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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व - कौमुदी - पर आ बैठा । और सेठको पकड़नेके लिए जो आदमी आये थे, उनसे वह कहने लगा- अरे कायरो, तुम किस लिए आ रहे हो ? वे बोले -रे दीन, तू हमारे हाथों क्यों मरना चाहता है ? दूर हो, रास्ता दे ! तब मनुष्य रूपधारी देव बोला-माना कि तुम लोग बहुत हो और मोटे-ताजे भी हो, पर इससे होगा क्या ? जिसमें तेज रहता है- जो तेजस्वी होता है वही बलवान् होता है । देखो, हाथी कितना मोटा होता है, पर वह जरासे अंकुश से बशमें हो जाता है, तो क्या अंकुश हाथीके बराबर है ? वज्र पर्वतोंको ढा देता है, तो क्या वह पर्वतके बराबर है ? एक दीपक से बहुतसा अंधेरा मिट जाता है, तो क्या अंधेरा दीपकके बराबर है ? मतलब यह कि जिसमें तेज है वही बलवान है- जोरावर है । मोटे-ताजे ही होने से कुछ नहीं होता । यदि सिंह दुबला पतला भी है तो भी बड़े बड़े हाथी उसकी बराबरी नहीं कर सकते । जब सिंह गरजने लगता हैं तब वनके एक दो नहीं, किन्तु सब हाथी मद छोड़ देते हैं- गर्व नहीं करने पाते । इसलिए बलकी ही प्रधानता है । मांस बढ़जानेसे काम नहीं चलता । ऐसा कहकर उसने किसीको डंडोंसे मारा और कितनेहको मूच्छित कर दिया । यह सब हाल किसीने राजासे जाकर कह दिया । राजाने तब और बहुत से आदमियों को भेजा । देवने उनकी भी वही दशा की । तो राजाको तब बड़ा क्रोध आया और चतुरंग सेना लेकर वह स्वयं चढ़ा | महा संग्राम हुआ । राजाकी तमाम सेना मारी गई । अकेला राजा बचा । For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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