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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उनकी सेना का नाश सात्यकि ने किया। ऋष्यशृंग के पुत्र अलम्बुष राक्षस का, (जिसका दूसरा नाम शालकटंकट था) वध घटोत्कच ने किया। उसके बाद सात्यकि द्रोणाचार्य से युद्ध करने लगा। इतने में पहली सूचना के अनुसार श्रीकृष्णने जो अपनी सांकेतिक शंख ध्वनि की। वह ध्वनि धर्मराज को सुनने को मिली। वह सुनकर उन्हें ऐसा लगा कि अर्जुन पर बड़ा भारी संकट मंडरा रहा है। धर्मराज ने सात्यकि को आज्ञा दी कि वे अर्जुन की सहायता में शीघ्र चले जाएं। सात्यकि द्रोणाचार्य के आगे से अर्जुन के ही समान आगे बढ़ा। लेकिन द्रोणाचार्य ने उसका पीछा किया। तब सात्यकि ने द्रोणगुरु के सारथी को मारा। सात्यकि का प्रतिकार जलसंघ ने किया। उसका नाश करने के उपरान्त सात्यकि ने सुदर्शन का भी नाश किया। बाद दुर्योधन के सारथी को नष्ट कर उसे भी भाग जाने पर विवश किया, उसी तरह दुःशासन को भी जीत लिया। व्यूह के भीतर प्रवेश करने पर सात्यकि से द्रोणाचार्य ने बाजी लगाकर युद्ध किया। उन्होंने केकय राजा, बृहत्क्षत्र, चेदि राजा, धृष्टकेतु और उसका पुत्र, तथा जरासंध का पुत्र इनका वध करके सैन्य का भारी विध्वंस किया। इधर अर्जुन की चिंता से धर्मराज को भारी दुःख हुआ। अब उन्होंने भीम को उधर यह कह कर भेजा कि जाते ही अर्जुन का क्षेम कुशल प्रकट करने के लिए तू जोर से गर्जना कर जिससे मैं निश्चित हो जाऊंगा। धर्मराजा के आदेश पर भीम चल पडा। द्रोणाचार्य ने उसे रोका। गुरु द्रोण का रथ ही भीम ने उठाकर फेंका। इस प्रकार आठ बार रथ उठा फेंक देने पर वह आगे निकल पड़ा। उससे युद्ध करने दुर्योधन के कुछ पुत्र प्रस्तुत हुए, उन सबका उसने नाश किया। कृतवर्मा को जीत कर आगे बढ़ने पर सात्यकि और अर्जुन को कौरव सेना के साथ युद्ध करते उसने देखा। देखते ही उसने भीम गर्जना की। वह सुनकर इधर धर्मराज को बड़ा ही आनंद हुआ। भीम की गर्जना सुन कर कर्ण आगे बढ़ा। घोड़ों और सारथी के मरने पर वह वृषसेन के रथ पर सवार होकर रण-क्षेत्र से भाग निकला। अनन्तर दुर्मर्षण आदि पांच, धृतराष्ट्र पुत्र रणक्षेत्र पर युद्ध के लिए पहुंचे। इनका भी वध भीमसेन ने किया। फिर एक बार कर्ण को भगाने पर दुर्योधन के आदेश से उसके चौदह भाई युद्ध के लिए आ गये। उन सब का वध भीमसेन ने किया। उनमें विकर्ण भी था; जिसने द्यूत में हारने पर भी "द्रौपदी दासी नहीं है" यह अपना मत व्यक्त धैर्य से किया था। वह याद करके विकर्ण की मृत्यु से भीमसेन को बहुत ही दुःख हुआ। वह बोला, "सभी कौरवों का संहार करने की मेरी प्रतिज्ञा-पूर्ति में ही मैने तेरा वध किया। सचमुच क्षात्र धर्म बड़ा ही निष्ठुर है।" इस प्रकार अपने इकत्तीस भाई भीम के हाथों मारे गए देखकर दुर्योधन को विदुर का हितोपदेश याद आया। भीमसेन और कर्ण दोनों में फिर से युद्ध शुरु हुआ। भीम ने कर्ण के हाथ से धनुष्यों को बार-बार तोड़ कर उसके दल का बहुत ही विनाश किया। तब कर्ण को बड़ा क्रोध आ गया। उसने अस्त्र से भीम के रथ और घोडोंका नाश किया और सारथी पर तीर चलाया। भीम के सारथी ने युधामन्यु के रथ का सहारा लिया और स्वयं भीम एक मृत हाथी की आड़ में जा छिपा। एक हाथी को उठाकर जब वह खड़ा हो गया, तब कर्ण ने तीर चलाकर हाथी के अंग-अंग को तोड़ डाला। पश्चात् हाथी, रथ, घोडे आदि भीम ने जो भी फेका वह सब कर्ण ने तोड डाला। तब भीम ने अपनी मुठ्ठी उठायी, पर कर्ण के वध की प्रतिज्ञा अर्जुन की होने के कारण, भीम ने कर्ण को नहीं मारा। साथ ही कर्ण ने भी कुंती को दिये वचन को याद कर भीम को नहीं मारा। फिर भी धनुष्य के सिर से उसे चुभाया और “पेटू" आदि शब्दों के उसकी खूब निंदा की। भीम ने प्रत्युत्तर देते हुए कहा, "युद्ध में देवेन्द्र की भी कभी पराजय होती है। तू तो मेरे सामने से कई बार भाग गया है। अब क्यों व्यर्थ बढ़कर बातें करता है?" "ये सारा दृश्य अर्जुन ने देखा और उस ने कर्ण पर तीखे तीर चलाये। तब कर्ण भीम को छोड दूर चला गया और भीम भी सात्यकि के रथ पर सवार होकर अर्जुन की और चल पडा। सात्यकि से लडने अलम्बुश नामक राजा आ धमका। उसका नाश करके दुःशासन आदि जो प्रतिकार करने वहां पहुंचे उनको पराभूत कर सात्यकि अर्जुन के पास जा पहुंचा। इतने में भूरिश्रवा युद्ध के लिए आ पहुंचा। सात्यकि और भूरिश्रवा दोनों ने एक दूसरे के घोड़े मारे और धनुष्यों को तोडा। बाद में ढाल-तलवार लेकर उन्होंने युद्ध किया। ढाल-तलवार के टूटने पर वे दोनों बाहु-युद्ध करने लगे। भूरिश्रवा ने सात्यकि को उठाकर भूमि पर पटका और एक हाथ में तलवार लेकर और दूसरे हाथ से उसके केश पकड उसकी छाती पर लात जमाई और उसका शीश काटने प्रस्तुत हुआ। इतने में श्रीकृष्ण की सूचना से अर्जुन ने तीर चलाकर उसका खड्गयुक्त दाहिना हाथ तोड डाला। तब भूरिश्रवा अर्जुन से बोला, “मै दूसरे से युद्ध कर रहा था। मेरा हाथ तोडने का अति नीच कर्म तूने क्यों किया? कृष्ण की संगति का ही यह परिणाम दिखाई देता है।" उसपर अर्जुन ने कहा, "क्षत्रिय वीर अपने दल-बल को साथ में लेकर लडते रहते हैं, उनको एक दूसरे की रक्षा करनी पड़ती है, इसी लिए उसमें मेरा कोई अपराध नहीं है। लेकिन तू स्वयं अपनी भी रक्षा नहीं कर सकता, तब अपनी सेना की रक्षा तू क्या कर सकेगा।" यह सुनने पर भूमि पर दर्भ बिछाकर भूरिश्रवा प्रायोपवेशन के लिए संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड/109 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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