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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . संशयतिमिरप्रदीप। के करने वाले हो गये हैं। उनका कतकार्य हमारी प्रकृति में भो आरहा है तो क्या वह ठीक नहीं कहा जा सकेगा ! कथा भाग के अन्यों में अथवा पाना विधायक शास्त्रों में अर्थात् यों कहो कि प्रथमानुयाग और चरणानुयोग में इतना ही भेद है कि पहले का तो, पुण्य कर्तव्य, प्राज्ञा के समान स्वीकार किया जाता हैं और पाप कर्मों का परित्याग किया जाता है। दूमग सर्वथा माननीय हो होता है । और विशेष कुछ नहीं है। प्रश्न-व्रत कथा कोष में भगवान् को मुकुट पहराना लिखा हुआ है क्या अब भी कुछ कमर रहो ? वोतरागभाव में कुछ परिवर्तन हुआ या नहीं ? यह लेख तो, दृढ़ निश्चय कराता है कि अब दिगम्बरोयों को एक तरह खेताबगै ही कहना चाहिये। उत्तर-नित्य और नैमित्तक इस तरह क्रियाओं के दो भेद हैं । नित्य क्रिया में पूजनादि प्रायः सामान्य विधि से होतो हैं। और नैमित्तक किय ओं में कितनी बातें नित्य क्रियाओं को अपेक्षा विशेष भो होती हैं। नित्यक्रिया में जिनभगवान् को मुकुट नहीं पहराया जाता । परन्तु नैमित्तक क्रिया में व्रत के अनुरोध से पहराना पड़ता है। इसलिये दोषास्पद नहीं कहा जा सकता। नित्यक्रिया में अई रात्रि की पूजन करना कहीं नहीं देखा जाता। परन्तु चन्दनषष्टी, तथा प्राकाशपञ्चमी आदि व्रतों में उसी समय करनी पड़ती है। वैसे हो मुनियों को गत्रि में बोलने आदि का निषेध है परन्तु विशेष कार्य के आ For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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