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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशय तिमिरप्रदीप | ६३ कुछ लिखा है वह बहुत ठीक है । हमें न तो उन के लेख में कुछ सन्देह है और न कुछ विवाद है । परन्तु कहना चाहिये अपनो, जो पद पद में सन्देह भरा हुआ मालूम पड़ता है । जिनभगवान् के लिये चढ़ाया गन्धमाल्य निर्माल्य नहीं होना । और यदि मान लिया जाय तो उसी तरह गन्धोदक भी निर्माल्य कहा जा सकेगा । 1 प्रश्न- गन्धोदक निर्माल्य नहीं कहा जा सकता क्योंकि शास्त्रों में उसे पवित्र माना है ? उत्तर जब गन्धोदक का ग्रहण करना शास्त्रानुसार होने से उसे निर्माल्य नहीं कहते हो फिर गन्धमाल्यादिकों का ग्रहण करना शास्त्रानुसार नहीं है क्या ? देखो ! संहिता में लिखा है:-- गन्धोदकं च शुद्धार्थं शेषां सन्ततिवृद्धये । तिलकार्थं च सौगन्ध्यं गृह्णन्स्यान्नहि दोषभाक् ॥ अर्थात- पवित्रता के लिये गन्धोदक को, सन्तान वृद्धि के अर्थ आशिका को, और तिलक के लिये चन्दनादि सुगन्धित वस्तुओं को, अपने उपयोग में लाने वाला गृहस्थ दोष का भागी नहीं हो सकता । कहिये यह तो शास्त्रानुसार है न ? अब निर्विवाद सब बातों को स्वीकार करनी चाहिये । पाठक ! आपके ध्यान में पुष्पों का चढ़ाना आया न ? हमारा लिखना शास्त्रों के विरुद्ध तो नहीं है ? जिस तरह शास्त्रों में पुष्प पूजन के सम्बन्ध में लिखा है वह उपस्थित है । इसे स्वीकार करके अनुग्रहोत कीजिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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