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. धौम्य ऋषि के कुल तान
में पानी देने के कारण से
भी न देते थे।
तीर्थयात्रा करते करते वह द्वारका पहुंचा। वहां कृष्ण की अनुमति लेकर उसने सुभद्राहरण किया और वह इन्द्रप्रस्थ गया। सुभद्रा का पुत्र था अभिमन्यु। द्रौपदी को पांच पाण्डवों से पांच पुत्र हुए। उनके नाम थे- 1) प्रतिविन्ध्य, 2) सुतसोम, 3) श्रुतकर्मा, 4) शतानीक और 5) श्रुतसेन।
अर्जुन के इन्द्रप्रस्थ पहुंचने पर श्रीकृष्ण भी वहां आये। कुछ दिनों के बाद उनकी सहायता लेकर अग्नि ने खाण्डववन भस्मसात् किया। तब अर्जुन ने मयासुर की रक्षा की। तक्षकपुत्र अश्वसेन छूट निकला।
महाभारत के आदिपर्व में आठ उपाख्यान मिलते हैं।
1) शिष्यपरीक्षा : धौम्य ऋषि के कुल तीन शिष्य थे। उनमें से आरुणि नामके शिष्य को ऋषि ने खेत में पानी देने की आज्ञा दी। खेत के निकट बहने वाले नाले में लेट कर खेत में पानी देने के कारण ऋषि ने अनुग्रह कर उसे वेदशास्त्रसम्पन्न बनाया। दूसरा शिष्य था उपमन्यु। उसको गोरक्षण का काम दिया। गुरुजी उसको खाने के लिये कुछ भी न देते थे। उसने
अन्नग्रहण करने के लिये अलग अलग युक्तियां खोज निकाली। वह अरण्यस्थित घरों से जो भिक्षा ग्रहण करता उसे गुरु स्वयं ले लिया करते। उसके बाद वह दो समय भिक्षा मांगने लगा। धौम्य ऋषि ने उसको वह भी मना किया। उसके बाद गाय
का दूध और बाद में दूध पीते समय बछडों के मुंह से टपकने वाला फेन पीकर भी जब न बना तो उसने आक के पत्ते खाये। उससे वह बेचारा अन्धा होकर कुएं में गिर पडा। तब ऋषि ने प्रसन्न होकर उसको सब की तरह विद्या प्रदान की। तीसरा शिष्य था वेद । ऋषि ने उसे गाडी और हल में जोता। तब भी वह एकनिष्ठ बना रहा । यह देख कर धौम्य ने उसे भी सर्वज्ञ बना दिया।
2) शकुन्तलाख्यान : विश्वामित्र से मेनका को शकुन्तला नाम की पुत्री हुई। मातापिता से परित्यक्त शकुन्तला का पालनपोषण कण्वऋषि ने किया। एक समय कण्वऋषि की अनुपस्थिति में राजा दुष्यन्त वहां आया और उसने शकुन्तला को देखा। राजा का चित्त मोहित हुआ। वह क्षत्रियकन्या है यह जान कर दुष्यन्त ने उसके साथ गान्धर्व पद्धति के अनुसार विवाह किया। शकुन्तला ने भरत नाम के पुत्र को जन्म दिया। उसके नाम से ही अपने इस देश को भरतखण्ड कहा जाता है। कण्व ने शकुन्तला को उस पुत्र के साथ राजा के पास भेज दिया।
3) कच-देवयानी-उपाख्यान : देवदैत्यों के युद्ध में देवों का नाश होने लगा। देवों के गुरु बृहस्पति थे। उनको संजीवनी विद्या का ज्ञान नहीं था। उस विद्या का ग्रहण करने के लिये देवों ने गुरुपुत्र कच को दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास भेजा। असुरों को यह बात पसंद नहीं थी। उन्होंने कच का दो बार वध किया; परन्तु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी का कच
से अत्यन्त प्रेम होने के कारण शुक्राचार्य ने उसे दो बार जीवित किया। तीसरे समय तो असुरों ने कच के मृत देह की राख मदिरा में मिला कर शुक्राचार्य को पिलायी। देवयानी के आग्रह से शुक्राचार्य ने संजीवनी मन्त्र का उच्चारण करते ही कच उनके पेट में से बोलने लगा। तब शुक्राचार्य ने उसको संजीवनी मंत्र की दीक्षा दी। उसके उपरान्त कच उसका पेट फाड़ कर बाहर आया और मंत्रसामर्थ्य से उसने शुक्राचार्य को सजीव किया। देवों की ओर जाते समय देवयानी की प्रेमयाचना कच ने मान्य न करने के कारण, देवयानी ने कुपित हो कर उसे शाप दिया कि, "तुम्हारी विद्या तुहारे ही काम न आएगी।" कच ने भी शाप दिया कि, “एक भी ब्राह्मणपुत्र तेरा वरण नहीं करेगा।" कच ने बाद में वह विद्या देवों को सिखा दी।
___4) ययाति उपाख्यान : असुरों के राजा वृषपर्वा की कन्या शर्मिष्ठा और दैत्यपुत्र शुक्राचार्य की कन्या देवयानी ने अपनी सखियों के साथ जलक्रीडा करते समय, तीर पर रखे हुए उनके वस्त्र तेज हवा ने एक कर दिये। जल्दी में शर्मिष्ठा ने देवयानी
का वस्त्र परिधान किया। इस लिये उन दोनों में झगड़ा होकर शर्मिष्ठा ने देवयानी को कुएं में ढकेल दिया और वह चली गयी। बाद में ययाति नामक एक राजा मृगया करने के लिये वहां आया था। उसने देवयानी का हाथ पकड़ कर उसे कुएं
से बाहर निकाला। देवयानी ने यह हठ किया कि यदि शर्मिष्ठा मेरी दासी बनेगी तभी मै नगर में आऊंगी। शर्मिष्ठा ने यह बात मान ली। देवयानी का विवाह ययाति के राजा के साथ होने के उपरान्त शर्मिष्ठा भी उसके साथ दासी बन कर गई। देवयानी को यदु और तुर्वसु नामक दो पुत्र और शर्मिष्ठा को द्रुह्यु, अनु और पुरु नामक तीन पुत्र हुए।
5) अणीमाण्डव्योपाख्यान : एक बार माण्डव्यऋषि के तप करते समय कुछ चोर राजा के यहां चोरी कर के ऋषि के आश्रम में जा छिपे। इस लिये चोरों के साथ ऋषि को भी राजा ने सूलीपर चढ़ा दिया। अन्य चोर तो मर गये परन्तु यह देख कर कि माण्डव ऋषि सूली पर भी जीवित है। राजाने उन्हें सूली पर से उतारा। लेकिन उस शूल का अग्र अर्थात् अणी उनके शरीर में बिंधा रहने के कारण वे अणीमाण्डव्य के नाम से प्रसिद्ध हुए। बाद में अणीमाण्डव्य यम के यहां गये और अपने इस भोग का कारण उसे पूछा। यम ने बताया, "तुमने शैशव में एक कीटक को सींक से छेदा था, इस लिये वही दुःख आज तुमको भोगना पड़ रहा है।" इतने से पाप के लिये इतना भारी दण्ड देने के कारण ऋषिने यम को शाप दिया, "शूद्र योनि में तुम्हारा जन्म होगा।" उसी शाप के कारण यमराज विदुर हुए। 6) जम्बुकनीति : किसी एक जंगल में शेर, भेड़िया, सियार, नेवला और चूहा ऐसे पांच मित्र रहते थे। उन्होंने एक
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 93
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