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विद्युल्लताकी कथा।
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है, हितमें लगाता है, गुप्त बातोंको छुपाये रहता है, गुणोंको प्रगट करता है और आपत्ति के समय साथ न छोड़कर सहयता करता है।
सूरदेव उस घोड़ेकी बड़ी सावधानीसे रक्षा करता था। एक दिन सूरदेवने विचारा-यह घोड़ा आकाशगामी है, तब इसके द्वारा तीर्थयात्रा क्यों न की जाय ? क्योंकि जब तक शरीर नीरोग है, बुढ़ापा नहीं आया, इन्द्रियाँ शिथिल नहीं पड़ी और आयु बाकी है, उसके पहले ही मनुष्यको अपने कल्याणके लिए यत्न करना उचित है । घरमें आग लगने पर कुआ खोदना किस कामका ? __ अपने निश्चयके अनुसार सूरदेव एक दिन आकाशगामी घोड़ेको पुचकार कर उस पर चढ़ा और चलनेके लिए उसने घोड़ेके ऐड़ लगाई। फिर क्या था, घोड़ा हवा हो गया। सेठने सम्मेदशिखिर, गिरनार, शत्रुजय आदि तीर्थों की वन्दना की।
सूरदेव इसी तरह हर एक पर्वके दिन अकृत्रिम चैत्यालय और निर्वाण भूमियोंकी वन्दना किया करता था और धर्मपूर्वक समय बिताता था । सो ठीक ही है, क्योंकि बुद्धिमानोंका समय धर्मकार्यों में बीतता है और मूल्का सोने तथा लड़ाईझगड़ोंमें बीतता है।
पल्ली नामकी एक सुन्दर पुरी है। उसके राजाका नाम पत्नीपति है । सूरदेव तीर्थयात्रा करनेको आकाशगामी घोड़े पर सवार होकर इसी पुरीपरसे जाया करता था । उसे
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