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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छाती पर झेल लिया हुआ था। वह वैष्णवास्त्र विष्ण से मांग लिया था। उस तरफ मोड़ दिया लेकिन संशप्तकों ने युद्ध के लिए आह्वान किया इसलिये फिर से इनसे युद्ध कर के अर्जुन ने दस हजार त्रिगर्त वीरों और चार हजार नारायण गणों को नष्ट किया और भगदत्त से लड़ने प्रवृत्त हुआ। फिर से सुशर्मा पर्याप्त सैन्य के साथ युद्ध करने पहुंच गया। तब सुशर्मा के भाई का वध कर के और खुद सुशर्मा को बेहोश कर के अर्जुन भगदत्त की तरफ आ पहुंचा। अर्जुन ने हाथी और भगदत्त को लक्ष्य कर के शरवर्षा की। प्रत्युत्तर में भगदत्त ने अर्जुन पर वैष्णवास्त्र का प्रयोग किया। उस अस्त्र को श्रीकृष्ण ने अपने हृदय पर झेल लिया। वह अस्त्र श्रीकृष्ण के कंठ में वैजयन्ती नामक कमलों की माला बन गया। बहुत पहले धरती ने अपने पुत्र नरकासुर के लिए वह अस्त्र विष्णु से मांग लिया था। नरकासुर का वध श्रीकृष्ण के हाथों होते ही वह अस्त्र भगदत्त को प्राप्त हुआ था। वह वैष्णवास्त्र अजेय होने के कारण उससे अर्जुन को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने उसे अपनी छाती पर झेल लिया। अनन्तर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, "भगदत्त बहुत ही बूढ़ा हो गया है। माथे पर की सिकुडन आंख पर आ लटकने से उसे कुछ दिखाई नहीं देता, इसलिये उसने माथे पर पट्टी बांध रखी है। सूचना मिलते ही अर्जुन ने तीर चला कर उस पट्टी को तोड दिया। परिणाम भगदत्त को दिखाई देने में विघ्न आ पडा। तब अर्जुन ने तीर चला कर हाथी और साथ साथ भगदत्त का संहार किया। भगदत्त का वध करने पर अर्जुन दक्षिण दिशा की ओर युद्ध करने चला गया। तब द्रोणाचार्य ने फिर पाण्डव सैन्य का संहार करना प्रारंभ किया। वह देख कर नील नाम का राजा कौरवों के साथ युद्ध करने आगे बढ़ा। उसका नाश अश्वत्थामा ने किया तब पाण्डव सैन्य फिर से भागने लगा। इतने में संशप्तकों को पराभूत कर अर्जुन वहां पहुंचा और द्रोणाचार्य की सेना का संहार करने लगा। कौरवों की सेना को भागती देख कर कर्ण आगे बढा। अर्जुन ने उस पर अनेक तीर चला कर उसके तीन भाइयों का वध किया। भीम ने भी अपनी गदा चला कर कर्ण की सेना का बहुत संहार किया। 13) तेरहवे दिन सबेरे दुर्योधन ने द्रोणाचार्य से कहा, "आपका संकल्प यह दिखाई देता है कि हमारा नाश हो। धर्मराज को आपने कल नहीं पकडा।" द्रोणाचार्य बोले, "तेरे लिए मै भरसक प्रयास तो कर रहा हूँ, फिर भी तू इस तरह उलाहना क्यों दे रहा है? खैर आज पाण्डव पक्ष के किसी महान योद्धा को मार कर ही सांस लूंगा किन्तु अर्जुन को कहीं दूर रुकवा देना। वह सुन कर संशप्तकों ने अर्जुन को दक्षिण की ओर युद्ध में ललकारा। अर्जुन के चले जाने पर द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की। वह रचना देख कर धर्मराज किंकर्तव्य विमूढ हो गये। उन्होंने अभिमन्यु से कहा, "चक्रव्यूह का भेदन करने का रहस्य तू, अर्जुन, श्रीकृष्ण और प्रद्युम्न इन चार वीरों के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता। तब तू चक्रव्यूह का भेदन करने प्रस्थान कर। हम तेरे पीछे पीछे उसी मार्ग से आगे बढ़ेंगे। चक्रव्यूह का भेदन कर के अभिमन्यु के भीतर प्रवेश करने पर भीम आदि पांडव अभिमन्यु के पीछे पीछे जाने लगे परन्तु जयद्रथ ने उनका मार्ग रोक लिया। पांडवों को उसने भीतर नहीं जाने दिया। वनपर्व के वर्णनानुसार भगवान शंकर का जयद्रथ को विशेष वर प्राप्त था। व्यूह के भीतर घुसते ही अभिमन्यु समूचे सैन्य का विध्वंस करने लगा। यह देख कर दुःशासन उससे लडने आया, लेकिन अभिमन्यु के तीरों से वह मूर्च्छित हो गया। अनन्तर कर्ण प्रस्तुत हुआ। अभिमन्यु ने उसके धनुष्य को तोडा। इस युद्ध में कर्ण का भाई शल्यपुत्र रुक्मरथ, दुर्योधनपुत्र लक्ष्मण आदि वीरों का अभिमन्यु ने वध किया। तब कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कर्ण, कृतवर्मा और बृहद्बल इन छह वीरों ने अभिमन्यु को घेर लिया। उनमें से बृहद्वल को अभिमन्यु ने नष्ट किया। तब द्रोणाचार्य के कहने से कर्ण ने उसका धनुष्य तोडा। कृतवर्मा ने घोडों के प्राण हर लिए। बाकी तीनों ने उस पर बाणों की बौछार की। अभिमन्यु ने हाथ में ढाल तलवार उठाई। द्रोणाचार्य ने ढाल-तलवार तोड दिया। अनन्तर उसने चक्र धारण किया। उसको भी सबने तोड दिया। बाद में अभिमन्यु ने गदा उठा कर बहुतेरे वीरों का नाश किया। तदनन्तर दुःशासन का पुत्र और अभिमन्यु दोनों में गदा युद्ध जब छिडा तब दोनों एक दूसरे के गदाघातों से मूर्च्छित हो गिरे, परंतु दुःशासन का पुत्र पहले होश में आया। अभिमन्यु खडा हो ही रहा था कि दुःशासन के पुत्र ने उसके मस्तक पर गदा प्रहार किया। उसी क्षण अभिमन्यु मृत्यु के अधीन होकर नीचे गिर पडा। अभिमन्यु का वध होने पर दोनो सेनाएं अपने अपने शिबिर चली गयी। अभिमन्यु की मृत्यु के कारण धर्मराज बहुत ही शोक करने लगे। तब व्यास महर्षि वहां पहुंचे। उन्होंने धर्मराज की सांत्वना की। अनन्तर संशप्तकों को पराभूत करके श्रीकृष्ण और अर्जुन वापस लौटे। अर्जुन ने अभिमन्यु के लिए बहुत शोक किया। जब उसे पता चला कि जयद्रथ के कारण पाण्डव अभिमन्यु की सहायता में नहीं बढ़ सके, और इसीसे अभिमन्यु का वध हुआ, तब अर्जुन ने, “कल सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध करूंगा; न कर सकू तो खुद जल कर भस्मसात् हो जाऊंगा।" इस प्रकार भीषण प्रतिज्ञा की। यह वार्ता जयद्रथ के कानों पर पडते ही वह अपने घर जाने की तैयारियां करने लगा। लेकिन द्रोणाचार्य के आश्वासन देने पर वह रुक गया। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड/107 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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