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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्हद्दास सेठकी कथा । देवने बड़ा भयावना रूप धारण किया । उसे देख राजा डरा और भागने लगा । देव भी उसके पीछे पीछे दौड़ा । देवने उससे कहा- पापी, इस समय जहाँ तू जायगा वहीं मैं तुझे मारूँगा । हाँ गाँवके बाहर सहस्रकूट चैत्यालयमें जिनदत्त सेठ है, यदि तू उनकी शरणमें जाय तो तुझे मैं बचा सकता हूँ । नहीं तो बिना मारे न छोडूंगा । यह सुन राजासेठकी शरण में पहुँचा और सेठसे बोला- मुझे बचाइए, मेरी रक्षा कीजिए ! मैं आपकी शरण आया हूँ । यदि आप मुझे बचालेंगे तो मैं बच जाऊँगा और आपको भी पुण्य होगा । यह नीति भी है कि नष्ट भ्रष्ट हुए कुलका, तालावका, बावड़ीका, कुएका, राज्यका, शरणागतका, गौका, ब्राह्मणका, और जीर्ण मंदिरका जो उद्धार करते हैं - इनको नाश होनेसे जो बचाते हैं उन्हें चौगुना पुण्य होता है । यह सुनकर सेठने मनमें विचारा - यह जो राजाके पीछे पड़ा है वह कोई राक्षस है और विक्रियासे इसने ऐसा भयंकर रूप धारण किया है । fear राक्षसके और कोई ऐसा चमत्कार नहीं दिखला सकता । ऐसा विचार कर सेठ उस देवसे बोले - हे सुराधीश, पीछे भागते हुएका पीछा नहीं किया जाता। नीति भी ऐसी ही है कि जो डरसे भाग रहा हो, बलवानको उसका पीछा नहीं करना चाहिए। पीछा करनेसे शायद वह मृत्युका निश्चय कर जीनेकी आशा छोड़ न जानेक्या अनर्थ कर बैठे। क्योंकि ऐसे समय प्रायः सभीको वीरश्री For Private And Personal Use Only ५३
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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