________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हा भाग गया। बस है, इस लिये
शिकार खाने वाले
बार हट्टा कट्टा काला हिरन देखा। वह चपल होने के कारण उनके हाथ न लगा। जब वह सोया हुआ था तब सियार के कहने के अनुसार चूहे ने उसके खुर काटना शुरु किया। यह देख कर कि अब उससे भागा नहीं जाता शेर ने उसकी जान ले ली। वह हिरन सिर्फ मुझे ही मिल जाय ऐसी सियार की इच्छा हो गई और उसने एक षडयन्त्र रचा। उसने अन्य प्राणियों
से कहा, "आप सब लोग नहा कर आइये तब तक मै यहां बैठता हूं।" सबसे पहले पहल शेर आया। सियार उसे कहने लगा, "चूहे का कहना है कि आज मेरे पराक्रम के बल पर ही शेर को भोजन मिल रहा है। धिक् धिक् लानत है उसकी
शूरता पर।" यह बात सुनते ही शेर दूसरा जानवर मारने के लिये जंगल में गया। बाद चूहा आया। सियार उससे कहने लगा कि, "नेवला कहता है, कि हिरन को शेर ने मारा है, इस लिये यह मांस मुझे हजम नहीं होगा इस लिये मै चूहे को ही खाऊंगा।" यह सुनते ही चूहा भाग गया। बाद में भेडिया आया। सियार उसको कहने लगा, "शेर अभी कह रहा था कि मेरी शिकार खाने वाले तुम कौन हो? शेर तो यही कह कर क्रोधपूर्वक गया है कि मै अभी अपने बीवी-बच्चों को लाता हूँ।" यह सुनकर भेडिया भी भाग खड़ा हुआ। बाद में नेवला आया। सियार उससे बड़े गर्व से कहने लगा, "देखो भाई। मैने अभी तक सब का पराभव कर उन्हें मार भगाया है। यदि तुम्हें घमण्ड हो तो आओ। युद्ध हो जाने दो।" सियार की यह बात सुन कर नेवला भी भाग गया। उसके उपरान्त सियार ने अत्यन्त आनन्दपूर्वक भरपेट भोजन किया।
सार : डरपोक को डर दिखा कर, शूर के सामने नम्र होकर, दुर्बल को धमकी दे कर, जैसा बन पडे वैसा अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहिये।
6) धेनुहरण : कान्यकुब्ज देश में गाधिराजा का पुत्र विश्वामित्र बहुत पराक्रमी राजा था। एक समय जब वह अपनी सेना के साथ मृगया के लिये गया था, तब थक कर वसिष्ठ मुनि के आश्रम में गया। वसिष्ठ के पास नन्दिनी नाम की कामधेनु थी। उसके कृपाबल से विश्वामित्र भोजनादिका प्रबन्ध वसिष्ठने इतका उत्तम किया कि विश्वामित्रके मनमें गायकी प्राप्ति
का अभिलाष उत्पन्न हुआ। वसिष्ठसे विश्वामित्र ने कहा कि, “मै अपना समस्त राज्य आप को देने को तैयार हूं परन्तु कृपया आपकी कामधेनु मुझे दीजिये।" वसिष्ठ ने इस प्रस्ताव को अस्वीकृत किया। सारा राज्य दे कर भी वह अपनी कामधेनु मुझे नहीं देता इस बात पर उसे क्रोध आ गया और जबरदस्ती से वह कामधेनु को ले जाने लगा। तब कामधेनु के शरीर से हजारों वीर निकले और उन्होंने विश्वामित्र का पराभव किया। तब विश्वामित्र को यह ज्ञान हुआ कि "ब्रह्मतेज ही सच्ची शक्ति है। क्षत्रियबल उसके सामने कुछ भी नहीं' अतः स्वयं ब्राह्मण ही बनना होगा। बाद में महान् तपश्चर्या कर वे सचमुच ब्राह्मण बन गये।
7) सुन्दोपसुन्दाख्यान : हिरण्यकश्यपू के वंश में निकुम्भ नाम का एक असुर राजा था। जिसके दो पुत्र- सुन्द और उपसन्द के बीच अत्यन्त प्रेम-भाव और एकमत था। सुन्दोपसुन्दों ने महान तपश्चर्या कर ब्रह्मा से वर माँगा कि, “एक दुसरे के अतिरिक्त और किसी व्यक्ति के हाथों हमें मृत्यु प्राप्त न हो।" वरप्राप्ति होते ही वे उन्मत्त होकर देवऋषियों को पीडा देने लगे।
तब ब्रह्माजी ने तिलोत्तमा नामक एक अतिसुंदर अप्सरा निर्माण कर उनके पास भेज दी। उसका सौन्दर्य देख कर दोनों ही मोहांध हो गये। सुन्द कहने लगा, “यह मेरी स्त्री तुमको माँ के समान है।" और उपसुन्द कहने लगा, "यह मेरी स्त्री
तुझे बहू के समान है।" वे दोनो भाई आपस में झगडने लगे। परिणाम यह हुआ कि दोनो भाइयों ने आपस में लड़ कर एक दूसरे का घात किया।
2 "सभापर्व" __मयासुर को खाण्डवन से विमुक्त करने के कारण उसने पाण्डवों के लिए कृतज्ञतापूर्वक एक अद्भुत राजप्रासाद निर्माण किया। उस प्रासाद में बहुत ही चमत्कार थे। जहां पानी था वहां भूमि का भास हो रहा था और जहां भूमि वहां पानी का भास हो रहा था। यह प्रासाद दस हजार हाथ लम्बा चौडा था और उसका निर्माण करने के लिये मयासुर को चौदह मास लगातार परिश्रम करना पड़ा था। पाण्डवों ने बडे ठाठ बाठ से उस महान् प्रासाद में प्रवेश किया।
एक दिन नारदमुनि पाण्डवों से मिलने के लिये आये थे। उन्होंने देवसभा का वर्णन किया और पाण्डवों से कहा, "तुम्हारे पिता पाण्डुराजा मुझे स्वर्ग में मिले थे। उन्होंने यह सन्देश भेजा है कि तुम राजसूय यज्ञ करो।" यह सन्देश सुन कर धर्मराज
ने श्रीकृष्ण को बुला कर उनकी राय ली। कृष्ण ने कहा, "राजसूय यज्ञ का विचार उत्तम है परन्तु इससे पहले सब राजाओं पर विजय प्राप्त करनी होगी। इस समय जरासन्ध अत्यन्त प्रबल राजा है। उसने 86 राजाओं को गुहा में बन्दी बना रखा है
और बाकी 14 राजाओं को जीत कर वह एकदम 100 राजाओं को महादेव पर बली चढाने वाला है। यदि तुम राजसूय यज्ञ करना चाहते हो तो तुम्हें पहले जरासन्ध को मार कर उन राजाओं को मुक्त करना होगा। इस लिये भीम और अर्जुन मेरे साथ दो। हम तीनों शक्तियुक्ति से उसका नाश करके लौटेंगे। उसके बाद धर्मराज की आज्ञा लेकर वे तीनों निकले। जरासन्ध के यहां पहुंच कर भीम और जरासन्ध का तेरा दिन अहोरात्र मल्लयुद्ध हुआ। चौदहवें दिन जरासन्ध को थका हुआ सा देख श्रीकृष्ण ने भीम को सुझाया कि, “यही अवसर है।" उसके अनुसार भीम ने जरासन्ध की एक जांघ अपने पैर से दबाकर
94 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
For Private and Personal Use Only