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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप | दिन उनका अभिषेक तथा पूजनादि नहीं होना चा हिये। क्योंकि फिर तो हर एक बातों की समानता हो तुम्हारी बातों को दृढ़ करेगी। हमें इस बात का बहुत खेद होता है कि कहां तो त्रैलोक्यनाथ, और कहां हम सरीखे पुरुषों की तर्क वितर्के। परन्तु इस बात को कहे कोन ? यदि कहें भो तो उसे स्वीकार करना मुश्किल है । अस्तु जो कुछ ह! इतना कहने में कमो पींका नहीं करेंगे कि यह शङ्कायें नहीं हैं किन्तु सीधे मार्ग पर चलते हुए पुरुषों को उस से विचलित करने के उपाय हैं । प्रश्न- जिनभगवान् के चरणों पर पुष्पों का चढ़ाना खूब बता चुके और साथ ही श्रावकों के लिये उनके ग्रहण करने का सिद्धान्त भी कर चुके । परन्तु यह कितने आश्चर्य को बात है कि जिस विषय को कुन्दकुन्द स्वामी ने रयणसार में, सकलकीर्त्ति ने सद्भाषितावली आदि में निषेध किया है उसी निर्माल्य विषय को एक दम उड़ा दिया। क्या अभी कुछ शङ्कास्थल है जिस से जिन भगवान् के ऊपर चढ़े हुवे गन्ध माल्य को निर्माल्य न कहें? उत्तर- हमने जितनो बातें लिखी हैं वे ठोक शास्त्रानुसार हैं । इसी तरह तुम भी यदि किसी एक भी विषय का विधि निषेध करते तो, हमें इतने कहने की कोई ज़रूरत न थी । परन्तु शास्त्र कहाँ, वे तो केवल नाम मात्र के लिये हैं । चलना तो अपनी इच्छा के आधोन है। यह तो वही कहावत हुई कि " माने तो देव नहीं तो भींत का लेव" परन्तु इसे अपने श्राप भले ही अच्छी समझ लौ जाय । बुद्धिवान् लोग कभी नहीं मानेंगे | हमें कुन्दकुन्द स्वामी का लेख मान्य है। उन्हों ने जो For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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