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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। पड़ने पर सब काम करने पड़ते हैं। इस लिये कार्यानुरोध से इसे अनुचित नहीं कह सकते । इस जिनाज्ञा के मानने से चाहे श्वेताम्बगे कहो या अन्य, हमें कुछ विवाद नहीं है । यह तो अपनी २ समझ है । कल ढंढिये लोग यह कहने लगे कि “ये लोग मन्दिगद बनवाने में बड़ी भारी हिंसा करते हैं। इन लोगों का अहिंसा विषयक धर्माभिमान बिल्कुल अरण्य प्रलाप के समान समझना चाहिये । इत्यादि " तो क्या उन से झगड़ा करें ? नहिं । बुद्धिमान् पुरुष इसे अच्छा नहीं समझते। महर्षियों की प्राज्ञा मानना हमारा धर्म है। उन निर्दोष बचनों को ठीक नहीं बताना यह धर्म नहीं है। प्रश्न- अष्टमी, चतुर्दशी श्रादि पुण्यतिथियों में जैनीलोग हरित अर्थात् मचित्त पदार्थों को नहीं खाते हैं । परन्तु दान होता है कि वही सचित्त पदार्थ इन्हीं पुण्यतिथि तथा पर्यों में जिनभगवान् के ऊपर चढाये जति हैं ? खैर ! सचित्त भी दूर रहे, परन्तु वह भी अनन्त काय! उत्तर-यह प्रश्न बिल्कुल अनुचित है। परन्तु क्या करें उत्तर न दिया जाय तो भी ठीक नहीं है । इसलिये जैसा प्रश्न है उसी तरह उत्तर दिये देते हैं । अष्टमी चतुर्दशी, तथा और पर्वो में हम हरित पदाथों को नहीं खाते हैं यह ठीक है । परन्तु खाने की और चढ़ाने की समानता तो नहीं है । यदि इसी विषमदृष्टान्त से चढ़ाने का निषेध मान लिया जाय तो उसी के साथ अष्टमी, चतुर्दशी श्रादि तिथो में उपवास भी किया जाता है फिर जिनभगवान को भी उपोषित रखना चाहिये । उस For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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