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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बैठ गया। तब सात्यकि ने हाथ में तलवार उठाकर सब लोगों के रोकने पर भी भूरिश्रवा का सिर धड़ से अलग कर दिया। सात्यकि की निंदा करने वाले लोगों को सात्यकि ने उत्तर दिया की, "शत्रु को जो भी दुखदायी, वह सब कुछ अवश्य कर लेना चाहिए, इस प्रकार वाल्मीकि रामायण में लिखा होने के कारण, इसमें मेरा कोई भी दोष नहीं है। सात्यकि-जैसे पराक्रमी वीर को भूरिश्रवा जमीन पर कैसे पटक सका? धृतराष्ट्र के इस प्रश्न का उत्तर संजय ने इस प्रकार दिया। यदु के वंश में वसुदेव और शिनि दो महावीर थे। देवकी की कन्या का स्वयंवर था। शिनि ने वसुदेव के लिए कन्या को अपने रथ पर बिठा लिया। उस समय उपस्थित राजाओं से युद्ध हुआ। अन्यों को तो शिनि ने पराभूत किया, पर सोमदत्त ने आधा दिन घसमान युद्ध किया, और आखिर में बाहु-युद्ध में शिनि ने सोमदत्त को सबके सामने जमीन पर पटक दिया। एक हाथ में तलवार लेकर, दूसरे हाथ से उसके केश पकड लिए, पर उसे न मारते हुए छोड दिया। सोमदत्त उस अपमान को सहन नहीं कर सका। उसने शंकर को प्रसन्न करके वर मांग लिया कि मुझे ऐसा पुत्र दो कि जो शिनि ने जिस प्रकार मेरा अपमान किया, उसी प्रकार सब के समक्ष वह शिनि के पुत्र का अपमान कर पाए। शंकर ने वरप्रदान किया, और इसीलिए भूरिश्रवा उस दुर्घट कर्म को कर सका। - भूरिश्रवा के वध के पश्चात् अर्जुन ने कौरव-सेना का बहुत संहार किया। इतने में सूर्यास्त की बेला आ गयी। जयद्रथ की रक्षा में जो प्रधान वीर और सेना थी उनको सूर्यास्त से पहले जीतना असंभव देखकर श्रीकृष्ण ने युक्ति चलाई। उन्होंने सूर्य को आच्छादित कर अंधेरा निर्माण किया। उस समय सूर्यास्त का आभास होकर कौरव-सेना हर्षोत्फुल्ल होकर उचक-उचक कर आकाश की ओर ताकने लगी। उन सब में जयद्रथ भी एक था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, "वह देख जयद्रथ । तीर चला कर उसका सिर इस कदर उडा दे कि वह उसके पिता वृद्धक्षत्र, जो कुरुक्षेत्र में तपश्चर्या कर रहे हैं उनकी गोद में जा गिरे; कारण जयद्रथ का सिर जो भूमि पर गिराएगा उसी के सिर के टुकडे-टुकडे हो जाएंगे इस प्रकार उन्होंने बताया था। इससे एक ही तीर से दोनों का नाश होगा।" उस पर अर्जुन ने तीर चलाया उस तीर से जयद्रथका सिर संध्या-वंदन में संलग्न वृद्धक्षत्र की गोद में जा पडा। वृद्धक्षत्र की उसी क्षण मृत्यु हो गयी। जयद्रथ के वध के उपरान्त श्रीकृष्ण ने सूर्य का कृत्रिम आवरण दूर किया। उपरान्त, श्रीकृष्ण, अर्जुन, भीम, सात्यकि, युधामन्यु और उत्तमौजा सबने अपने अपने शंख उच्च स्वर से बजाए। उस स्वर को सुन कर धर्मराज समझ गये कि जयद्रथ का वध हुआ और उन्होंने भी बाजे बजा कर समूची पांडव सेना को प्रमुदित किया। जयद्रथ का वध होने के बाद कृपाचार्य और अश्वत्थामा ने अर्जुन पर चढाई की। उनका पराभव अर्जुन द्वारा होने पर वहां कर्ण आ पहुंचा। सात्यकि के लिये स्वतंत्र रथ न होने के कारण श्रीकृष्ण ने अपनी शंखध्वनि से विशेष संकेत किया। उसी क्षण दारुक रथ लेकर पहुंचा। उस पर सवार होकर सात्यकि ने कर्ण को पराभूत किया। तब कर्ण ने दुर्योधन के रथ का सहारा लिया। इतने में सूर्यास्त हुआ, तब श्रीकृष्ण, अर्जुन, भीम, सात्यकि आदि सभी धर्मराज से मिलने गये। धर्मराज सभी से बड़े प्रेमसे मिले।। उस रात युद्ध फिर से शुरु हुआ। पांडवों के बढ़ते प्रभाव को देख कर दुर्योधन को बहुत ही दुःख हुआ। तब कर्ण ने कहा, "मैं जाकर सभी पांडवों का नाश कर देता हूं।" उसके इस बढाई मारने पर कृपाचार्य और अश्वस्थामा ने उसकी निन्दा की। तब कर्ण और अश्वत्थामा के बीच कलह प्रारंभ हुआ। लेकिन दुर्योधन ने दोनों को समझा दिया। अनन्तर कर्ण युद्ध करने लगा। उसने पांडव सैन्य का बहुत ही विध्वंस किया। भीम, अर्जुन, सात्यकि और धृष्टद्युम्न इन्होंने भी कौरव-सेना का वैसा ही विनाश किया। उस युद्ध में सात्यकि ने सोमदत्त का वध किया। बाद में अंधेरा छा गया और हाथ को हाथ न सूझता था। तब दोनों सेनाओं मे आग जलाकर यद्ध होने लगा। सात्यकि ने भूरिश्रवा का नाश किया। भीमसेन ने दुर्योधन को और कर्ण ने सहदेव को रण-क्षेत्र से हटाया। उस युद्ध में कर्ण का प्रताप सबको असह्य हो गया। कर्ण के पास अर्जुन के लिए ही सुरक्षित एक शक्ति संगृहीत थी। इसलिए श्रीकृष्ण अर्जुन को उसके सामने नहीं जाने देते थे। तब अर्जुन ने घटोत्कच को कर्ण से लडने भिजवा दिया। जटासुर का पुत्र अलम्बुष राक्षस उसका प्रतिकार करने आ पहुचां । उसका वध घटोत्कच के हाथों होने पर अलायुध नामक राक्षस युद्ध के हेतु आ गया। उसका भी नाश उसने किया। उपरान्त घटोत्कच और कर्ण दोनों में युद्ध प्रारंभ हुआ। घटोत्कच का असह्य पराक्रम देख कर कर्ण ने अस्त्र चलाया और उसे रथ, सारथी और घोडों का नाश किया। तब घटोत्कच आंख से ओझल हो गया और लुक-छिपकर युद्ध करने लगा। उसने अपनी राक्षसी माया फैला दी। उससे कौरव-सेना पर सभी दिशाओंसे तरह-तरह के शस्त्र आकर आघात करने लगे और सब का बहुत ही नाश होने लगा। तब सभी ने कर्ण से कहा कि, “अर्जुन के लिए जो शक्ति तू ने खास रखी है उसका प्रयोग अब तू घटोत्कच पर कर दे। आज के इस भयानक संहार में से हम बच गये तो सब मिलकर अर्जुन के विनाश की योजना कर लेंगे। "उनक 110/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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