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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 गदापर्व शिबिर में प्रवेश करने पर अश्वत्थामादि तीनों को वहां रहना असह्य हो गया। वे उस हद की ओर जाने प्रवृत्त हुए। इधर पाण्डवों ने दुर्योधन की खूब खोज की, लेकिन कुछ भी पता न चलने पर निराश होकर अपने शिबिर को लौट आए। उनके शिबिर को लौट आने पर ये तीनों उस हद के पास पहुंच गए। वे तीनों दुर्योधन के साथ बातें कर रहे थे तब कुछ व्याध वहां पहुंच गए। दुर्योधन उस हद में छिपा है यह बात उन्होंने पांडवों को बताई। उस पर धर्मराजादि सभी जयघोष के साथ दुर्योधन को नष्ट करने के हेतु वहां पहुंचने चल पडे। वह जयघोष दूर ही से सुनाई देने पर, वे तीनों दूर जाकर एक बरगद के पेड के नीचे बैठ गए। उन तीनों के निवृत्त होने पर पांडव वहीं पहुंच गए। श्रीकृष्ण के कहने पर धर्मराज ने दुर्योधन की बहुत ही निर्भत्सना की। तब वह क्रुद्ध होकर पानी के बाहर आ गया। धर्मराज के कवच और शिरस्त्राण देने पर हाथ में गदा लेकर दुर्योधन भीम के साथ युद्ध करने तैयार हुआ। इतने में बलराम अपनी तीर्थयात्रा समाप्त करके संयोग से वहां पहुंच गये। उनके कहने पर वे सारे लोग कुरुक्षेत्र पहुंच गये, और वहां उन दोनों (भीमसेन व दुर्योधन) के बीच गदायुद्ध हुआ। कोई भी हारता जीतता दिखाई नहीं देने लगा, तब अर्जुन के पूछने पर श्रीकृष्ण ने बताया, "भीम शक्तिमान् है सही, लेकिन गदायुद्ध के अभ्यास तथा कौशल में, दुर्योधन चढ़ा बढ़ा है। बिना युक्ति किये, भीम का विजय होना असंभव है। भीम ने दुर्योधन की जांध तोडने की प्रतिज्ञा की ही है। उसके अनुसार भीम चलता है तो ही दुर्योधन को जीतने की संभावना है।" यह सुन कर अर्जुन ने अपनी जांघ पर थपकी देकर इशारे से भीम को सूचित किया। इशारा पाकर भीम झट समझ गया और युद्ध के होते होते भीम ने अकस्मात् अपनी गदा दुर्योधन की बाई जांघपर चलाई उसी क्षण दुर्योधन जमीन पर गिर पड़ा। उसके नीचे गिरते ही "तूने हमारी भरी सभा में गौःगौः कहकर खिल्ली उडाई। अब भोग ले अपने उसी कर्म का फल" इतना कह कर भीम ने उसके माथे पर एक लाथ जमायी। उससे धर्मराज को बहुत ही दुःख हुआ और बलराम तो हल उठा कर भीम को मारने दौड़े। उस पर श्रीकृष्ण ने उनको ज्यों त्यों करके समझाबुझा दिया। तब वे गुस्से में ही द्वारका की ओर चले गए। अनन्तर दुर्योधन श्रीकृष्ण से बोला, "तू बडा ही दुष्ट है। भीष्म, द्रोण, कर्ण, भूरिश्रवा आदि वीरों की अन्याय पूर्ण हत्या की जड़ तू ही है। मै जब भीम के साथ युद्ध कर रहा था, तब अर्जुन के द्वारा भीम को इशारों से बाई जांघ पर गदा चलाने की सूचना तूने की। इस प्रकार का अन्याय करने में तुझे शर्म आनी चाहिए थी। तेरे अन्याय के कारण ही हमारी हार हो गई।" दुर्योधन का वह भाषण सुन कर श्रीकृष्ण ने कहा, "तूने अपने पातकों के कारण ही मौत पाई, उसका दोष मुझ पर मत मढ। भीम को जहर खिलाना, पाण्डवों को लाक्षागृह में जलाने का षडयंत्र रचना, भरी सभा में रजस्वला महासती द्रौपदी की विडंबना करना, अभिमन्यु को अनेकों द्वारा मिल कर मारना आदि बहुत से अन्याय तू न करता, पाण्डवों को उनका राज्य पहले ही दे देता तो भीष्म, द्रोण आदि महावीरों का और तेरा भी नाश नहीं होता। हमारे अन्याय तेरे अन्यायों की प्रतिक्रिया ही थे। इसी लिए हमें दोषी न ठहरा अपने किये पापों के तू फल भोग रहा है।" उसके बाद श्रीकृष्ण के साथ सभी शिबिर को लौट आये। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को रथ से पहले नीचे उतरने के लिए कहा और आप पीछे से उतरे। तब अपना उदिष्ट समाप्त समझ कर हनुमान् भी वहां से चले गए। श्रीकृष्ण के उतरते ही अर्जुन का रथ जल कर भस्मसात् हो गया। उस अचंभे को देखकर अर्जुन ने उसका कारण पूछा। तब श्रीकृष्ण ने बताया, "मै सारथी के नाते रथ पर होने के कारण और तेरा काम पूरा न हो पाने पर तेरा रथ अब तक नहीं जला, पर अब तेरा काम पूरा हुआ है। मुझे भी अब तेरे सारथी के रूप में उस रथ पर बैठने की आवश्यकता नहीं है। युद्ध में भीष्म, द्रोणादिकों के चलाए दिव्य अस्त्रों के कारण तेरा रथ जल कर खाक हो गया है। उसके बाद पांडव सेना कौरवों के शिबिर में घुस पड़ी। उसे वहां चांदी, सोना, हीरे, मानिक, दास-दासी आदि बहुत कुछ मिला। श्रीकृष्ण ने पांडवों और सात्यकि से कहा कि अब हम आज की रात शिबिर के बाहर बिताएं। तद्नुसार वे सब ओघवती नदी के तट पर रातभर के विश्राम के लिए चले गये। वहां जाने पर धर्मराज के मन में इस बात की चिंता उठी कि महापतिव्रता गांधारी क्रोधवश शायद हमें शाप देकर भस्म तो नहीं करेंगी। इसलिए उन्होंने श्रीकृष्ण को गांधारी के पास भेजा। श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र और गांधारी के पास जाकर बहुत ही युक्तिपूर्वक भाषण से उन्हे समझाया तथा शांत किया और फिर से वे पांडवों की तरफ लौट आए। कृपाचार्यादि तीनों को लोगों द्वारा जब यह समाचार मिला कि दुर्योधन गदायुद्ध में आहत हुआ है, तब वे दुर्योधन के पास पहुंच गये। ग्यारह अक्षौहिणी सेना के स्वामी दुर्योधन को वहां धूल फांकते देखा, तब उन्होंने बहुत ही शोक किया। अश्वत्थामा ने तो यहां तक कहा कि प्रत्यक्ष मेरे पिताजी की मृत्यु से भी, राजन् तेरी इस विपन्न अवस्था का मुझे भारी दुःख हो रहा है। मै प्रतिज्ञा करता हैं कि आज किसी न किसी उपाय से पांडव सेना का विध्वंस करूंगा। इसके लिए तेरी स्वीकृति 116/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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