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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व-कौमुदी जाता देखकर किसी आदमीने पल्ली पुरीके राजा पत्नीपतिसे कह-महाराज, कौशाम्बीमें सूरदेव नामका एक सेठ रहता है । उसके पास एक आकाशगामी घोड़ा है। ऊपर देखिए उसी घोड़े पर सूरदेव चला जा रहा है । नीतिकार कहते हैं-राजाके सम्बन्धका कोई छोटेसे छोटा भी काम हो, तो उसे इस तरह सभामें कहना उचित नहीं। राजाने उसकी यह बात सुनी, पर इस नीतिको विचार कर, कि भाट, स्तुति-पाठक, ओछा स्वभाववाले, नाई, माली और साधु-संन्यासियोंके साथ बुद्धिमानोंको सलाह करना ठीक नहीं, वे चुप हो रहे। फिर एक दिन सरदेवको उसी घोड़े पर चढ़े हुए जाता देखकर राजाने कहा-यह घोड़ा यद्यपि दुबला पतला है तथापि जान पड़ता है बड़ा गुणी है । इसलिए यह इस कृश अवस्थामें भी बड़ा ही सुन्दर दिखता है । नीतिकार कहते हैं-कई वस्तुएँ ऐसी भी हैं जो कृश ही शोभाको पाती हैं। जैसे शाण पर चढ़ाया रत्न कट-छंटकर छोटा रह जाता है, पर उसकी सुन्दरता और मूल्य बढ़ जाता है । युद्धमें हाथी शस्त्रोंसे बुरी तरह घायल होकर निर्मद हो जाता है, पर विजयलाभ करनेसे वह प्रशंसा किया जाता है । चौमासेमें पूर आई नदी शरद ऋतुमें घटकर बहुत थोड़ी रह जाती है-उसका जल कम हो जाता है, पर सुन्दरता वही धारण करती है, चौमासेकी नदी नहीं । द्वितीयाका चन्द्रमा भी बहुत For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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