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हैं। तब ऋषियों ने निवेदन किया, "महाराज, हमें यह जानने की अत्यंत उत्कण्ठा है कि जनमेजय ने सर्पसत्र क्यों किया और आस्तिक ने उसे पूर्ण क्यों नहीं होने दिया, एवं वैशम्पायन ने महाभारत का कैसे वर्णन किया? कृपया श्रवणलाभ करायें।" यह सुनकर सौति कहने लगे :
जरत्कारु नाम के एक अविवाहित ऋषि तीर्थयात्रा कर रहे थे। एक बार उन्हें अपने मृत पूर्वजों का दर्शन हुआ। मृत पूर्वजों ने उनसे कहा, "जब तुम अपनी वंशवृद्धि चलाओगे तभी हमें सद्गति प्राप्त होगी।" जरत्कारु ने उत्तर दिया, यदि मेरे नाम की स्त्री मुझे मिले तो मै अवश्य विवाह करूंगा।" इतना कहकर जरत्कारु ऋषि चले गये।
कश्यप ऋषि की कद्रू और विनता नाम की दो पत्नियां थी। एक दिन सूर्यरथ के अश्वों के रंग के विषय में उन दोनों में विवाद हुआ। कद्रू का कहना था कि सूर्यरथ का अश्व सम्पूर्णतया श्वेत नहीं है, किन्तु विनता का आग्रह था कि वह केवल श्वेत ही है। इस बात पर होड़ लगी। निश्चित हुआ कि जिसका कथन असत्य हो वह दूसरी की दासी बने। कद्रू ने अपने सर्व पुत्रों (सों से) से कहा कि "तुम सब अश्व की पूंछ से लिपट जाओ ताकि पूंछ काली दीख पड़े और मुझे दासित्व प्राप्त न हो।" उनमें से कुछ सों ने यह बात अमान्य की। अतः कद्रू ने उन्हें शाप दिया कि "जनमेजय के सर्पयज्ञ में तुम्हारी मृत्यु होगी।"
दूसरे दिन दोनों अश्व देखने निकलीं। कुछ सर्पो ने जा कर उसकी पूंछ काली कर दी थी। अतः विनता कद्रू की दासी बन गयी। विनता को गरुड नामक एक पुत्र था। उसने सर्पो से पूछा, “हम आपके दास्य से मुक्त होने के लिये क्या उपाययोजना करे?" सों ने कहा, हमें अमृत की प्राप्ति कर देने पर तुम मुक्त हो सकोगे।" गरुड ने यह बात मान ली। देवदानवों के समुद्रमन्थन के समय प्राप्त अमृत, यद्यपि अत्यंत सुरक्षित स्थान पर था, परन्तु गरुड ने उसे प्राप्त किया और सो को देकर मुक्ति प्राप्त की।
जिन सों को कद्रू ने शाप दिया था उनमें से वासुकि नाम के सर्प से ब्रह्माजी ने कहा, "तुम अपनी भगिनी जरत्कारु का विवाह जरत्कारु ऋषि से कर दो। उसका पुत्र तुम्हारी रक्षा करेगा। वासुकि ने उसका कहना शिरोधार्य कर अपनी भगिनी का जरत्कारु से विवाह कर दिया। इसी का पुत्र आस्तिक कहलाया।
पाण्डवों के पोते राजा परीक्षित ने अपने राज्यकाल में एक बार ऋषि के गले में मृत सर्प पहना दिया। ऋषि के पुत्र ने यह देख कर राजा को शाप दिया, "तुम सात दिन के भीतर तक्षक सर्प के दंश से मृत्यु प्राप्त करोगे।" उसकी शापवाणी
सत्य हुई। परीक्षित की मृत्यु के उपरान्त जनमेजय ने राजपद सम्हाला। उसने तक्षक से बदला लेने के लिये सर्पसत्र आरम्भ किया। आस्तिक वहां पहुंचा। जनमेजय ने जब उसे मुंहमांगी बात देने का वचन दिया, तब उसने प्रार्थना की कि "सर्पसत्र अभी के अभी समाप्त हो।" इस प्रकार सर्यों की रक्षा हुई।
उस सर्पसत्र में व्यास ऋषि की आज्ञा से वैशम्पायन ने राजा जनमेजय को महाभारत की कथा सुनायी। वैशम्पायन ने कथा आरम्भ की
मत्स्य के उदर में दो बालक अवतीर्ण हुए। उनमें से लड़का था मत्स्यराजा। उसको उपरिचर राजा ने आश्रय दिया और लड़की मस्त्यगन्धा का धीवर को समर्पण किया। उसे पराशर ऋषि से एक पुत्र हुआ। वही हैं व्यास ऋषि। उन्होंने इस महाभारत की रचना तीन वर्षों में संपूर्ण की, जिसके लेखक स्वयं गणेशजी हुए थे।
चंद्रवंश के राजा शन्तनु के गंगा से उत्पन्न पुत्र भीष्म ने स्वयं ब्रह्मचारी रहकर मत्स्यगन्धा का विवाह शन्तनु से कराया। मत्स्यगन्धा ने दो पुत्रों को जन्म दिया। 1) चित्रांगद और 2) विचित्रवीर्य। उनमें से चित्रांगद का अविवाहित अवस्था में देहान्त हुआ और दूसरा विचित्रवीर्य विवाह होने के बाद यक्ष्मपीडित हो कर मर गया। व्यास ऋषि ने उनका वंश बढाया। विचित्रवीर्य
की पत्नियों को धृतराष्ट्र और पाण्डु ये पुत्र हुए और विदुर दासी से हुआ। धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी को दुर्योधन, दुःशासन आदि एक सौ पुत्र हुए और दुःशला नामक एक कन्या हुई। धृतराष्ट्र को एक युयुत्सु नामक दासीपुत्र भी था। पाण्डुराजा की दो पत्नियां थी, कुन्ती और माद्री। कुन्ती को धर्म, भीम, अर्जुन ये तीन और माद्री को नकुल और सहदेव ये दो पुत्र पाण्डु से हुए। पाण्डु की मृत्यु के उपरान्त माद्री ने सहगमन किया। विवाह के पूर्व कुन्ती को सूर्य से कर्ण नामक एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। उसने कर्ण को गंगा के प्रवाह में छोड़ दिया जो एक सूत को प्राप्त हुआ।
___ पाण्डव प्रबल थे इस लिये दुर्योधन उनसे द्वेष रखता था। उसने एक समय भीम को विष देकर मारने का प्रयत्न किया। पाण्डवों को लाक्षागृहमें जलाने का षडयंत्र भी रचा था, परन्तु उन सब संकटों में भी सुरक्षित रह कर हिडिम्बासुर और बकासुर का नाश पाण्डवों ने किया। द्रौपदी स्वयंवर में अर्जुन ने शर्त जीत ली। द्रौपदी सबकी पत्नी हुई और धृतराष्ट्र ने पाण्डवों को
आधा राज्य प्रदान किया। इन्द्रप्रस्थ उनकी राजधानी थी। नारद के आदेशानुसार पांच पांडवों ने यह तय किया कि द्रौपदी के साथ जो पति (पाण्डवों मे से एक) एकान्त करे उसके अलावा कोई वहां जा कर यदि उन्हें देखे तो उसको एक वर्ष की तीर्थयात्रा करनी होगी।
एक बार रात के समय चोरों द्वारा एक ब्राह्मण की गायें चुराई गयीं। उस समय उनकी रक्षा के लिए अर्जुन को शस्त्रग्रहणार्थ धर्मराज और द्रौपदी के एकान्तका भंग करना पड़ा। गायों को मुक्त कर अर्जुन तीर्थयात्रा करने के लिये गया।
92 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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