा यहां से। तुझ जैसे झूठे आदमी को यहां एक क्षण भी रहना नहीं चाहिये। उसके बाद कर्ण वहां से चल दिया। ब्रह्मास्त्र और साथ में दो भयानक शापों को प्राप्त कर कर्ण लौट गया।"
एक बार कलिंग देश के राजा चित्रांगद की कन्या का स्वयंवर था। उसमें देश-देश के राजा इकठ्ठा हुए थे। लेकिन दुर्योधन ने उस कन्या का अपहरण किया। उस समय जो युद्ध छिड़ा, उसमें कर्ण ने दुर्योधन के लिए पराक्रम दिखा कर सभी
118 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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