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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धृतराष्ट्र ने प्रश्न किया- संजय! कर्ण की मृत्यु जब हुई तब दोनों तरफ कितना सैन्य शेष था? संजय ने बताया कौरवों के पक्ष में ग्यारह हजार रथ (11,000), दस हजार हाथी (10,000), दो लाख घोडे (2,00,000) और तीन करोड पदाति सैन्य (3,00,00,000) था, तो पाण्डवों के पक्ष में छह हजार रथ (6,000) छह हजार हाथी (6,000), दस हजार घोडे (10,000) और दो करोड़ पदाति सैन्य (2,00,00,000) था। 18) अठारहवें दिन सबेरे युद्ध शुरु हुआ। उस युद्ध में नकुल के हाथों कर्ण पुत्र चित्रसेन का वध हुआ। वह देख कर कर्ण के दूसरे दो पुत्र, सुषेण और सत्यसेन नकुल पर दौडे। नकुल ने उनका भी जब नाश किया। तब कौरव सेना भयभीत होकर भागने लगी। उनका धैर्य बढ़ाने के हेतु शल्य पाण्डवों से युद्ध करने लगा। उसने पाण्डवसेना की बहुत हानि की और धर्मराज पर बाणों की वर्षा की। तब भीम को बडा क्रोध आया। उसने अपनी गदा चला कर शल्य के रथ के घोडे मारे, सारथी को मार गिराया। सारथी के गिरतेही शल्य भाग गया। भीमसेन गदा घुमाकर युद्ध के लिये शल्य को ललकारने लगा तब दुर्योधनादि कौरवसेना ने भीम पर हमला चढाया। भीम की सहायता में पाण्डव सैन्य के आते ही जो युद्ध हुआ, उसमें दुर्योधन ने पाण्डवों की तरफ से युद्ध करने वाले चेकितान नामक यादव का वध किया। शल्य ने लौट कर धर्मराज पर तीखे तीर छोडे। तब धर्मराज ने अपने पार्श्ववर्तियों से कहा कि शल्य का काम मेरे हिस्से का है। मै उसका सामना करके उसे नष्ट करूंगा। मेरा रथ सभी शस्त्रास्त्रों से तैयार रखिए। मेरे रथ के बाई ओर धृष्टद्युम्न, दाहिने सात्यकि, पीछे अर्जुन, आगे भीम के रहने पर मै शल्य को जीत सकूँगा। इस तरह की व्यवस्था करके धर्मराज और शल्य एक दूसरे पर तीर चलाने लगे। धर्मराज ने शल्य के रथ के घोडों और ध्वज को गिराया, तब अश्वत्थामा शल्य को अपने रथ पर सहारा देकर दूर हट गया। कुछ देर बाद दूसरे रथ पर सवार होकर शल्य धर्मराज के साथ लडने फिर से आ गया। उन दोनों का युद्ध चल रहा था तब धर्मराज ने शक्ति नामक शस्त्रों से शल्यका नाश किया। उस समय दुर्योधन के रोकने पर शल्य की सेना के सात सौ रथी पाण्डव सेना पर चढ गये। भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव ने उन सबको परास्त किया। तब कौरवों की सेना भय से भाग जाने लगी। उनको धैर्य दिलाने के लिए जब दुर्योधन के प्रभावी भाषण से सेना फिर युद्ध के लिए कटिबद्ध हो गयी। उनमें से म्लेच्छों का राजा शाल्व मस्त हाथी पर सवार होकर आगे बढा। तब धृष्टद्युम्न ने उस हाथी को गदाघात से ढेर किया और सात्यकि ने एक ही तीर में शाल्व को नष्ट किया। फिरसे कौरवों की सेना में भगदड मच गई। सेना को बड़े कष्ट के साथ लौटा लेकर दुर्योधन युद्ध करने लगा। तब धृष्टद्युम्न ने उसके रथ के घोडों और सारथी को नष्ट किया। उस पर दुर्योधन एक घोड़े पर सवार होकर शकुनि की ओर भाग गया। उसके पीछे पीछे अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा भी गए। दुर्योधन के भाग जाने पर उसके भाई भीमसेन पर टूट पडे। भीम ने उन सबका नाश तो किया ही, साथ साथ हजारों रथों तथा बहुत सारी सेना को ध्वस्त दिया। अब दुर्योधन और उसका भाई सुदर्शन दो ही घुडसवार सेना के बीच रह गये। उस सेना का नाश करने के लिए भीम, अर्जुन और सहदेव तीनों वहाँ पहुँच गये। तब सुदर्शन भीम से और त्रिगर्त देश का राजा सुशर्मा और शकुनि अर्जुन से युद्ध करने लगे। अर्जुन ने अपने बाणों से सत्यकर्मा सत्येषु और सुशर्मा का तथा उनकी सेना का नाश किया, और भीम ने सुदर्शन का वध किया। जब शकुनि और उसका पुत्र उलुक सहदेव पर दौडे। तब सहदेव ने पहले उलुक को और पश्चात् शकुनि को परलोक पहुंचा दिया। अनन्तर बचे सभी सैनिकों को दुर्योधन ने आज्ञा दी कि, “पाण्डवों का नाश करके ही मुंह दिखाओ। "उस आज्ञा के अनुसार वह सब सेना पाण्डव सेना पर दौड चढ गई। लेकिन वह सब पान्डवों की सेना द्वारा मारी गई। धृतराष्ट्र ने पूछा, "कौरवों का पूरा सैन्य जब नष्ट हुआ तब पाण्डवों की तरफ कितनी सेना बची थी।" .... संजय ने बताया, "दो हजार (2,000) रथ, सात सौ (700) हाथी, पांच हजार (5,000) घुड़सवार और दस हजार (10,000) पदाति, इतना सैन्य पाण्डवों के पक्ष में शेष बचा था। दुर्योधन का घोडा जब युद्ध में गिर पडा तब दुर्योधन हाथ में गदा लेकर अकेला ही चल पडा। उसी समय धृष्टद्युम्न के कहने पर मुझे मारा जा रहा था, पर व्यास महर्षि के वहां पहुंचते ही और कहने पर उसने मुझे जिन्दा छोड दिया। मै शस्त्रत्याग करके जब हस्तिनापुर जा रहा था, एक कोस की दूरी पर मुझे दुर्योधन मिला। उसने बड़े ही दुःख के साथ कहा, "धृतराष्ट्र से जाकर कह दो कि आपका पुत्र दुर्योधन हृद् में घूस पडा है।" इतना कहकर वह सरोवर में घुस पडा और मंत्र के बल पर तल में पहुंच कर चुप बैठा। उसके जाने पर कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा, तीनों उसकी तलाश करते हुए वहां पहुंच गए। मैने उन्हें दुर्योधन के जीवित होने का और हद में जा छिपें बैठने का वृत्त सुनाया। इतने में यह देखकर कि पाण्डव उसकी खोज में वहां पहुंचे उन्होने मुझे रथ पर बिठा लिया और हम शिबिर पहुंच गए। पूरी सेना के विध्वंस की वार्ता शिबिर में सुन कर सभी स्त्रियां भीषण आक्रोश करने लगी। दुर्योधन के मंत्री उन स्त्रियों को लेकर हस्तिनापुर की ओर चल पडे। तब धर्मराज की आज्ञा लेकर युयुत्सु उनके साथ गया। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 115 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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