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उस रात में श्रीकृष्ण को नींद नहीं आयी। उन्होंने दारुक से कह रखा कि, “कल सबेरे मेरे रथ को सभी शस्त्रास्त्रों सहित तैयार रख। मै अपना शंख विशेष ढंग से बजाऊंगा। उस समय रथ को सजा ले आना। अर्जुन और मुझमें तनिक भी भेद न होने के कारण उसके हाथों प्रतिज्ञा पूर्ति न होने पर मै उसको निभाऊंगा। 14) चौदहवें दिन सबेरे कौरव सैन्य को व्यूहबद्ध करके द्रोणचार्य ने जयद्रथ से कहा कि तुम यहां से छह कोसों पर व्यूह के बीच जाकर बैठो। वहां तुम्हें कोई भी नहीं मार सकेगा। जयद्रथ की रक्षा के लिए भूरिश्रवा, कर्ण, अश्वत्थामा, शल्य, वृषसेन
और कृपाचार्य की नियुक्तियां हुईं। उनकी सहायता में एक लाख घोडे, साठ हजार रथ, चौदह हजार हाथी और इक्कीस हजार शस्त्रास्त्रों से युक्त पदाति सैन्य दिया हुआ था। जयद्रथ उनके साथ अपने स्थान चला गया। शकटव्यूह चौबीस कोस लम्बा, पीछे दस कोस चौडा बना था। उसके भीतर आगे चक्रव्यूह, इन सब व्यूहों के मध्यम भाग में सुई से लंबे सूचीव्यूह के मुख पर द्रोणाचार्य और एकदम पीछे की तरफ जयद्रथ था। द्रोणाचार्यजी की सुरक्षा के लिए उनके पीछे कृतवर्मा था। दुःशासन
और विकर्ण सैन्य के आगे थे। सारी सिद्धता हो जाने पर चौदहवें दिन युद्ध आरंभ हुआ। अर्जुन ने तेजी से आगे बढ़कर अगाडी के हाथियों के सैन्य को लिए खडे दुःशासन को पराभूत किया। तब दुःशासन द्रोणाचार्य के पास भाग गया। अनन्तर
अर्जुन द्रोणाचार्य के सामने प्रस्तुत हुआ। गुरु द्रोण से प्रार्थना करके वह आगे बढ़ने लगा। द्रोणाचार्य ने कहा, "मुझे जीते बिना आगे बढना संभव नहीं।" उस पर ध्यान न देकर अर्जुन आगे चल पडा। वह देखकर, "शत्रु को जीते वगैरे तू कभी
आगे नहीं बढता है? इस प्रकार द्रोणाचार्य के टोकने पर आगे बढते घुसते अर्जुन ने जवाब में कहा, “आप मेरे लिए शत्रु नहीं है, गुरुदेव हैं। मै तुम्हारा शिष्य याने पुत्र ही हूँ।" वह कृतवर्मा के सम्मुख जा पहुंचा। अर्जुन के रथ के पहियों की रश्रा करने के लिए युधामन्यु और उत्तमौजा दो वीर थे। उनसे युद्ध करने मे लगें कृतवर्मा को देख कर अर्जुन अकेला ही आगे बढ़ने लगा। उन दोनों को कृतवर्मा ने व्यूह के भीतर नहीं घुसने दिया। अर्जुन को आगे बढ़ते देख काम्बोज देश का राजा श्रुतायुध हाथ में गदा लेकर सामने आ गया। वह गदा उसे अजेय बनाने के हेतु वरुण देव ने दी थी। देते समय वरुण देव ने बताया था कि युद्ध न करने वालों पर इसका प्रयोग करोगे तो गदा तुम्ही को नष्ट कर देगी। लेकिन भूल वश श्रुतायुघ ने गदा का उपयोग श्रीकृष्ण पर किया। श्रीकृष्ण युद्ध न करने वालों मे होने के कारण गदा ने लौटकर श्रुतायुध का विनाश किया।
उसके अनन्तर श्रुतायुध का पुत्र सुदक्षिण, श्रुतायु व अश्रुतायु उनके पुत्र नियतायु व दीर्घायु अम्बष्ठ राजा आदि अनेक वीरों का नाश करने पर अर्जुन के सामने खड़े होने की हिम्मत किसी की न हुई। दुर्योधन ने जब यह देखा की अर्जुन अविरोध जयद्रथ की ओर बढ़ रहा है, तब उसने द्रोणाचार्य से कहा, "आपको जीतना किसी को संभव नहीं है, तब अर्जुन
आगे कैसे बढ़ा? मेरा खाकर आप पाण्डवों का हित सोचते रहते हैं।" वह सुनकर द्रोचाचार्य को खेद हुआ। वे बोले, "अर्जुन तरुण है, मै बूढ़ा हो गया हूँ। उसका सारथ्य भगवान् श्रीकृष्ण कर रहे हैं। उसके घोडे बहुत ही तेज हैं। अर्जुन जिन बाणों
को छोडता है उनसे भी आगे एक कोस उसका रथ पहुंच जाता है। यहां व्यूह के अग्रभाग में पाण्डवों का सैन्य है, अर्जुन यहां नहीं है। धर्मराज को जीवित पकडने यह अच्छा मौक दिखाई दे रहा है। मै यहीं युद्ध करता हूं। तू अर्जुन की ओर
जा। "दुर्योधन ने कहा, "तुम्हारे सामने से जो निकल आगे बढा उसे मै कैसे रोक सकूँगा?" उसपर द्रोणाचार्य ने मंत्रप्रयोग करके दुर्योधन को कवच पहना दिया। कवच धारण किये दुर्योधन अर्जुन की ओर पर्याप्त सैन्य साथ में लेकर चल पडा। और द्रोणाचार्य वहीं युद्ध करते रहे।
अर्जुन को आगे बढ़ते देखकर अवन्ति देश के राजा विंद और अनुविंद युद्ध के लिये सामने डटे। उनका नाश करने पर अर्जुन ने तीरों को एक घर सा बना लिया। धरती का भेदन कर वहां एक सरोवर निर्माण किया। तब श्रीकृष्ण ने रथ के घोडों को खोला। उनके शरीर के तीरों को निकाला। उन्हें खूब लोटने दिया, पानी पिलाया, तैराया, चना आदि खिलाकर फिर से उन्हें रथ में जोड़ दिया। कौरवों की सेना अचरज से एकटक देखती ही रही। उनसे प्रतिकार में कुछ भी करते नहीं बना। अनन्तर अर्जुन आगे बढ़ने प्रस्तुत हुआ। दुर्योधन ने उसका प्रतिकार किया। उसके शरीर पर कवच था, वह देखकर अर्जुन ने
अपने तीर उसके नाखूनों और मांस ग्रंथियों के जोडो में चलाये। तब दुर्योधन को मान्तिक वेदनाएं होने लगीं। दुर्योधन की सुरक्षा तथा सहायता में जो सैन्य साथ में था, उसका अर्जुन ने विनाश कर दिया । वह देखकर श्रीकृष्ण ने अपना शंख जोर से बजाया।
__ वहां से जयद्रथ बहुत दूर नहीं था। दुर्योधन की वह हालात देखकर भूरिश्रवा, अश्वत्थामा आदि वीर जो कि जयद्रथ के रक्षणार्थ थे, अब अर्जुन से युद्ध करने लगे।
उधर धर्मराज गुरु द्रोणाचार्य के साथ युद्ध कर रहे थे। युद्ध में उनके घोड़े मारे जाने के कारण वे सहदेव के रथ पर सवार होकर युद्धक्षेत्र से हट गये थे। अनन्तर केकय देश के राजा बृहत्क्षत्र ने कौरवों की तरफ के क्षेत्रपूर्ति राजा का वध किया। चेदि देश के राजा धृष्टकेतु ने कौरवों की तरफ से चिरधन्वा का वध किया। मगध देश के राजपुत्र व्याघ्रदत्त और
108 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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