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अर्हदास सेठकी कथा ।
कुंदलताने कहा-अच्छा नाथ, कहिए । मैं उसे सुनती हूँ। सेठने तब अपने सम्यक्त्व प्राप्त होनेकी कथाको यों कहना आरंभ किया
इसी उत्तरमथुरामें पद्मोदय राजा थे। यशोमति उनकी रानी थी। वर्तमान राजा उदितोदय उन्हीं पद्मोदयके पुत्र हैं। पद्मोदयके समयमें मंत्री संभिन्नमति था। मंत्रीकी स्त्री सुप्रभा थी। सुबुद्धि नामका उसके एक पुत्र है । यही सुबुद्धि इस समय उदितोदयका मंत्री है । तथा यहीं पर अंजनवटी आदि विद्यामें निपुण रूपखुर नामका एक चोर था। उसकी स्त्रीका नाम रूपखुरा था। सुवर्णखुर नामका इसके एक लड़का है। यहीं जिनदत्त सेठ हुए। जिनमति उनकी स्त्रीका नाम था । इन्हीं जिनदत्तका पुत्र मैं अहंदास हूँ।
ये सब बातें राजाने, मंत्रीने, और बड़के पेड़ पर छुपे हुए सुवर्णखुर चोरने भी सुनी । चोरने मनमें विचाराचोरी तो मैं हर रोज करता ही रहता हूँ, आज न सही । पर इस सेठकी बातें तो सुनें । देखें यह क्या क्या कहता है । राजा और मंत्रीने भी सेठकी बातें सुननेका विचार किया।
सेठ बोले-जो कथा मैंने सुनी है, देखी है, और अनुभव की है, उसे मैं कहता हूँ । सावधान होकर सुनना। उनकी स्त्रियाँ बोलीं-नाथ, हम सुनती है, आप कृपा कर कहिए। __सेठ कहने लगे-वह रूपखुर चोर सातों व्यसनोंका सेवन करनेवाला था। एक दिन जूआ खेलकर उसने बहु
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